Tata Steel, JSW, SAIL : वैश्विक बाजार को चुनौती देने के लिए यूं कमर कस रही है स्टील कंपनियां
Tata Steel JSW SAIL केंद्र सरकार आत्मनिर्भर भारत के तहत देश की स्टील कंपनियों को ऐसा उत्पाद तैयार करने को कहा है जो वैश्विक मानदंडों पर खरा उतरे। फिलहाल निम्न गुणवत्ता के कारण कई कंपनियों को विदेशों से स्टील आयात करना पड़ रहा है...
जमशेदपुर : देश में वर्तमान समय मं कई कंपनियां ऐसा माल बनाती है जिसकी उपयोगिता तो है लेकिन गुणवत्ता बेहतर नहीं होने के कारण दूसरी कंपनियों को यही माल विदेशों से आयात करना पड़ता है। इसका सबसे मुख्य कारण है कि कंपनियां मध्यम या निम्न दर्जे का कच्चा माल इस्तेमाल करती है जिससे उनके माल की गुणवत्ता ज्यादा बेहतर नहीं होती और कीमत भी सामान्य से अधिक होती है। इसमें अधिकतर ऑटो सेक्टर में उपकरण बनाने वाली कंपनियां शामिल है।
उच्च गुणवत्ता वाले स्टील बनाने का दबाव
ऐसे में केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत नई पहल शुरू की है। आयात पर निर्भरता को तोड़ने के लिए केंद्र सरकार ने टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील, जेएसपीएल और सबसे बड़ी सरकारी स्टील कंपनी, स्टील ऑथिरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) जैसी प्रमुख स्टील कंपनियों से अपील की है कि वे उच्च गुणवत्ता वाले (हाई एंड) स्टील का निर्माण करे। इसके लिए कंपनियों को नई तकनीकों का इस्तेमाल करने पर जोर दिया है।
नए युग के स्टील निर्माण पर जोर
वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर नए युग के स्टील पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए नई टेक्नोलॉजी और रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) में भी काफी निवेश किया जा रहा है। हालांकि इसके लिए काफी लंबा इंतजार करना होगा। हालांकि माना जा रहा है कि कुछ देश इस दिशा में पहले ही पहल कर चुके हैं। ऐसे में केंद्र सरकार भी सभी स्वदेशी स्टील कंपनियों से नई तकनीक से नई तकनीक वाले स्टील, ओरिएंटेड इलेक्ट्रिक स्टील, नॉन ऑरिएंटेड इलेक्ट्रिक स्टील शीट, ऑटोमोटिव ग्रेड कंटीन्युअस एनील्ड प्रोडक्ट (एजीसीएपी) व रेल का निर्माण करने पर जोर दे रही है।
भारत में शुरू हो चुकी है पहल
यह हमारे लिए खुशी की बात है कि धीरे-धीरे ही सहीं लेकिन भारत में भी न्यू जनरेशन टेक्नोलॉजी पर शोध और काम शुरू हो गया है। इसके लिए भारत सरकार और स्टील कंपनियों ने अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट को मजबूत करने के लिए काफी पैसा निवेश कर रही है।
वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुमानित 0.7 प्रतिशत अनुसंधान पर खर्च किया जाता है, जिसमें सरकार 0.6 प्रतिशत और निजी उद्यम 0.1 प्रतिशत की राशि प्रदान करती है। विशेषज्ञों से बात करें, वे आपको बताएंगे कि महाशक्तियों की श्रेणी में शामिल होने के इच्छुक देश के लिए आरएंडडी के लिए जीडीपी का तीन प्रतिशत निवेश होना चाहिए। इस हिसाब भारत अब भी काफी पीछे है लेकिन शुरूआत हो चुकी है।
लिक्विड स्टील पर अधिक फोकस करता वैश्विक बाजार
वर्तमान में स्टील प्रोडक्शन करने वाली लीडिंग कंपनियां हाइब्रिड लिक्विड स्टील पर ज्यादा फोकस करती है। इसके लिए विदेशी कंपनियां टेक्नोलॉजी पर सबसे ज्यादा फोकस करती है। इसके लिए कंपनी अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर ज्यादा पैसा खर्च करती है। इससे उनके उत्पादन लागत में भी कमी आती है।
वर्तमान में जेएसडब्ल्यू स्टील की ही बात करे तो वर्ष 2024 तक कंपनी ने 18 मिलियन टन की तुलना में 36.5 मिलियन टन स्टील उत्पादन का लक्ष्य अपने लिए निर्धारित किया है। नए जनरेशन के स्टील बनाने के लिए और ऑटो सेक्टर के लिए बेहतर क्वालिटी के स्टील का निर्माण करने के लिए कंपनी ने विशेष ऑटोमोटिव स्टील पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर काम करना शुरू हर दिया है।
निप्पॉन स्टील
निप्पॉन स्टील एंड सुमितोमो मेटल कॉरपोरेशन (एनएसएसएसएमसी) के साथ टाटा स्टील के संयुक्त उद्यम की वर्ष 2011 में ही झारखंड के जमशेदपुर में संचालित है। जहां ऑटो इंडस्ट्री के लिए कंटीन्युअस एनीलिंग और प्रोसेसिंग लाइन का उपयोग करके एजीसीएपी बनाने का काम हो रहा है। टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक सह सीईओ टीवी नरेंद्रन का कहना है कि दोनों कंपनियों के बीच लगभग 40 साल पुराना संबंध हैं। हम यहां नई तकनीक के साथ ऑटो सेक्टर के लिए नए तरह के स्टील का निर्माण कर रहे हैं जो भविष्य की जरूरत है।
विदेशी तकनीक से मिल रही है मदद
जेएसडब्ल्यू स्टील और टाटा स्टील अपने विदेशी जापानी सहयोगियों की मदद से टेक्नोलॉजी से मदद मिल रही है। क्योंकि विदेशी कंपनियां अपने खुद के रिसर्च से अपने उत्पादन लागत को कम करना और बेहतर स्टील का निर्माण कर अपने पोर्टफोलियो को मजबूत रखना चाहते हैं। जैसे टाटा स्टील को तेल पाइपलाइन परियोजनाओं में इस्तेमाल होने वाले एपीआई एक्स 70 ग्रेड स्टील की आपूर्ति के लिए अनिवार्य मंजूरी मिली है।
भूकंपीय क्षेत्रों में उपयोग के लिए उच्च शक्ति, उच्च लचीलापन रिबार विकसित करने का श्रेय भी टाटा स्टील को जाता है। वहीं, 2021-22 की दूसरी तिमाही के वित्तीय आंकड़ों में जेएसडब्ल्यू स्टील ने अपने मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) द्वारा उपयोग के लिए स्वीकृत 25 नए स्टील ग्रेड व उत्पादों की एक सूची दी है। जिससे सौर पैनल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए उच्च गुणवत्ता वाले स्ट्रक्चरल स्टील, गैलवेल्यूम जीएल का निर्माण करेगी।
टाटा स्टील 2030 तक 40 मिलियन टन स्टील का करेगी निर्माण
टाटा स्टील ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 35 मिलियन टन से 40 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसके बाद स्टील टेक्नोलॉजी में टाटा स्टील का नाम पांच वैश्विक कंपनियों में शुमार होगा। ऐसा करने के लिए कंपनी ने अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट में काफी निवेश किया है।
हालांकि, टाटा स्टील पहले से ही इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रही है, इसकी पुष्टि 2020-21 में 79 नए प्रोडक्ट तैयार किया। अब तक टाटा स्टील ने 109 पेटेंट भी हासिल कर लिए हैं। चाहे वह टाटा स्टील हो या जेएसडब्ल्यू स्टील, हर साल वे वैप की बिक्री बढ़ा रहे हैं, जो बताता है कि ये कंपनियां अपने टेक्नोलॉजी और ब्रांड व पोर्टफोलियों के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। पिछले साल, टाटा स्टील की वीएपी की बिक्री 7.4 मिलियन टन थी, जब इसका हॉट मेटल उत्पादन 13.24 मिलियन टन था।
केंद्र सरकार दे रही है प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव
इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह ने सही कहा है कि यदि देश में अधिक से अधिक स्टील का उत्पादन किया जाता है तो स्पेशल स्टील की घरेलू मांग में तेजी आएगी। इससे स्टील की खपत तो बढ़ेगी ही साथ ही आयात निार्रता भी कम होगी। इसके लिए ही केंद्र सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव की घोषणा की है।
इस्पात मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, पीएलआई से 40,000 करोड़ रुपये (5.37 बिलियन डॉलर) का निवेश उत्पन्न होने की उम्मीद है, जो 2020-21 में 18 मिलियन टन से 2026-27 तक विशेष स्टील क्षमता को 42 मिलियन टन तक बढ़ा देगा। भारत में स्पेशल स्टील की अनुप्रयोग क्षमता ईवीएस और ई बैटरी, हरित ऊर्जा, विशेष रेल, निर्यात ग्रेड खाद्य पैकेजिंग और ई-कॉमर्स संचालित उच्च गुणवत्ता वाले गोदामों में अपेक्षित घातीय वृद्धि से प्रेरित होगी।