Chhau Dance: संगीत नाटक अकादमी का फेसबुक लाइव स्थगित
Chhau Dance. छऊ समुदाय आधारित नृत्य शैली (कम्युनिटी बेस्ड डांस र्फार्म) है। इसमें सभी जाति धर्म व संप्रदाय के लोग उत्साहपूर्वक शामिल होते हैं।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली (सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा मंगलवार को शाम पांच बजे से होने वाला फेसबुक सीरीज़ - 'अन्तरंग' स्थगित कर दिया गया है। इसमें सरायकेला के छऊ गुरु तपन पटनायक "छऊ - एक अनमोल सांस्कृतिक विरासत" पर व्याख्यान देने वाले थे। पटनायक ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन की वजह से यह कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है। यह कार्यक्रम इसी माह किया जाएगा, जिसकी सूचना अकादमी देगी।
दरअसल, सरायकेला-खरसावां जिले के सरायकेला राजघराने की वजह से लोकप्रिय हो चुके छऊ नृत्य से अब भी कई लोग अनभिज्ञ हैं। पहले यह सैनिकों की छावनी में शाम को मनोरंजन के लिए होता था, लेकिन यह धीरे-धीरे गांवों-कस्बों में होने लगा। इसका नामकरण षोडषकला या सोलह कलाओं की वजह से भी छऊ हुआ। बहरहाल, इसकी कई खूबियां हैं, जिसे जानने की जिज्ञासा हर वक्त बनी रहती है। इसी उद्देश्य से संगीत नाटक अकादमी मंगलवार को शाम पांच बजे से फेसबुक लाइव करा रहा है, जिसमें छऊ गुरु तपन पटनायक इस कला के बारे में बताएंगे।
पटनायक कहते हैं कि यह मूल रूप से नटराज की उपासना का नृत्य है। भाव-भंगिमा की बात छोड़ दें तो इसके आंगिक अभिनय देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। झारखंड में चड़क पूजा व गांजन पर्व, ओडिशा का धोंडा जात्रा और झारखंड की सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मानभूम, झालदा आदि में यह काफी लोकप्रिय है। यहां तक कि सरायकेला से निकलकर यह पुरुलिया, खरसावां, मयूरभंज में अलग शैली तक बन गई। इन इलाकों में यह चैत्र से ज्येष्ठ मास तक किसी न किसी रूप में उत्सव के रूप में चलता रहता है।
समुदाय आधारित नृत्य शैली
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि यह समुदाय आधारित नृत्य शैली (कम्युनिटी बेस्ड डांस र्फार्म) है। इसमें सभी जाति, धर्म व संप्रदाय के लोग उत्साहपूर्वक शामिल होते हैं। ना केवल देखने के लिए, बल्कि नृत्य उत्सव में गायन, वादन, अभिनय आदि के अंग बनते हैं। कई लोग यह समझते हैं कि हिंदू धार्मिक कथाओं पर आधारित होने से इस नृत्य में सिर्फ हिंदू ही करते होंगे, जबकि ऐसा नहीं है। इस नृत्य में गोबरकुड़ा, चाली आदि श्रेष्ठ ग्रामीण परंपराओं को भी महत्व दिया गया है, जिससे हरेक को अपनी संस्कृति-परंपरा का महत्व पता चले। अकादमी द्वारा फेसबुक लाइव सीरीज में इससे पहले पद्मश्री गोपाल दुबे व शशधर आचार्य भी छऊ पर संवाद कर चुके हैं।
लड़कियां भी कर रहीं छऊ नृत्य
नृत्यछऊ के बारे में एक धारणा यह भी है कि इसे सिर्फ पुरुष या लड़के ही करते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। गुरु तपन पटनायक बताते हैं कि वर्ष 1938 में सरायकेला राजघराने से जो टीम लंदन गई थी, उसमें दो लड़की शामिल थी। इसके बाद विदेशी लड़कियां यहां नृत्य सीखने आती रहीं, लेकिन स्थानीय लड़कियों का भाग लेना बंद था। वर्ष 1995 में पश्चिमी सिंहभूम के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे की प्रेरणा से स्थानीय लड़कियों को नृत्य सिखाना शुरू किया। अब तो लगभग हर सेंटर में लड़कियां ना केवल नृत्य कर रही हैं, बल्कि बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं।