GhatsilaUpchunav : बेटे की हार के बाद छलका चंपाई सोरेन का दर्द, कहा- यह चुनाव नहीं, आदिवासियत बचाने की लड़ाई है
घाटशिला उपचुनाव में बेटे की हार के बाद चंपाई सोरेन ने दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह केवल चुनाव नहीं, बल्कि आदिवासियत को बचाने की लड़ाई है। उन्होंने आदिवासियों की संस्कृति और पहचान को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया और हार के बावजूद संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया।

चंपाई सोरेन।
चंपाई सोरेन ने अपने आधिकारिक इंटरनेट मीडिया पेज पर भावुक पोस्ट में लिखा कि इस चुनाव ने एक बार फिर याद दिलाया है कि झारखंड की लड़ाई राजनीतिक सीमाओं से कहीं आगे जाती है। उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई घुसपैठियों की वजह से बदलती डेमोग्राफी, धर्मांतरण, और आदिवासी समाज की सांस्कृतिक विरासत पर बढ़ते खतरे के खिलाफ है।
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि शायद इस बार वे जनता को पूरी तरह अपनी बात समझाने में सफल नहीं हो पाए। फिर भी उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि चुनाव आएंगे, जाएंगे… हार-जीत भी होती रहेगी, लेकिन हमारा समाज बचना चाहिए। हमारा अस्तित्व, हमारी आदिवासियत हर हाल में बची रहनी चाहिए।
अपने संदेश में चंपाई सोरेन ने विशेष रूप से पाकुड़ और साहिबगंज के हालात का जिक्र करते हुए कहा कि इन जिलों में डेमोग्राफिक बदलाव ने आदिवासियों को अल्पसंख्यक बना दिया है। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों की बहू-बेटियों की सुरक्षा, उनकी अस्मत की रक्षा और आदिवासी अधिकारों का संरक्षण ही उनके लिए असली हार-जीत का पैमाना है।
चंपाई ने पोस्ट में लिखा कि जब तक आदिवासियों पर अत्याचार होगा, उनके अधिकार छीने जाएंगे, तब तक यह संघर्ष चलता रहेगा। आदिवासी और मूलवासी समाज की जमीन, संस्कृति और जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए हमारी लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी।
बाबूलाल सोरेन की हार के बाद राजनीतिक गलियारों में जहां अगले समीकरणों की चर्चा तेज है, वहीं चंपाई सोरेन के इस भावुक संदेश ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके लिए यह संघर्ष चुनावी राजनीति से कहीं आगे बढ़कर समाज, संस्कृति और पहचान की रक्षा का विषय है।

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