खपरैल के घर में खुशियों की बहार, बदल गई रौनक
पूनम ने ऑपरेशन से बेटी को जन्म दिया। प्रसव पर 18,500 रुपये का खर्च आया, लेकिन उन्हें एक रुपया भी नहीं देना पड़ा।
जमशेदपुर(अमित तिवारी)। वो 23 सितंबर की सुबह थी जब झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के बासुरदा गांव में रहने वालीं पूनम महतो (24) की प्रसव पीड़ा ज्यादा बढ़ गई। गांव से 14 किलोमीटर दूर जमशेदपुर सदर अस्पताल जाने के लिए उनके पति सिकंदर ने पहले तो किराये का वाहन तलाशा, लेकिन कोई साधन न मिलने पर पत्नी को मोटर साइकिल पर ही लेकर निकल गए। दोपहर एक बजकर 10 मिनट पर पूनम ने ऑपरेशन से बेटी को जन्म दिया। प्रसव पर 18,500 रुपये का खर्च आया, लेकिन उन्हें अपनी जेब से एक रुपया भी नहीं देना पड़ा।
वजह थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा झारखंड की राजधानी रांची से कुछ देर पहले ही शुरू की गई प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेवाई) यानी आयुष्मान भारत योजना। पूनम की बेटी औपचारिक शुभारंभ के बाद इस योजना की पहली लाभार्थी बनी, इसलिए उसका नाम माता-पिता ने आयुषी रखा। पति सिंकदर और पांच साल के बेटे के साथ खपरैल के घर में रह रहीं पूनम के लिए यह योजना एक बड़ी राहत बनकर आई। जब से वह गर्भवती हुई थीं तभी से उन्हें यह चिंता सता रही थी कि यदि प्रसव ऑपरेशन से हुआ तो वह इसका खर्च किस प्रकार वहन करेंगी। इसलिए पति के साथ मिलकर एक-एक रुपया जोडऩा शुरू किया, लेकिन दो हजार रुपये ही जोड़ सकीं।
जब उन्हें पता चला कि प्रसव का खर्च उन्हें नहीं चुकाना पड़ेगा तो उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ। पूनम खुद इंटर पास हैं, लेकिन वह पति के साथ खेतों में भी काम करती हैं। सिकंदर स्नातक हैं, लेकिन नौकरी नहीं मिलने के कारण निजी कंपनी में ठेका मजदूर हैं। आमदनी का यही जरिया है। पूनम कहती हैं कि कभी सोचा भी नहीं था कि गरीबों के लिए इतनी बड़ी योजना आएगी। इस योजना से गरीबों का इलाज आसानी से हो सकेगा और उन्हें अपनी जमीन या खेत बेचने की नौबत नहीं आएगी। वह कहती हैं, काफी मशक्कत से उन्होंने दो हजार रुपये जमा किए थे, लेकिन इस योजना के कारण वह बच गए, जिसे वह अब बेटी के लालन-पालन में खर्च करेंगी। रविवार को जच्चा-बच्चा की अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी और आयुषी का दुनिया में नया सफर शुरू हो जाएगा।
बदल गई रौनक
जमशेदपुर मुख्यालय से पश्चिम की ओर कई गांवों को पार करने के बाद आता है बासुरदा गांव। गांव के भीतर की सड़कें कच्ची हैं, लेकिन इतनी ऊबड़-खाबड़ नहीं। गांव में प्रवेश करते ही आयुषी के माता-पिता का मिट्टी का खपरैल का घर नजर आता है। इस घर में दो कमरे हैं। गांव की आबादी करीब एक हजार है। जब से पता चला है कि आयुषी आयुष्मान योजना की पहली लाभार्थी बनी थी, तब से गांव की रौनक ही बदल गई।