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Unsafe Forest in Jharkhand : जानें झारखंड सरकार की किस लापरवाही से है सिंहभूम में जंगल असुरक्षित और लकड़ी माफिया सक्रिय

Unsafe Forest in Jharkhand झारखंड में 1994 के बाद से आज तक फारेस्ट रेंजर की बहाली नहीं हुई है। छह रेंजर और चार फारेस्टर के भरोसे सिंहभूम में जंगल की सुरक्षा चल रही है। झारखंड में 80 फीसद पद सहायक वन संरक्षक के खाली पड़े हैं।

By Sanam SinghEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 03:03 PM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 03:03 PM (IST)
Unsafe Forest in Jharkhand : जानें झारखंड सरकार की किस लापरवाही से है सिंहभूम में जंगल असुरक्षित और लकड़ी माफिया सक्रिय
Unsafe Forest in Jharkhand :फारेस्ट गार्ड को 1 से अधिक सब बीट का प्रभार दिया गया है।

सुधीर पांडेय, चाईबासा : झारखंड राज्य का निर्माण वनों की सुरक्षा और वनों पर आधारित समुदाय का विकास को ध्यान में रखकर किया गया था मगर वर्तमान समय में यह उद्देश्य बेमानी साबित हो रहा है। इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि झारखंड में 1994 के बाद से आज तक फारेस्ट रेंजर की बहाली नहीं हुई है।

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चाईबासा वन प्रमंडल के डीएफओ सत्यम कुमार बताते हैं, एसीएफ यानि सहायक वन संरक्षक की अंतिम बहाली झारखंड अलग राज्य गठन से पहले 1989 में हुई थी। आज स्थिति यह है कि राज्य में एसीएफ व रेंजर के 80 फीसद पद खाली हैं। बात अगर पश्चिम सिंहभूम जिले की करे तो यहां फारेस्टर के कुल स्वीकृत 67 पद हैं। इनमें से मात्र 4 पदों पर ही नियुक्त है। इसी तरह रेंजर के 19 पद हैं। वर्तमान में कार्यरत केवल छह है। एक रेंजर को 2 से 3 प्रक्षेत्र का प्रभार दिया गया है।

पश्चिमी सिंहभूम में आते हैं चार वन प्रमंडल

पोड़ाहाट वन प्रमंडल के डीएफओ नितीश कुमार ने बताया कि चाईबासा वन प्रमंडल में 3 रेंज चाईबासा, हाटगम्हारिया, नोवामुंडी है। पोड़ाहाट वन प्रमंडल में 6 रेंज गिर्गा, आनंदपुर, केरा, बेरा, सोंगरा, कुंदरुगुट्टू वन प्रक्षेत्र है। कोल्हान वन प्रमंडल में 3 रेंज संतरा, सतयेबा, कोल्हान वन प्रक्षेत्र हैं। सारंडा वन प्रमंडल में कुल 4 रेंज सासंग्दा, गुवा, कोइना और समता है।

एक-एक रेंजर पर 4-5 वन प्रक्षेत्र का प्रभार

इस तरह चाईबासा के रेंजर राजेश्वर प्रसाद चाईबासा वन प्रक्षेत्र, नोवामुंडी वन प्रक्षेत्र एवं सारंडा वन प्रमंडल के सासंगदा वन प्रक्षेत्र के प्रभार में है। पोड़ाहाट वन प्रमंडल के विजय कुमार, आनंदपुर वन प्रक्षेत्र, सोंगरा वन प्रक्षेत्र, सारंडा वन प्रमंडल के कोइना वन प्रक्षेत्र मनोहरपुर के प्रभार में है। संजीव कुमार सिंह समता वन प्रक्षेत्र व जराईकेला के प्रभार में हैं। वे भी इस साल सेवानिवृत होने वाले हैं। पोड़ाहाट वन प्रमंडल के शंकर भगत कुंदरुगुट्टू वन प्रक्षेत्र के प्रभार में हैं। पोड़ाहाट वन प्रमंडल के अजय कुमार केरा वन प्रक्षेत्र और गिरगा वन प्रक्षेत्र के प्रभार में हैं। पूरे जिले में केवल दो एसीएफ हैं। पोड़ाहाट वन प्रमंडल में निरंजन कुमार एवं चाईबासा वन प्रमंडल में एलएन मरांडी हैं।

एक से अधिक सब बीट का फारेस्ट गार्ड के पास प्रभार

इसी तरह फारेस्ट गार्ड 214 हैं। स्वीकृत 331 पद हैं। फारेस्ट गार्ड को भी 1 से अधिक सब बीट के प्रभार दिया गया है। मानव संसाधन की कमी की वजह से 1-1 फारेस्टर को 4 से 5 रेंज अकेले देखनी पड़ रही हैं। ऐसे में आप ही अंदाजा लगा सकते हैं कि वनों की सुरक्षा कैसे हो रही होगी। कुछ प्रमंडलो में प्रभारी वनपाल बना कर कार्य कराया जा रहा है।

हथियार से लैस लकड़ी माफिया से निपटने के लिए फारेस्ट गार्ड को मिले हैं फाइबर डंडे

जंगल में परेशानी झेलने वाले फारेस्ट गार्ड की मानें तो अब लकड़ी माफिया भी हथियार से लैस हो गए हैं, उनसे मुकाबला करने के लिए फारेस्ट गार्ड के पास सिर्फ फाइबर डंडे होते है। अब लकड़ी माफियों भी वन विभाग की टीम पर हमला करने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे में हथियारबंद बल नहीं होने से उनका का सामना करना काफी मुश्किल होता है। आज भी बहुत स्थानों पर नेटवर्क की समस्या है। ऐसे स्थानों में करवाई करने में बहुत दिक्कत होती है। वायरलेस या वाकी टाकी नहीं होने के कारण संपर्क करने में परेशानी होती है।

फारेस्ट गार्ड के क्वार्टर में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं

वन विभाग के द्वारा सुदूर क्षेत्रो में फारेस्ट गार्ड क्वार्टर का निर्माण करवाया गया है परन्तु उन स्थानों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण आज भी बहुत से क्वार्टर खाली पड़े हुए हैं। चूंकि फारेस्ट गार्ड अग्रिम पंक्ति के कर्मचारी होते हैं। उन्हें वन सुरक्षा एवं वन प्रबंधन दोनों कार्य में सक्रिय होना होता है। उन्हें अपने सब बीट में वनों की सघनता को बढ़ाने के लिए वन संवर्धन, चेक डैम, जलाशय, वाच टावर जैसे अनेकों निर्माण कार्य करवाना होता है। इसके साथ ही उनके सब बीट में हाथियों की आवागमन की भी जानकारी रखनी होती है। कभी कभी हाथियों व अन्य जंगली जानवरों के द्वारा गांवों में नुकसान करने में ग्रामीणों के गुस्से का भी शिकार होना पड़ता है।


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