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शिक्षा में अनुबंध प्रथा पर लगनी चाहिए रोक

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : केंद्र व राज्य सरकारें शिक्षा में निवेश को बढ़ायें। केंद्र सरकार

By Edited By: Published: Sun, 04 Sep 2016 02:48 AM (IST)Updated: Sun, 04 Sep 2016 02:48 AM (IST)
शिक्षा में अनुबंध प्रथा पर लगनी चाहिए रोक

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : केंद्र व राज्य सरकारें शिक्षा में निवेश को बढ़ायें। केंद्र सरकार से अभी शिक्षा के क्षेत्र में मात्र तीन से 3.5 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है। इसे कम से कम 6.5 प्रतिशत हर हाल में किया जाना चाहिए। जबकि, विकसित देश 15 से 20 प्रतिशत राशि शिक्षा के क्षेत्र में खर्च कर रहे हैं। इस कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा छात्रों को मिल रही है। अच्छे शिक्षक पैदा हो रहे हैं। यह बातें जमशेदपुर वूमेंस कॉलेज में शनिवार को आयोजित कार्यशाला में नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) के पूर्व चेयरमैन सह वर्तमान रिव्यू कमेटी के चेयरमैन प्रोफेसर मोहम्मद अख्तर सिद्दीकी ने कही। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा में भारत के कम निवेश के कारण आज निजी संस्थानों का बोलबाला है। उच्च शिक्षा की बात करें तो देश के 18 हजार कॉलेजों में से 92 प्रतिशत कॉलेज निजी हैं। छह प्रतिशत सरकारी एडेड है और मात्र दो प्रतिशत शैक्षणिक संस्थान सरकारी है। सरकार को इसका दायरा बढ़ाना चाहिए और समय पर समय पर शिक्षकों का मूल्यांकन भी होना चाहिए। यह मूल्यांकन छात्र ही करें तो और अच्छा होगा। ऐसा करने से शिक्षकों के काम करने के तरीके का पता चलता है क्योंकि, शिक्षक भी पहले एक छात्र है। यही शिक्षक छात्र को एक अच्छा शिक्षक व खराब शिक्षक बनाने का मादा रखते हैं। हमें अच्छे शिक्षकों का उत्पादन करना है। उन्होंने बीएड व एमएड को लेकर जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट पर भी चर्चा की और उसके कुछ अंशों को छात्राओं के समक्ष रखा। इससे पूर्व एनसीटीई के पूर्व चेयरमैन का स्वागत करते हुए कॉलेज की प्राचार्य डॉ. शुक्ला माहांती ने कहा कि वूमेंस कॉलेज ही झारखंड में एकमात्र ऐसा कॉलेज है, जहां छात्राएं शिक्षकों का मूल्यांकन करती हैं।

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बीएड और एमएड में भी 'नीट'

एनसीटीई की रिव्यू कमेटी के चेयरमैन प्रो. एमए सिद्दीकी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अगले साल से एक अच्छा शिक्षक बनने को उत्साहित छात्रों के लिए बीएड व एमएड में एडमिशन को नेशनल एंट्रेंस एक्जामिनिशेन फॉर टीचर्स एजुकेशन (नीट) की परीक्षा देनी होगी। उम्मीद है यह व्यवस्था वर्ष 2017 से प्रारंभ होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था को लेकर काफी प्रयत्‍‌नशील है। वे सिद्दीकी समिति की कई सिफारिशों को लागू करने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। सिद्दीकी ने बताया कि उन्होंने एमएड का कोर्स एक वर्ष का करने की सिफारिश की है, जिसके पीछे तर्क दिया है कि दो साल का कोर्स होने से छात्रों की संख्या घट रही है। इसके अलावा प्लस टू के बाद ही इंटीग्रेटेड कोर्स लागू करने का प्रस्ताव दिया गया है, ताकि प्लस टू के बाद एडमिशन के साथ ही छात्र बीएड व एमएड की डिग्री एक साथ लेकर निकले। इससे एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षक का उत्पादन किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि उत्तर पूर्वी भारत यानि झारखंड समेत तमाम राज्यों में एक अच्छे शिक्षक का उत्पादन नहीं हो रहा है, यह चिंता की बात है। जबकि दक्षिण में शिक्षकों का उत्पादन जमकर हो रहा है। इस खाई को हमें पाटना होगा। वर्ना, आने वाले दिनों में गंभीर परिणाम समाज को भुगतने होंगे।

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एनसीटीई की रीजनल कमेटियां होगी भंग

एप्रूवड शैक्षणिक संस्थानों की जांच सीधे एनसीटीई का मुख्यालय नहीं कर सकता, जिससे परेशानी का सामना करना पड़ता है। सिद्दीकी समिति की सभी सिफारिशों को अगर सरकार मान लेती है तो भुवनेश्वर समेत एनसीटीई के चार क्षेत्रीय कार्यालयों को बंद कर दिया जायेगा। इन कार्यालयों का उपयोग इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर के रूप में सरकार कर सकती है। इन रीजनल कार्योलयों का ऑडिट तक नहीं होता है। इसके लिए एनसीटीई के नियमों को बदलने की मांग उन्होंने की है, ताकि संस्थानों की जांच में एनसीटीई मुख्यालय के अधिकारी सीधे दखल दे सकें। उन्होंने कहा कि एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए टैट की परीक्षा को अनिवार्य किया गया है। वर्ष 2011 में जब वे एनसीटीई के चेयरमैन थे तो 1800 टीचर एजुकेशन केंद्रों में 800 संस्थानों को बंद करने का फरमान जारी हुआ था, उस दौरान काफी हाय-तौबा मची थी। इन संस्थानों का संचालन राजनीतिक दलों के प्रमुख व्यक्तियों द्वारा नियम कानून को ताक पर रखकर होता था। 23 ऐसे शिक्षण संस्थान थे, जिनकी निगरानी जांच चलाने की अनुशंसा उन्होंने की थी, लेकिन आज तक इस और कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्योंकि, एनसीटीई का निगरानी विभाग मंत्रालय के अधीन है। बिना मंत्रालय के वह एक कदम नहीं हिल सकता। अब जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें से कुछ कॉलेजों पर निगरानी जांच करने की हामी भरी है। उन्होंने कहा कि देश में अगर क्वालिटी एजुकेशन चाहिए तो शैक्षणिक संस्थानों को नियंत्रित करने वाले बोर्ड या फिर काउंसिल को स्वतंत्र होकर कार्य करने देना चाहिए। क्योंकि, इससे समाज का विकास निर्भर है। हां, काउंसिल द्वारा उठाये गये कदमों पर सरकार राज्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आंशिक संशोधन अवश्य करे। उन्होंने सीटेट पर कहा कि सीटेट सभी राज्यों में मान्य होना चाहिए। राज्य इसके लिए केंद्र से मिलकर संशोधन करा सकते हैं। सीटेट अगर झारखंड या फिर किसी राज्य में मान्य नहीं है तो यह अच्छी बात नहीं है। उन्होंने कहा कि शिक्षा में अनुबंध पर काम चलाने की प्रथा को तत्काल समाप्त करना चाहिए और अच्छे शिक्षकों से कार्य लेना चाहिए।


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