टुसू को लेकर कोल्हान में उत्सव का माहौल Jamshedpur News
टुसू गीतों से गूंजने लगा वातावरण बाजार में खरीदारों की दिखने लगी भीड़ हाट में बिक्री के लिए आने लगे चौड़ल।
जमशेदपुर (अवनीश कुमार)। मकर संक्रांति के अवसर पर कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों में लगने वाले टुसू मेले की तैयारी अंतिम चरण में है। चांडिल, ईचागढ़, तिरुलडीह, नीमडीह, गम्हरिया, पोटका, पटमदा में उत्सव का माहौल है।
साप्ताहिक हाटों में टुसूमनी की मूर्ति और चौड़ल (एक तरह का मंडप) की बिक्री जोरों पर है। रंगीन कागज से नक्काशी कर बने चौड़ल लोगों को खूब भा रहे हैं। मकर संक्रांति के बाद अलग-अलग जगहों पर टुसू मेला लगाया जाएगा। जहां चौड़लों व टुसूमनी की प्रतिमा का प्रदर्शन किया जाएगा।
मेला आयोजकों द्वारा आकर्षक चौड़ल व प्रतिमाओं को नकदी व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाता है। हालांकि अधिकांश जगहों पर मकर संक्रांति के दिन टुसूमनी की प्रतिमा विसर्जन के साथ पर्व का समापन होता है।
टुसूमनी की याद में गाये जाते हैं गीत
टुसू पर्व के अवसर पर टुसू गीत गाये जाते हैं। ये गीत मुख्य रूप से बांग्ला भाषा में होते हैं। इन गीतों में जीवन के हर सुख-दुख के साथ सभी पहलुओं को समाहित किया जाता है। ये गीत प्रतिमा विसर्जन के लिए नदी में ले जाते समय टुसूमनी की याद में गाये जाते हैं। ढोल व मांदर की ताल पर महिलाएं थिरकती हैं।
चावल धुआ के साथ शुरू होता पर्व
इस वर्ष 15 जनवरी को टुसू पर्व मनाया जाएगा। 13 जनवरी को चाउल धुआ (चावल धोने) के साथ शुरू हो जाएगा। पहले दिन घरों में नये आरवा चावल को भिंगोकर लकड़ी की ढेंकी में महिलाएं कूटकर आटा बनाएंगी। जिसके बाद इस आटे से गुड़ पीठा तैयार किया जाएगा। अगले दिन बाउंडी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन घरों में विशेष पूजा की जाएगी। पूजा समाप्ति के बाद घर के सदस्य घर में बने पूस पीठा एक साथ बैठकर खाते हैं।
पर्व के मौके पर बनते हैं खास व्यंजन
टुसू पर्व पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग घरों में गुड़ पीठा, मांस पीठा, लाई लड्डू, चूड़ा लड्डू और तिल के लड्डू जैसे खास व्यंजन बनाये जाते हैं। इनमें गुड़ का पीठा सबसे खास होता है। बगैर इसके यह पर्व अधूरा रहता है।
नारी सम्मान का पर्व
टुसू पर्व को नारी सम्मान के पर्व के रूप में पूरे कोल्हान में हषरेल्लास के साथ मनाया जाता है। पर्व के दौरान कन्याओं की भूमिका सबसे अहम होती है। टुसूमनी की मूर्ति बनाकर श्रद्धापूर्वक पूजा करती हैं। पूजा के दौरान लड़कियां विभिन्न प्रकार के टुसू गीत गाती हैं। इनका साथ मां, चाची, फुआ, मौसी समेत घर की अन्य महिलाएं देती हैं। इस मौके पर तालाबों व नदियों में नहाकर लोग नये वस्त्र पहनकर टुसू मेला में शामिल होंगे।