एक टूरिस्ट गाइड की पहल से जीवंत हुई विभूति भूषण के गौरी कुंज की स्मृतियां
विकास श्रीवास्तव, जमशेदपुर : एक समय ऐसा आया जब विभूति भूषण बंदोपाध्याय का घाटशिला स्थित घर गौरीकुंज
विकास श्रीवास्तव, जमशेदपुर : एक समय ऐसा आया जब विभूति भूषण बंदोपाध्याय का घाटशिला स्थित घर गौरीकुंज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका था। इतना ही नहीं, उसपर अवैध कब्जा कर लिया गया। महान बांग्ला उपन्यासकार विभूति बाबू के नाम पर पश्चिम बंगाल सहित पूरे देश से पर्यटक घाटशिला आते थे, लेकिन गौरीकुंज की हालत देखकर काफी निराश होते थे। घाटशिला के टूरिस्ट गाइड तापस चटर्जी का मन भी पर्यटकों के नैराश्य भाव से आहत हो उठता था। उन्होंने गौरीकुंज को बचाने के लिए पहल की। शहर की पांच संस्थाओं संस्कृति संसद दाहीगोड़ा, विभूति स्मृति संसद, नेताजी पाठागार मऊभंडार, काशीदा एथलेटिक क्लब को साथ मिलाकर 2007 में गौरी कुंज उन्नयन समिति का गठन किया। इसके बाद स्थानीय प्रशासन की कार्रवाई से गौरी कुंज से अवैध कब्जा हटाया गया।
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मूल स्वरूप में संरक्षित है निवास
गठन के बाद गौरी कुंज उन्नयन समिति ने विभूति बाबू की स्मृतियों को जीवंत रखने और पर्यटन की दृष्टि से उनके भवन को मूल स्वरूप में बनाए रखने का काम शुरू किया। राजनीतिक-सामाजिक संस्थाओं से सहयोग लेकर गौरी कुंज के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए संरक्षित करने के प्रयासों के तहत सबसे पहले जरूरी था घर वैसा ही दिखे जैसा विभूति बाबू के रहते था। छत की टालियों को फिर से करीने से छत पर जमाया गया। मिट्टी की दीवार को मजबूती देने के लिए सीमेंट की बाहरी परत चढ़ाई गई। अधिक से अधिक चीजों को उनके वास्तविक स्वरूप में रखा गया।
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पांडुलिपियां, वस्त्र व पुस्तकों का संग्रहालय
घर को मूल स्वरूप में सजाने-संवारने के बाद शयन कक्ष, विश्राम कक्ष में शीशे के अंदर उनके वस्त्र, पांडुलिपियों व प्रकाशित पुस्तकों को संरक्षित रखा गया है। यहां आनेवाला हर शख्स इन चीजों को निहारता नजर आता है। गौरी कुंज उन्नयन समिति ही इस परिसर की देखरेख करती है। पर्यटकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता। जूते-चप्पल पहनकर अंदर जाने की मनाही है। परिसर में ही विभूति बाबू की प्रतिमा लगी है। परिसर में लगे फूल-पौधे यहां की खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं। यहां लगी बेंचों पर बैठकर शांति के पल गुजारते हैं।
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घाटशिला का हर कोई विभूति बाबू की स्मृतियों को जीवंत रखना चाहता है। हमारी यही कोशिश है कि जो कोई यहां आए वह उनकी स्मृतियों को संजोकर वापस लौटे। गौरी कुंज के रखरखाव में अपनी ओर से हर महीने छह-सात हजार रुपये खर्च करना पड़ता है। परिसर में ही बने स्टेज में पाठशाला शुरू करने की योजना है जहां हर किसी के लिए बांग्ला भाषा सीखने की व्यवस्था रहेगी।
- तापस चटर्जी, अध्यक्ष गौरी कुंज उन्नयन समिति