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अपने गुरुओं को समर्पित किया था विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण

हमारे जीवन में मां-बाप से बढ़कर गुरुओं का स्थान होता है। मां-बाप तो हमें जन्म देते हैं लेकिन गुरु ही हमें सही रास्ता दिखाते हैं। हम सबको कभी भी अपने आपको अपने गुरु से श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। प्राचीन काल में ऐसे भी शिष्य हुए जिन्होंने गुरुओं का वचन पूरा करने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 08:20 AM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 08:20 AM (IST)
अपने गुरुओं को समर्पित किया था विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण
अपने गुरुओं को समर्पित किया था विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण

हमारे जीवन में मां-बाप से बढ़कर गुरुओं का स्थान होता है। मां-बाप तो हमें जन्म देते हैं, लेकिन गुरु ही हमें सही रास्ता दिखाते हैं। हम सबको कभी भी अपने आपको अपने गुरु से श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। प्राचीन काल में ऐसे भी शिष्य हुए, जिन्होंने गुरुओं का वचन पूरा करने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए।

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मेरे जीवन में भी गुरुओं का महत्वपूर्ण स्थान है। आज उन्हीं की परिश्रम का फल है कि मैं अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी फलक पर भारतीय तिरंगा लहरा पाई।

शिक्षा निकेतन में पढ़ती थी। बचपन से ही मुझे खेल में रुचि थी। शुरुआत में अपने चचेरे भाई के साथ इंडियन स्टील वायर प्रोडक्ट (आइएसडब्ल्यूपी) ग्राउंड में जब खेलने पहुंची तो मुझे एथलेटिक्स में रुचि थी। मैं खेल की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थी। आइएसडब्ल्यूपी ग्राउंड में टैक एंड फील्ड की तैयारी करती थी। इसी बीच सुशांत सर की नजर मुझपर पड़ी। उन्होंने मुझे तीरंदाजी में हाथ आजमाने को कहा। बांस का धनुष (इंडियन राउंड तीरंदाजी) से अभ्यास करना शुरू किया। एक तो निशाने पर नजरें टिकाए रखना तो दूसरी ओर दम लगाकर प्रत्यंचा खींचना, यह काफी मुश्किल भरा काम होता था। बांहें दर्द देने लगती थीं। लेकिन सुशांत सर हौसला अफजाई करते रहे। राष्ट्रीय स्तर पर सब जूनियर व जूनियर वर्ग में जब पदक हासिल की तो हौसला बढ़ा। कभी-कभी जेआरडी टाटा स्पो‌र्ट्स कांप्लेक्स भी अभ्यास करने जाती थी। इसी बीच जेआरडी से पूर्णिमा मैडम व धर्मेद्र सर की नजर मुझपर पड़ी। टाटा तीरंदाजी अकादमी में दाखिला लेने के लिए ट्रायल दिया। भाग्य ने यहां साथ दिया और मेरा चयन हो गया। इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बिरसानगर के रहने वाले मेरे पिता घनश्याम बारी व माता लक्ष्मी बारी का त्याग ही था, जिसके कारण मैं यहां तक पहुंच पाई। अकादमी एक नए परिवार की तरह थी। लेकिन पहले ही दिन से मुझे कभी नहीं लगा कि मैं अपने परिवार से अलग हूं। यहां अनिल सर, विकास सर, धर्मेद्र सर व पूर्णिमा मैडम का सानिध्य मिला। हर दिन नई तकनीक सीखने को मिल रहा था। सभी प्रशिक्षक मेरा काफी ख्याल रखते हैं। यहां मैच एक्सपोजर के अलावा साथियों के बीच स्वच्छ प्रतिद्वंदिता थी, जो किसी भी खिलाड़ी के लिए जरूरी होता है। पहली बार सैफ तीरंदाजी के लिए मेरा चयन हुआ तो मैं खुशी से फूली नहीं समाई। यह अकादमी की ट्रेनिंग ही थी, जिसके कारण पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता होने के बावजूद तनिक भी नहीं घबराई। हाल ही में स्पेन के मैड्रिड में आयोजित विश्व यूथ तीरंदाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता तो सबसे पहले अपने गुरुओं को नमन किया और इस जीत को उन्हें समर्पित किया।

कोमलिका बारी

कैडेट, टाटा तीरंदाजी अकादमी

विश्व यूथ तीरंदाजी चैंपियन


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