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अपनी संस्कृति और पहचान बचाने के लिए आदिवासियों को होना होगा शिक्षित : राज्यपाल Jamshedpur News

सोनारी स्थित भारत सेवाश्रम संघ में चल रहे त्रिशूल उत्‍सव में भाग लेने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू शनिवार की शाम को पहुंची।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Sat, 04 Jan 2020 04:36 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 10:16 AM (IST)
अपनी संस्कृति और पहचान बचाने के लिए आदिवासियों को होना होगा शिक्षित : राज्यपाल Jamshedpur News
अपनी संस्कृति और पहचान बचाने के लिए आदिवासियों को होना होगा शिक्षित : राज्यपाल Jamshedpur News

जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। शिक्षित समाज से ही किसी भी देश या राज्य का विकास संभव है इसलिए यदि आदिवासियों को अपनी कला, संस्कृति और पहचान बचाना है तो उन्हें भी शिक्षित होना होगा। भारत सेवाश्रम संघ द्वारा 70वें त्रिशूल महोत्सव के दूसरे दिन 19वें आदिवासी सांस्कृतिक सम्मेलन का आयोजन हुआ। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने ये बातें कहीं।

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उन्होंने कहा कि देश में 706 प्रकार की आदिम जाति और जनजाति आदिवासी निवास करते हैं। इनमें कई आदिवासियों की जनसंख्या बहुत नगण्य है और आजादी के 70 वर्षो बाद भी सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर है। लेकिन सभी तरह के अभाव के बीच आदिवासियों की कला, संस्कृति और परंपरा बहुत ही समृद्ध है इसलिए यदि इनको अपनी संस्कृति और पहचान को बचाना है तो शिक्षित होकर मुख्यधारा से जुडऩा होगा। तभी वे खुद अपनी परंपरा को संरक्षित कर पाएंगे।

 

वहीं, उन्होंने कहा कि इस तरह के सम्मेलन से आदिवासी युवाओं को बहुत कुछ सीखने, समझने का तो मौका मिलता ही है। साथ ही उनके मन की कई शंकाएं भी दूर होती है। इस मौके पर स्वामी शारस्वतनंद जी महाराज, स्वामी जगन्नाथनंद जी महाराज सहित बड़ी संख्या में स्कूल के शिक्षक-शिक्षिकाएं व बच्चे उपस्थित थे। इस मौके पर राज्यपाल ने संघ की महा मिलन स्मारिका का भी विमोचन किया।

आदिवासियों की परंपरा कम्प्यूटर युग से भी उन्नत

राज्यपाल ने बताया कि झारखंड में एक करोड़ आदिवासी जनसंख्या है। प्रकृति प्रेमी आदिवासियों का पूरा जीवन जल, जंगल और जमीन के ईद-गिर्द घूमता रहता है। इनके सभी पर्व और त्योहार भी प्रकृति से ही संबधित है। चाहे किसानी की शुरूआत करना हो या बोआई या फिर फसल काटना हो।

हर मौके लिए इनके पास गीत-संगीत है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के बीच इनके पास जडी बूटी है। ये बेटा-बेटी में कोई भेदभाव नहीं करते। इनकी परंपरा आज के कम्प्यूटर युग से भी उन्नत है। इसकी तुलना नहीं की जा सकती। सरकार इनकी लुप्त होती औषधि और परंपरा पर रिसर्च कर रही है लेकिन आदिवासियों को भी चलना होगा, उठना होगा, दौडऩा होगा। अपनी पहचान को बचाए रखने के लिए आगे आना होगा। 

शिक्षित होने पर होगा अच्छे-बुरे का एहसास

राज्यपाल ने माना कि कोई भी सरकार देश की 130 करोड़ की जनता को नौकरी नहीं दे सकती। इसलिए कई आदिवासी युवा सोचते हैं कि पढ़-लिख कर क्या होगा? जबकि शिक्षित होने पर आपको अच्छे और बुरे का एहसास होगा। शिक्षित आदिवासी युवा किसी के बहकावे में नहीं आएंगे। नौकरी नहीं मिली तो प्रयास करे कि कैसे अपनी छोटी सी जगह में वैज्ञानिक तरीके से खेती कर उत्पादन को बढ़ा सकते हैं।

उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ की तारीफ करते हुए कहा कि संघ सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर आदिवासी बच्चों को आश्रम में लाकर शिक्षित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के उत्थान के लिए केवल सरकार के प्रयास काफी नहीं, संघ सहित निजी संस्थानों को भी आगे आए और आदिवासी गांव व स्कूल को गोद लें। 

पढऩे के बाद अपनी पहचान न भूले

राज्यपाल ने कहा कि कई आदिवासी युवा शिक्षित होने के बाद अपने नाम के बाद सरनेम नहीं लगाते। इससे उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है। लेकिन वे ये न भूले कि बिरसा मुंडा भी एक आदिवासी थे, जिनकी पूरी देश-दुनिया में पहचान है। यदि कोई भी आदिवासी युवा शिक्षित हो जाता है तो यह उसका कत्र्तव्य है कि वो अपनी कला और संस्कृति के संरक्षण की पहल करे। 

अपने आपको कभी कमजोर न समझे

राज्यपाल ने कहा कि आदिवासी युवा कभी खुद को कमजोर न समझे। जिस तरह से कोयले से ही हीरा निकलता है। ठीक उसी तरह वे भी अपने आपको तराश कर बाहर निकले। अपनी पहचान बनाएं। 

स्थानीय या मातृभाषा में आदिवासियों को मिले प्राथमिक शिक्षा : उप कुलपति

सम्मेलन में कोल्हान विश्वविद्यालय की उप कुलपति ने कहा कि देश में 27 फीसदी जबकि झारखंड की 60 फीसदी आदिवासी आबादी है। झारखंड में कई दुर्लभ जनजाति हैं जो अब तक विकास से वंचित है। राज्य की 91 फीसदी आबादी अब भी गांवों में ही निवास करती है। इसलिए जरूरी है कि आदिवासियों को उनकी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में ही प्राथमिक शिक्षा दी जाए। जो ङ्क्षहदी या अंग्रेजी नहीं बोल या पढ़ नहीं सकते, उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। 

अनुदान की कमी के बावजूद संघ कर रहा है काम : सीआर मांझी

शिक्षाविद सीआर मांझी ने कहा कि भारत सेवाश्रम लंबे समय से अनुदान की कमी के बावजूद सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। संघ गांव के बच्चों को आश्रम लाकर बेहतर शिक्षा दे रहे हैं। वर्तमान में 2300 आदिवासी बच्चे संघ के प्रयास से शिक्षित हो रहे हैं। 

संघ ने जीवित रखा है भारतीय संस्कृति : आरके

समाजसेवी आरके अग्रवाल ने कहा कि पिछले 103 वर्षो से संघ सुदूर गांवों में काम करते हुए भारतीय संस्कृति को जीवित रखे हुए है। सरकार अपने स्तर तक काम करती है लेकिन संघ के सदस्य सुदूर गांवों तक पहुंचकर लोगों को शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधाएं दे रही है। 

बच्चों ने प्रस्तुत किया सांस्कृतिक कार्यक्रम

आदिवासी सांस्कृतिक सम्मेलन के मौके पर संघ के सुंदरनगर स्थित आवासीय स्कूल के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इस दौरान बच्चों ने डांडिया, ईश्वरचंद विद्यासागर के जीवन पर आधारित नाट्य मंचन, रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित कहानी तासेर देश का मंचन किया। जबकि अंत में संथाली नृत्य की बच्चों ने प्रस्तुति दी।

समारोह में दिखी झारखंड की सांस्कृतिक झलक

समारोह के दौरान झारखंड के सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखी। स्कूली बच्चों ने राज्यपाल के आगमन पर ढोल, मांदर की थाप पर नृत्य प्रस्तुत किया। इस दौरान, झारखंड, बंगाल और ओडिसा से आए बच्चों ने सरहूल के समय के नृत्य बाहा, किसानी के शुरूआत करने से पहले किए जाने वाले नृत्य ऐरो नाच, आदिवासियों के भाव-भंगिमा को दर्शाते हो नृत्य, बारिश के आगमन के लिए लांगड़े नृत्य, दुर्गा पूजा के अवसर पर प्रस्तुत किए जाने वाले दशाय नृत्य और दीपावली के समय किए जाने वाले नृत्य सरपा नृत्य की प्रस्तुति दी। 


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