मम्मा के उत्साह में दुलारा बढ़ा तो वेटिंग मॉम्स का पारा चढ़ा
जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स का आर्चरी ग्राउंड। शाम होते ही वेटिंग मॉम्स (जेआरडी में ट्रेनिंग के लिए आने वाले नन्हें खिलाड़ियों की माताएं) मैदान पर जुटने लगीं। देखते ही देखते साइकिल पाने की होड़ मच गई।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स का आर्चरी ग्राउंड। शाम होते ही वेटिंग मॉम्स (जेआरडी में ट्रेनिंग के लिए आने वाले नन्हें खिलाड़ियों की माताएं) मैदान पर जुटने लगीं। देखते ही देखते साइकिल पाने की होड़ मच गई। मौका था स्लो साइकिल रेस का। बचपन से लेकर आज तक महिलाओं ने साइकिल रेस में भाग लिया था, लेकिन स्लो साइकिल रेस उनके लिए नया अनुभव था। बड़ी मुश्किल। महिलाओं का कद छोटा और साइकिल ऊंची। कोई उछलकर साइकिल पर चढ़ने की कोशिश कर रही थी तो कोई इस अपनी सहेलियों से इस शान की सवारी पर चढ़ने की उपाय पूछ रही थी, लेकिन जिन वेटिंग मॉम्स को अपने कद के अनुकूल साइकिल मिली, वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी। अपनी सहेलियों को देख इतरा रही थी और मानो यह कह रही हो, मैं तो तुमसे ज्यादा किस्मत वाली हूं। उधर, मैदान के बाहर खड़े लाड़ले अपनी माताओं को निर्देश दे रहे थे, 'अरे मम्मी, ऐसे नहीं चढ़ा जाता है साइकिल पर। उफ, आपको साइकिल चलाना भी नहीं आता।' कातर निगाहों से मम्मियां कभी सहेलियों को देखती तो कभी बच्चे को देख आंखे तरेरतीं और मन में बोलती, 'आज चलो घर, तुम्हें बताती हूं। सबके सामने इज्जत का जनाजा निकाल रहा है।' उधर, बच्चों को तो मानो मौका मिल गया हो। हर दिन मम्मी के आदेश का पालन करने को मजबूर रहने वाले इन बच्चों को तो आज मानो बदला लेने का मौका मिल गया हो। इसी बीच 12 साल के धवल व छह साल की अनु दोनों भाई-बहन हैं। अपनी मम्मी आंचल सोंथालिया को भावपूर्ण निगाहों से देख रहे हैं और उनका हौसला भी बढ़ा रहे हैं, 'मम्मी, आज जीतकर ही आना।'
कुल 12 टीम। एक-एक टीम में आठ-आठ महिलाएं, यानी कुल 96 महिलाएं। चुनौती बड़ी, पर हौसला भी कम नहीं। आयोजकों ने सभी खिलाड़ियों को मैदान पर जुटने की घोषणा की। सभी महिलाएं ऐसे मैदान में प्रवेश कर रही थी, मानो कोई जंग जीतने जा रहीं हो। प्रतियोगिता के लिए प्रयोग में लाने वाली साइकिल कोई बड़ी थी तो कोई छोटी। यह देख महिलाओं की तो भृकुटी तन गई। लगीं आयोजकों पर बरसने। यह कैसी नाइंसाफी। किसी को बड़ी साइकिल तो किसी को छोटी। लगीं विरोध प्रगट करने। आधी आबादी के आगे आयोजक नतमस्तक नजर आने लगे। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि घर से जिस नारी शक्ति से बचकर निकले उसी का समाना यहां भी करना पड़ेगा। ऐसी मुसीबत कि राम-राम करते दिखे। आनन-फानन फैसला लेना पड़ा कि लॉटरी होगी और यह तय होगा कि किस टीम को ऊंची कद की और किस टीम को छोटे कद की साइकिल मिलेगी। लॉटरी हुई तो जिसे छोटे कद का साइकिल मिली उस टीम की तो बांछें खिल गई, लेकिन जिसे बड़ी साइकिल मिली वह यह फुसफुसाते मिली, आयोजकों ने हमलोगों के साथ अन्याय कर दिया।
बहरहाल, वेटिंग मॉम्स के लिए यह मस्ती भरा अनुभव था। खेल के अंत में सारे गिला-शिकवा भूल एक-दूसरे को गले लगाया और अगले गेम में फिर से मिलने का भरोसा दिया। प्रतियोगिता में टीम गंगा 26 अंक लेकर चैंपियन बनी, वहीं महानदी 22 अंक के साथ दूसरे स्थान पर नर्मदा 21 अंक के साथ तीसरे स्थान पर रही। मुख्य अतिथि नमीता कुमार ने विजेताओं को पुरस्कृत किया। पुरस्कार वितरण समारोह में रेणु भादुड़िया, पूनम सिंह, कुंतला पॉल, सतीश सिंह, सूर्य, बीके जेना, अरुण सिन्हा, गोस्वामी, बिनोद व शाहिद मौजूद थे।