Navratri 2019 : यहां महानवमी को महिषासुर के वध पर मनाया जाता है मातम, जानिए क्या है मान्यता
झारखंड के चांडिल में महानवमी को महिषासुर के वध पर मातम मनाया जाता है। महिषासुर को श्रद्धांजलि दी जाती है। यहां दुर्गोत्सव नहीं मनाया जाता है।
जमशेदपुर, दिलीप कुमार। झारखंड के जमशेदपुर शहर के निकट चांडिल के चाकुलिया में दुर्गोत्सव के दौरान महिषासुर वध का मातम मनाने की तैयारी चल रही है। जब पूरी दुनिया दुर्गोत्सव का जश्न मना रही होगी, उसी दरम्यान एक समाज महिषासुर वध पर मातम मनाएगा। दुर्गोत्सव के महानवमी के दिन यहां देशज संस्कृति रक्षा मंच के नेतृत्व में हुदूर दुर्गा यानी महिषासुर का शहादत दिवस मनाया जाएगा।
असुर का गलत चरित्र चित्रण दुर्भाग्यपूर्ण : बागी
देशज संस्कृति रक्षा मंच के संयोजक कपूर बागी बताते हैं कि असुर एक जनजाति है, जो झारखंड के पलामू क्षेत्र में अलावा देश के विभिन्न स्थानों में निवास करती है। कहानियों में असुरों का जो चरित्र चित्रण किया गया है, वास्तव में वैसा नहीं है। असुर समाज के लोग अब इस प्रकार की धारणा को समाप्त करने के साथ सामाजिक समरसता स्थापित करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि असुरों ने ही सर्वप्रथम लोहे की खोज की थी। ऐसी महत्वपूर्ण जनजाति का गलत चरित्र चित्रण दुर्भाग्यपूर्ण है।
असुर समाज अपने राजा के बध पर मनाता मातम
उन्होंने कहा कि शारदीय नवरात्र पर असुर समाज अपने राजा महिषासुर के पराजित होने और उनके वध पर मातम मनाता है। महिषासुर वध का मातम चांडिल क्षेत्र में मनाया जाएगा। इसकी तैयारी की जा रही है। यह आयोजन चांडिल प्रखंड के चाकुलिया गांव में प्रस्तावित है। यहां देशज संस्कृति रक्षा मंच महानवमी के दिन हुदूर दुर्गा यानी महिषासुर का शहादत दिवस मनाएगा। बागी ने बताया कि दलमा पहाड़ की तराई में बसे चाकुलिया में जो पूजा हो रही है, उसमें कोई मूर्ति स्थापित नहीं की जाती है। सिर्फ महिषासुर को श्रद्धांजलि दी जाती है। ऐसा करने वाले लोग दुर्गोत्सव नहीं मनाते हैं।
दुर्गा पूजा का हिस्सा नहीं है दासांय नृत्य
कपूर बागी ने बताया कि आदिवासियों द्वारा शारदीय नवरात्र पर दस दिनों तक किया जाने वाला दासांय नृत्य दुर्गापूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि विरोध में किया जाता है। वीरांगना नारियों की तरह साड़ी को धोती जैसा धारण कर सेरेंग गाते हुए हाथ में भुआग के साथ पुरुष दलबद्ध होकर दासांय नृत्य करते हैं। इस मौके पर वे धोखे से मारे गए अपने पूर्वजों को याद करते हैं व महिषासुर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। बागी ने बताया कि आदिवासियों के राजा हुदूड़ दुर्गा यानी महिषासुर की सेना को आर्य रमणियों ने छल-कपट से हत्या कर दी थी। बागी ने कहा कि सभी धर्मो के सभी ईश्वर शांति का संदेश देते हैं, फिर दुर्गापूजा में महिषासुर वध और रावण दहन क्यों। सरस्वती व लक्ष्मी पूजा की तरह दुर्गा पूजा क्यों नहीं मनाया जाता है।
यहां होगा रावण दहन
1. गोविंदपुर : रावण दहन कमेटी गोविंदपुर वीर कुंअर सिंह स्टेडियम में रावण दहन करती है। कार्यक्रम के दौरान आतिशबाजी करने के लिए मुसाबनी और कटक से आतिशबाजों की टीम खास तौर से बुलाई जा रही है।
2. काशीडीह : श्रीश्री रामलीला उत्सव समिति इस वर्ष विजयादशमी के दिन रामलीला मैदान साकची में रावण दहन करेगी। इसके पूर्व काशीडीह से भव्य जुलूस निकाला जाएगा। रामलीला मैदान में रावण के 20 फीट ऊंचे पुतले के साथ ही कुंभकरण व मेघनाद का पुतला जलाया जाएगा। काशीडीह से झांकियों के साथ पुतले रामलीला मैदान में लाए जाएंगे और यहां उनका दहन किया जाएगा।
3. बागुनहातु : सार्वजनिक रावण दहन समिति बागुनहातु इस वर्ष 40 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन करेगी। यह कार्यक्रम में बागुनहातु फुटबॉल मैदान में होगा। पुतला दहन के दौरान होने वाली आतिशबाजी देखने लायक होगी। कार्यक्रम शाम 7.30 बजे शुरू होगा और इसको देखने के लिए हजारों लोग जुटेंगे।