यहां कभी भी थम सकती है सांस, जर्जर भवन में हो रहा इलाज
ूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय जमशेदपुर से करीब 33 किलोमीटर दूर स्थित पटमदा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) इलाके के लोगों की एक मात्र उम्मीद है लेकिन ये उम्मीद इसके जर्जर भवन के साथ टूटती जा रही है।
मिथलेश तिवारी, पटमदा/जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय जमशेदपुर से करीब 33 किलोमीटर दूर स्थित पटमदा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) इलाके के लोगों की एक मात्र उम्मीद है, लेकिन ये उम्मीद इसके जर्जर भवन के साथ टूटती जा रही है। बुधवार की सुबह दैनिक जागरण की टीम सीएचसी पहुंची तो देखा कि इमरजेंसी ड्यूटी पर चिकित्सा प्रभारी डॉ. समीर कुमार मरीजों देख रहे थे। यहां संसाधन का अभाव साफ दिखा। भवन जर्जर है। मरीज उसी में इलाज कराने को मजबूर हैं। सीएचसी के भवन को देखकर लगता कि भवन अब गिरा कि तब। बगल में ही जन्म निबंधन कार्यालय भी है जो अब टूटकर गिरने लगा है। इसी भवन में जन्म लेने वाले बच्चों का निबंधन होता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कभी भी यहां बड़ा हादसा हो सकता है। यहां इलाज कराने के लिए बोड़ाम व पटमदा प्रखंड के कुल 27 पंचायत निर्भर हैं। इसकी आबादी करीब डेढ़ लाख है। लेकिन उसके हिसाब से यहां इलाज नहीं होता। सामान्य ढंग से प्रसव के अतिरिक्त सिर्फ सर्दी-बुखार का ही इलाज होता है। गंभीर बुखार जैसे मलेरिया, डेंगू, जापानी इंसेफ्लाइटिस होने पर जमशेदपुर रेफर कर दिया जाता है। रोजाना 20-25 मरीजों को रेफर किया जाता है। वहीं सीएचसी में रोजाना 150 से 200 मरीज इलाज कराने पहुंचते है।
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हादसा रोकने को लेकर माचा गांव में बना 100 बेड का अस्पताल
जर्जर भवन से मुक्ति पाने को लेकर वर्तमान सीएचसी से तीन किलोमीटर दूर पटमदा के माचा गांव में 100 बेड का अस्पताल बनाया गया, ताकि हादसा भी न हो और अधिक से अधिक मरीजों को बेहतर चिकित्सा भी मिल सके, लेकिन इस अस्पताल को खोलने में पेच फंस गया है। ग्रामीणों का कहना है कि भवन निर्माण के दौरान भूमिदाताओं को नौकरी व उचित मुआवजा देने का आश्वासन दिया गया था लेकिन अब नहीं दिया जा रहा है। इसपर ग्रामीण अड़े हुए हैं। इसी कारण से यह अस्पताल नहीं खुल पा रहा है।
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आधे से भी कम डॉक्टर व कर्मचारी तैनात
सीएचसी में डॉक्टर व कर्मचारियों की भारी कमी है। यहां कुल आठ चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं। जिसमें से तीन ही पदस्थापित हैं। इसमें डॉ. समीप कुमार, डॉ. किष्टोफन बेसरा, डॉ. मीना मुर्मू शामिल हैं। मात्र तीन डॉक्टरों के कंधे पर डेढ़ लाख आबादी का इलाज निर्भर है। वहीं आधे से अधिक नर्स व पारा मेडिकल कर्मचारियों के पद रिक्त पड़े हुए हैं।
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पटमदा प्रखंड मुख्यालय से करीब दस किलोमीटर दूर से पैदल ही अपने बच्चे का इलाज कराने आईं हूं। बेटे को सर्दी-खांसी है। यहां इलाज की सुविधा बढ़नी चाहिए। भवन भी जर्जर हो चुका है।
- सुसनी सबर, मरीज की मां।
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आठ किलोमीटर दूर से इलाज कराने आई हूं। रास्ता खराब होने की वजह से मरीजों को यहां आने में काफी परेशानी होती है। अगर मरीज थोड़ा गंभीर होता है तो उसे तत्काल एमजीएम रेफर कर दिया जाता है।
- सुकुरमनी टुडू, मांदालकोचा गांव।
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भवन काफी पुराना होने की वजह से जर्जर हो गया है। इसे तत्काल मरम्मत की जरूर है। वैसे माचा गांव में इस अस्पताल को स्थानांतरित करने के लिए एक सौ बेड का अस्पताल बनाया गया है।
- डॉ. समीर कुमार, चिकित्सा प्रभारी, पटमदा।
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