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    GhatsilaUpchunav : जीत की दहलीज पर मां का आशीष-कवच पहनकर मतगणना स्थल पहुंचे सोमेश

    Updated: Fri, 14 Nov 2025 07:13 PM (IST)

    घाटशिला उपचुनाव में जीत की आशा के साथ, सोमेश अपनी मां का आशीर्वाद लेकर मतगणना केंद्र पहुंचे। उन्होंने अपनी मां के आशीर्वाद को एक सुरक्षा कवच के रूप में वर्णित किया, जो उन्हें जीत की ओर ले जाएगा। सोमेश ने अपनी जीत के प्रति पूर्ण विश्वास व्यक्त किया और कहा कि उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त है।

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    शुक्रवार को मतगणना स्‍थल पर जाने से पूर्व अपनी मां सूरजमनी सोरेन का पैर छूकर आशीर्वाद लेते झामुमो प्रत्‍याशी सोमेश सोरेन।

    जासं, जमशेदपुर । घाटशिला के चुनावी महासमर का पटाक्षेप एक भावुक महाकाव्य के अंतिम अध्याय की भांति हुआ, जहां विजय के नायक ने रणक्षेत्र में प्रवेश से पूर्व अपनी जननी के चरणों में नमन किया। निर्णायक बढ़त जब विजय के सूर्य की भांति निश्चित हो गई, तब सोमेश चंद्र सोरेन ने सर्वप्रथम अपनी मां सूरजमुनी सोरेन का आशीष रूपी रक्षा-कवच धारण किया।

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    फिर विजय के उस महासागर में गोता लगाने पहुंचे, जो को-आपरेटिव कालेज के बाहर हिलोरे मार रहा था। घोड़ाबांधा स्थित उनके आवास से लेकर मतगणना स्थल तक, ढोल-नगाड़ों की गगनभेदी ध्वनि और कार्यकर्ताओं का अदम्य उत्साह इस ऐतिहासिक विजय का उद्घोष कर रहा था। 

    आशीर्वाद की छांव में विजय तिलक 

    जैसे-जैसे मतगणना के चक्र अपनी परिणति की ओर बढ़ रहे थे, सोमेश के घोड़ाबांधा स्थित आवास उस विजय-यज्ञ की यज्ञशाला बन चुका था, जहां समर्थकों का कारवां अनवरत पहुंच रहा था। जब जीत की सुगंध निश्चितता में परिवर्तित हो गई, तो घर के भीतर का दृश्य भावविभोर करने वाला था।

    सोमेश ने अपनी मां सूरजमनी सोरेन के चरण स्पर्श किए, मानो अपनी सारी सफलता उनके चरणों में अर्पित कर रहे हों। मां ने अपने विजयी पुत्र के मस्तक पर स्नेह का हाथ फेरते हुए उसे लड्डू खिलाया।

    यह केवल एक मिष्ठान्न नहीं, अपितु घाटशिला के विकास और पिता के अधूरे स्वप्नों को साकार करने का मधुर दायित्व था, जो एक मां अपने बेटे को सौंप रही थी। मां की आंखों में गर्व के अश्रु और बेटे के चेहरे पर कृतज्ञता का भाव मिलकर एक ऐसा संवाद रच रहे थे, जो शब्दों से परे था। 

    जश्न के महासागर में विजय का आगमन

    उधर, को-आपरेटिव कालेज का परिसर एक जनसागर में तब्दील हो चुका था, जिसकी हर लहर ''सोमेश सोरेन जिंदाबाद'' का जयघोष कर रही थी। शाम के पांच बजे, जब विजय का सूर्य अपने पूरे तेज पर था, सोमेश ने इस जश्न के महासागर में प्रवेश किया। उनके आगमन की प्रतीक्षा में आतुर कार्यकर्ताओं का धैर्य मानो जवाब दे गया और उन्होंने अपने युवा नेता को विजय के सिंहासन की भांति अपने कंधों पर उठा लिया।

    यह दृश्य उस अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक था, जो घाटशिला की जनता ने अपने नए नायक पर दर्शाया था। जिला परिषद अध्यक्ष बारी मुर्मू और पूर्व सांसद सुमन महतो समेत अन्य महिला कार्यकर्ता विजय के उल्लास में लोक-नृत्य में सराबोर हो गईं। झामुमो नेता हिदायत खान और राजू गिरी समेत अन्य नेता भी इस स्वर्णिम क्षण के साक्षी बनने पहुंचे।

    इस विजयी कोलाहल के बीच, सोमेश के चेहरे पर विजय की आभा तो थी, किंतु साथ ही पिता के निधन के पश्चात मिली इस महती जिम्मेदारी का बोध भी स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था। यह विजय उनके लिए केवल एक पद नहीं, बल्कि एक पवित्र धरोहर थी, जिसकी रक्षा का भार अब उनके कंधों पर था।