लौहनगरी में स्कूलों के सहारे होती दिव्यांगों की दीपावली, बनाए सामान खरीद रहे बच्चे Jamshedpur News
दिव्यांगों द्वारा बनाई गई विभिन्न सामग्री की बिक्री शहर के स्कूलों में हो रही है। इन्हें स्कूल के बच्चे खरीद रहे हैं। प्राप्त आय को स्कूल प्रबंधन विभिन्न संस्थाओं में जमा करता है।
जमशेदपुर, जासं। Deepawali दिव्यांगों के विकास को लेकर गठित जमशेदपुर शहर की कई संस्थाओं के दिव्यांगों की दीपावली स्कूलों पर निर्भर है। सिर्फ दीपावली ही नहीं अन्य पर्व भी स्कूलों पर केंद्रित रहते हैं। दिव्यांगों द्वारा बनाई गई विभिन्न सामग्री की बिक्री शहर के स्कूलों में हो रही है। इन्हें स्कूल के बच्चे खरीद रहे हैं। प्राप्त आय को स्कूल प्रबंधन विभिन्न संस्थाओं में जमा करता है। दिव्यांगों द्वारा बनाई गई सामग्रियों के मूल्य दस रुपये से लेकर 100 रुपये तक होते हैं।
यहां दिव्यांग बनाते हैं मोमबत्ती के 200 आइटम
जासं, जमशेदपुर : धतकीडीह स्थित पैरेंट्स एसोसिएशन ऑफ मेंटली हैंडीकैप्ड जमशेदपुर की ओर से यहां कार्यरत 30 दिव्यांग 200 तरह के मोमबत्ती की सामग्री बनाते हैं। इनके खरीदार अधिकतर स्कूल, कॉरपोरेट हाउस तथा विभिन्न संस्थाएं हैं। सबसे ज्यादा खरीद की बात की जाए तो स्कूल ही इनके उत्पाद खरीदते हैं। स्कूलों की ओर से इस संस्था को सालाना 1.5 लाख रुपये प्राप्त होते हैं। उत्पाद बनाने वाले दिव्यांगों को यह संस्था मासिक मानदेय देती है। इस कारण मास्टर ट्रेनर का काम भी दिव्यांग ही करते हैं। दीपावली भी जमकर मनाते हैं। यहां के बच्चे अपने उत्पाद बनाने के साथ-साथ मार्केटिंग भी करते हैं। यहां की मोमबत्ती की सामग्री दीपावली, क्रिसमस, ईस्टर पर सबसे ज्यादा बिक्री होती है।
ये कहते संस्था के सचिव
दिव्यांग बच्चों के लिए यह वर्कशॉप है। वे मेहनत करते हैं, हम सिर्फ उनका मार्गदर्शन करते हैं। मांग ज्यादा हो गई है। इस कारण थोड़ी परेशानी हो रही है, लेकिन हम इसे मैनेज कर लेते हैं।
- पी बाबू राव, सचिव, पैरेट्स एसोसिएशन ऑफ मेंटली हैडीकैप्ड।
स्कूल ऑफ होप में बनती है 24 तरह की सामग्री
बिष्टुपुर स्थित स्कूल ऑफ होप के वोकेशनल ट्रेड के बच्चे 24 तरह की सामग्रियां बनाते हैं। इसमें मिट्टी के दीये को रंग कर उसे नए तरीके से सजाना व पेश करना तथा मोमबत्तियों की कारीगरी भी शामिल है। यहां दीपावली, राखी में खासकर सामग्रियां बनाई जाती है। जिन्हें स्कूलों और कॉरपोरेट हाउस में बेचा जाता है। स्कूलों से लगभग 1.5 लाख रुपये इस संस्था से प्राप्त होते हैं। प्राप्त राशि का खर्च बच्चों के विकास पर होता है। स्कूल की फीस भी माफ की जाती है।
राखी भी बनाते बच्चे
वोकेशनल ट्रेड के बच्चे दीपावली तथा राखी की सामग्रियां बनाने में माहिर हो चुके हैं। बच्चे भी इस उम्मीद में रहते है कि उनकी ओर से बनाई गई सारी सामग्रियों की बिक्री हो जाए
-मीता गांगुली, प्रिंसिपल, स्कूल ऑफ होप।
मंदबुद्धियों के सहारे कुम्हारों की जिंदगी सवार रही जीविका
जीविका पिछले 10 वर्षों से मंदबुद्धि बच्चों को खेलकूद के माध्यम से उनका शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ा रही है। इस बढ़े हुए शारीरिक स्वास्थ्य के बाद उन्हें इको फ्रेंडली काम में लगाया जाता है। पेपर के बैग, दीवावली के दीये, कपड़े के बैग, रोटी नैपकीन, शगुन बैग आदि ऐसी कई चीजें है, जो यहां के स्पेशनल बच्चे बनाते हैं। संस्था के जीविका के संचालक अवतार सिंह बताते हैं दीपावली कोके वे लोग हर साल आसनबनी के कुम्हारों से एक लाख से अधिक की खरीद की जाती है, ताकि कुम्हारों को भी बचाया जा सके। इन दीयों को यहां के स्पेशल बच्चे सजाकर बाजार व स्कूल तथा कॉरपारेट हाउस में बेचते हैं। इससे लगभग एक लाख रुपये की आय प्राप्त होती है, जो बच्चों के विकास में खर्च होती है। स्कूलों के सहारे होती दिव्यांगों की दीपावली