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94 फीसद एमजीएम में नहीं कराना चाहते हैं इलाज

कोल्हान के सबसे बड़े अस्पताल महात्मा गाधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉल

By JagranEdited By: Published: Sun, 01 Apr 2018 02:58 AM (IST)Updated: Sun, 01 Apr 2018 02:58 AM (IST)
94 फीसद एमजीएम में नहीं कराना चाहते हैं इलाज
94 फीसद एमजीएम में नहीं कराना चाहते हैं इलाज

अमित तिवारी, जमशेदपुर

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कोल्हान के सबसे बड़े अस्पताल महात्मा गाधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल की चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। जागो जमशेदपुर जागो नामक संस्था द्वारा कराए गए सर्वे में पाया गया है कि 94 फीसद लोग एमजीएम अस्पताल की व्यवस्था से नाराज हैं। वे मजबूरी में इलाज कराने के लिए यहा पहुंचते हैं। जिनके पास पैसा रहता है वो टीएमएच या फिर किसी दूसरे अस्पताल में भर्ती होना ज्यादा पसंद करते हैं। ये सर्वे 14 से 19 मार्च तक की गई है जिसमें कुल 451 लोगों की राय ली गई है।

लोगों से सवाल पूछा गया था कि क्या आप कोल्हान के सबसे बड़े अस्पताल एमजीएम की सेवा व्यवस्था से खुश है? इस पर 424 लोगों ने नाराजगी जाहिर की है। यानी 94 फीसद लोग ना में जवाब दिया है। वहीं 27 लोग यानी 6 फीसद लोगों ने हां कहा है।

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इस तरह मरीजों का घट रहा भरोसा

- चिकित्सकों में आपसी विवाद के कारण मरीजों को ऑपरेशन लगातार टाला जाता है।

- दलालों की चपेट में ब्लड बैंक, खून के नाम पर मांगे जाते हैं पैसा।

- ऑपरेशन के लिए डॉक्टर मरीजों को निजी नर्सिग होम में ले जाते हैं।

- एमजीएम में बीते दस माह में डायरिया, पीलिया, मलेरिया व सर्जरी करने के दौरान 1540 लोगों की मौत हुई।

- 30 दिन में 60 बच्चों की हो गई थी मौत।

- बीते 15 साल से सर्जरी-एनेस्थेसिया विभाग में चल रहा विवाद।

- सर्जरी विभाग में अब तक 98 बार टल चुके हैं ऑपरेशन।

- कमीशन के चक्कर में डॉक्टरों ने खराब कर दी है लेप्रोस्कोपी मशीन। जिसका लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है।

- एक सप्ताह के बाद ही खराब हो गई लेप्रोस्कोपी मशीन।

- बाहर में लेप्रोस्कोपी सर्जरी कराने पर खर्च आते हैं 30 से 35 हजार। एमजीएम में निश्शुल्क होता है।

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एमजीएम अस्पताल में लापरवाही बरतने के हैं कई बहाने

- अस्पताल में डॉक्टर-नर्स की कमी।

- 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही वार्ड में राउंड लेते हैं सीनियर डॉक्टर।

- जूनियर डॉक्टर भी नहीं रहते हैं तैनात। 24 घंटे जूनियर डॉक्टरों को तैनात रहना है।

- मरीज की स्थिति गंभीर होने पर इमरजेंसी विभाग से बुलाने पड़ते हैं डॉक्टर।

- ऐसी स्थिति में कभी-कभार देर होने की वजह से मरीज की मौत हो जाती है। चिकित्सकों का तर्क होता है कि पहले वह इमरजेंसी विभाग में आए मरीज को ही देखेंगे। इसके बाद ही वह दूसरे विभाग में जाएंगे।

- चिकित्सकों में गुटबाजी चरम पर है जिसका नुकसान मरीजों को हो रहा है।

- मरीज के बारे में चिकित्सक परिजन को कुछ भी स्पष्ट नहीं बताते हैं। इस दौरान अगर किसी मरीज की मौत होती है तो परिजन हंगामा करना शुरू कर देते हैं।

- मरीज को चिकित्सा मिल रहा है या नहीं, इसकी निगरानी करने वाला कोई नहीं है। इसी बीच जब मरीज व उनके परिजन का आक्रोश बढ़ता है तो वे हंगामा करते हैं।

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नवंबर के बाद से घट गई मरीजों की संख्या

16 नवंबर को मानगो निवासी सुखदेव राम की मौत चिकित्सकों की लापरवाही से हो गई थी। इसके बाद सरजामदा निवासी सूरज नायक की मौत चिकित्सकों की लापरवाही से हो गई थी। यह दोनों मामला शहर को झकझोर कर रख दिया था। दोषी चिकित्सकों को सस्पेंड तक दिया गया। चिकित्सकों की लापरवाही की वजह से मरीजों की संख्या अचानक से घट गई। स्थिति यह हो गई है कि सर्जरी विभाग में ऑपरेशन के लिए कोई भर्ती होना नहीं चाह रहा।

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हर माह 200 से अधिक लोग गंवा रहे जान एमजीएम अस्पताल के मेडिसीन, शिशु व सर्जरी विभाग का आंकड़ा देखा जाए तो हर माह करीब 200 लोगों की मौत हो रही है। वर्ष 2017 का जनवरी से अक्टूबर तक का आंकड़ा देखा जाए तो शिशु रोग विभाग में सबसे अधिक जुलाई माह में कुल 60 मौतें हुई हैं। वहीं सर्जरी विभाग में जनवरी माह में कुल 24 लोगों की जान गई। जबकि मेडिसीन विभाग में अगस्त माह में कुल 107 लोगों ने जान गंवाया है। इस तरह बीते दस माह में कुल 1540 लोगों ने अपनी जान गंवा चुके हैं। मौत का यह सिलसिला जारी है।


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