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चक्रधरपुर में बोलीं राज्यपाल: डिजीटल युग में भी मानकी-मुंडा पद्धति प्रासंगिक

मानकी-मुंडा संघ द्वारा विजय दिवस के अवसर पर चक्रधरपुर में कार्यक्रम को राज्यपाल ने संबोधित किया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 31 Aug 2018 05:42 PM (IST)Updated: Fri, 31 Aug 2018 05:42 PM (IST)
चक्रधरपुर में बोलीं राज्यपाल: डिजीटल युग में भी मानकी-मुंडा पद्धति प्रासंगिक
चक्रधरपुर में बोलीं राज्यपाल: डिजीटल युग में भी मानकी-मुंडा पद्धति प्रासंगिक

जेएनएन,जमशेदपुर/चक्रधरपुर: मानकी-मुंडा संघ द्वारा विजय दिवस के अवसर पर आयोजित सभा को नगर के पोड़ाहाट स्टेडियम में संबोधित करते हुए राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश और आदिवासियों के विकास के लिए काम कर रहे हैं। हो एवं हिन्दी में सारगर्भित संबोधन के दौरान राज्यपाल ने कहा कि वीरों की भूमि है कोल्हान। आप उन्हीं की संतानें हैं। राज्य में मानकी-मुंडा का इतिहास आजादी से भी पहले का रहा है। मैं भी इसी समाज का हिस्सा हूं। आप ही के बीच से आई हूं। आदिवासी समाज स्वाभिमानी रहा है। हमने किसी की भी दासता स्वीकार नहीं की। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन से भी काफी पहले 26 वर्ष पूर्व 1821 में यहां अंग्रेजों के साथ संघर्ष हुआ। उन्होंने डिजीटल युग में भी मानकी-मुंडा स्वशासन पद्धति की प्रासंगिकता कायम रहने की बात कहते हुए मिल बैठकर बात करने का आह्वान किया। कहा कि आपके द्वारा सौंपे गए आधा किलो के मेमोरेंडम का मैं सूक्ष्मता से अध्ययन करूंगी। इसके बाद संघ एक प्रतिनिधिमंडल लेकर आएं। प्रतिनिधिमंडल, अधिकारी एवं मैं एक साथ बैठकर बात करेंगे कि स्वशासन व्यवस्था को कैसे मजबूत किया जाए। अंग्रेजों के जमाने से लेकर आज तक हमारे जो अधिकार संरक्षित रहे हैं, उन्हें लेकर कैसे आगे बढ़ा जाए, इस पर हम साथ बैठकर विचार करेंगे।

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इससे पूर्व विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने अपने सम्बोधन में कहा कि आदिवसियों की स्वशासन व्यवस्था हमारी पुरातन संस्कृति जैसी ही बेहद पुरानी है। इस व्यवस्था को परंपरा के आधार पर मान्यता दी गई है। इसे अंग्रेजों के वक्त में लिपिबद्ध किया गया। अंग्रेजों के समय में राजे-रजवाड़ों के पास दो ही विकल्प थे। अंग्रेजों से लड़कर हारना या फिर उनसे संधि कर लेना। लेकिन ट्राइबल योद्धा हारते नहीं थे। बस लड़ते ही रहते थे। बाध्य होकर सर टामस विल्किंसन ने आदिवासियों की स्वशासन व्यवस्था को स्वीकार कर इसे लिपिबद्ध किया। जो कि विल्किंसन रूल्स कहलाया। 800 वर्ष पूर्व राजस्थान से राठौड़ राजपूत यहां आए। इन्हीं के वंशज सरायकेला, खरसावां, ईचागढ़ आदि क्षेत्रों के जमींदार हुए। 1857 में इस वंश के राजा अर्जुन ¨सह ने अंग्रेजों से मुकाबला किया। जिसके बाद इनका पूरा परिवार छिन्न-भिन्न कर दिया गया। राज पाट छीन लिया गया। रांची के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ भी यही हुआ। उन्होंने कहा कि प्रोग्रेसिव एटीच्यूड के साथ ताकतवर बनकर आगे बढ़ेंगे। हमारी पुरातन संस्कृति व परंपरा नैसर्गिक है। ऐसी ही नैसर्गिक हमारी स्वशासन व्यवस्था भी है। इसके कमजोर होने से आदिवासी कमजोर होगा।

इससे पूर्व नियत समय से कुछ पूर्व ही राज्यपाल के आगमन पर उनका भव्य स्वागत गीत-नृत्य के साथ किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ उन्होंने दीप प्रज्जवलित कर किया। स्वागत भाषण मानकी-मुडा संघ के केंद्रीय अध्यक्ष जुगल किशोर ¨पगुवा ने प्रस्तुत किया। जबकि केंद्रीय महासचिव रामेश्वर ¨सह कुंटिया ने मानकी-मुंडा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए मौजूदा समस्याओं को रेखांकित किया। सभा को सांसद सह प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा, विधायक जोबा माझी, बिरसा मुण्डा, कृष्णा सामड, बुधराम उरांव एवं शिवचरण पाड़ेया ने भी संबोधित किया।


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