गुदड़ी नरसंहार : 'सरकार' के आगे बेबस हमारी सरकार Jamshedpur News
चार पत्थलगड़ी समर्थक अबतक हिरासत में जरूर लिए गए हैं। इतने बड़े नरसंहार के बाद पुलिस के खाते में यही एक उपलब्धि नजर आ रही है।
जमशेदपुर (एम. अखलाक)। पश्चिम सिंहभूम जिले के गुदड़ी प्रखंड के बुरुगुलीकेरा गांव में पत्थलगड़ी विरोधी सात आदिवासियों की कुल्हाड़ी से गर्दन काटकर हत्या की घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया है। अब भी दो लोग लापता हैं। गांव से दो लोग फरार हैं। इनका कोई पता नहीं चल रहा। इन सभी को धरती निगल गई या आसमां..., बर्बर घटना के छह दिन बाद भी इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है।
एक हजार पुलिस गांव की खाक छान रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी गांव घूम आए। विरोधी दल भाजपा के नेता भी गांव जाने के लिए शुक्रवार को पुलिस से जद्दोजहद करते रहे। इस बर्बर घटना का रुख अब तेजी से सियासत की ओर मुड़ रहा है।
उधर, पत्थलगड़ी समर्थक ताल ठोंक कर शुरू से पुलिस को बता रहे कि हत्या क्यों की, कैसे की। संविधान की अपने तरीके से व्याख्या कर खुद को सरकार बता रहे हैं। पुलिस बेबस है। लाचार है। आरोपितों को गिरफ्तार भी नहीं कर पा रही। पुलिस अब एसआइटी की जांच रिपोर्ट आने का इंतजार कर रही है। हफ्ते भर में शायद यह रिपोर्ट आ जाए तो गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हो।
वैसे चार पत्थलगड़ी समर्थक अबतक हिरासत में जरूर लिए गए हैं। इतने बड़े नरसंहार के बाद पुलिस के खाते में यही एक उपलब्धि नजर आ रही है। गिरफ्तारी में इतनी देरी क्यों हो रही है, पुलिस खुुद को असहाय क्यों महसूस कर रही है, यह सवाल अब हर किसी के जेहन में शिद्दत से उठने लगा है, गूंजने लगा है। गिरफ्तारी में जितनी देरी हो रही है, सरकार भी कठघरे में खड़ी होती नजर आ रही है।
इस नरसंहार के बाद पुलिस की कार्यशैली से हर कोई जानना चाहता है कि बुरुगुलीकेरा गांव में क्या वर्षों से समानांतर सरकार चल रही थी? क्या इस बात की सूचना स्थानीय प्रशासन को नहीं थी? यदि इसकी सूचना थी तो समानांतर सरकार ध्वस्त करने के लिए क्या उपाय किए गए? नरसंहार में मारे गए उपमुखिया जेम्स बूढ़ के भाई अमरनाथ बूढ़ ने गुरुवार को मुख्यमंत्री के समक्ष जब खुलासा किया कि सौ परिवार सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं ले रहे, बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे, तो क्या इस बात की सूचना गुदड़ी के प्रखंड विकास पदाधिकारी, चक्रधरपुर के एसडीओ और पश्चिम सिंहभूम जिले के डीसी को नहीं थी?
यदि सूचना थी, तो नौकरशाहों ने समय पर कदम क्यों नहीं उठाया? गांव जाकर समानांतर सरकार चला रहे ग्रामीणों से संवाद स्थापित करने की जरूरत क्यों नहीं महसूस की? संभव है, इन सुलगते सवालों का प्रशासन के पास जवाब यह हो सकता है कि ऐसी समस्याएं तो झारखंड के कई गांवों में हैं। तो क्या इन सवालों को छोड़ दिया जाए? इस पर बात ही नहीं हो? गांवों में समानांतर सरकार यूं ही चलने दिया जाए?
लोकतंत्र में प्रशासन वह मजबूत इकाई है जो सिस्टम को पूरी तरह सिस्टम में रखने की जिम्मेदारी उठाता है। बुरुगुलीकेरा ही नहीं, झारखंड के हर गांव से इस तरह की समानांतर सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि दूसरे गांव दोबारा बुरुगुलीकेरा नहीं बन सकें। यह काम अहिंसक तरीके से संभव है। सरकार के स्तर से बस इसके लिए रणनीति बनाने की जरूरत है।