Ghatshila By Election Result 202t5: हेमंत-कल्पना की जोड़ी ने पलटी बाजी, महिला वोटरों पर छाया कल्पना का जादू
झारखंड में हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों की रणनीति को मात दी। कल्पना के विशेष अंदाज ने महिलाओं को प्रभावित किया, जिससे गठबंधन को जबर्दस्त समर्थन मिला। इस जीत ने राज्य की राजनीति में एक नया अध्याय लिख दिया है।

प्रचार अभियान में सीएम हेमंत व कल्पना सोरेन।
मंतोष मंडल, घाटशिला। झारखंड में हुए एकमात्र घाटशिला विधानसभा उपचुनाव में हेमंत व कल्पना की जोड़ी फिर एक बार हिट साबित हुई है। यह जोड़ी ने पांच पूर्व सीएम की रणनीति को सफल नहीं होने दिया। इन पांच पूर्व सीएम में भाजपा के बाबूलाल मरांडी, चंपाई सोरेन, मधुकोड़ा, अर्जुन मुंडा एवं रघुवर दास शामिल हैं।
घाटशिला उपचुनाव को लेकर भाजपा व झामुमो दोनों ने ही पूरी ताकत झोंक दी थी। दोनों तरफ से 40-40 स्टार प्रचारक की सूची जारी की गई थी। पूरी कोशिशों के बावजूद भी भाजपा घाटशिला सीट पर कब्जा नहीं कर पाई। दिवंगत मंत्री रामदास सोरेन के निधन के बाद इस सीट पर झामुमो ने उनके पुत्र सोमेश चन्द्र सोरेन को विधायक बनाकर दोबारा कब्जा जमा लिया।
चुनाव में भले ये भी कहा गया था की सोमेश चन्द्र सोरेन को पहले मंत्रिमंडल में जगह न देकर झामुमो ने गलती की, ऐसे में सोमेश के लिए चुनाव टफ हो जाएगा। हालांकि इन तमाम अटकलों को हेमंत व कल्पना की जोड़ी ने विराम लगा दिया। जब हेमंत व कल्पना ने चुनावी रण में एंट्री मारी तो झामुमो का किला पिछले बार से ज्यादा मजबूत होता गया।
कल्पना के प्रचार व सभाओं में महिलाओं की भीड़ व उत्साह ने तो झामुमो के वोट बैंक में सीधे अंतर को बढ़ाना शुरू कर दिया। कल्पना मुर्मू सोरेन के मुकाबले भाजपा ने अपने केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी, गीता कोड़ा, बंगाल की महिला विधायक अग्निमित्र पाल को उतारा।
लेकिन कल्पना के आगे ये महिला नेत्री भाजपा के वोट बैंक को बढ़ा पाने में बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाई। कल्पना ने झामुमो के शहरी वोट बैंक को अपने भाषणों के अंदाज से बढ़ाया। ऐसे में हेमंत की मजबूत रणनीति के आगे भाजपा उनके किले को भेद नहीं सकी। भाजपा के लिए हार का अंतर पिछले बार से भी ज्यादा बढ़ गया।
चुनाव जीतना नहीं जीतने के बाद का काम होगा सोमेश की असली परीक्षा
घाटशिला में सिर्फ चुनावी चेहरा बने थे सोमेश चन्द्र सोरेन। दरअसल चुनाव तो उनके विधायक, सांसद व मंत्रियों ने लड़ा। जी हां घाटशिला उपचुनाव में ऐसा ही कुछ देखने को मिला। सोमेश चन्द्र सोरेन के लिए सिर्फ चुनाव लड़ना ही नया नहीं था, बल्कि राजनीति भी नई थी। वे सक्रिय राजनीति से बेहद दूर रहा करते थे।

घाटशिला की राजनीति में उनके पिता स्व रामदास सोरेन ही शुरू से लेकर अंतिम समय पर सक्रिय थे। जनता के बीच सोमेश चन्द्र सोरेन की कोई विशेष पहचान नहीं थी। वे भी क्षेत्र व क्षेत्र की राजनीति से कहा जाए तो अनभिज्ञ थे। लेकिन उनके पास जो था वह विरासत में पिता स्व रामदास सोरेन का नाम था। पिता के नाम व क्षेत्र में किए काम ही उन्हें घाटशिला में पार्टी के नेतृत्वकर्ता व उम्मीदवार के लिस्ट में सबसे आगे रखे रहा।
इन तमाम चीजों से शीर्ष नेतृत्व व खूद हेमंत सोरेन भी भलीभांति अवगत थे। ऐसे में जब पार्टी ने सोमेश चन्द्र सोरेन के रूप में उनपर दांव खेला तो वे सिर्फ चेहरा बने। दरअसल हेमंत सोरेन ने सोमेश चन्द्र सोरेन के जीत को सुनिश्चित करने के लिए पार्टी के तमाम नेताओं से लेकर रणनीतिकारों को लगा दिया।
यह कहना गलत नहीं होगा की घाटशिला में सिर्फ चेहरा ही बने थे सोमेश चन्द्र सोरेन, चुनाव तो उनके विधायक,सांसद व मंत्रियों ने ही लड़ा। जीत सोमेश चन्द्र सोरेन के नाम हो गई। चुनाव में देखा गया की सोमेश पूरा समय सिर्फ जनता के बीच जाकर वोट मांगने व प्रचार तक के दायित्वों में ही मशगूल थे, बाकि तमाम रणनीतियों को मंत्रियों से लेकर रणनीतिकारों ने तय किया।
जब मिलकर ताकत लगाई तो जीत का आंकड़ा पिछले बार से ज्यादा बढ़ गया। इसके बाद घाटशिला की राजनीति में सोमेश चन्द्र सोरेन के रूप में एक नया अध्याय शुरू हो गया। ऐसे में चुनावी जीत सोमेश की परीक्षा नहीं थी, इसके बाद उनके कार्य व संगठन के प्रति दायित्व असली परीक्षा होगी।

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