रसोई के कचरे से अब घर में ही बनाइए खाद
रसोईघर यानी किचेन से प्रत्येक दिन निकलने वाले बेकार खाद्य पदार्थो से खाद बनाने का कार्य छात्रा सुदीप्ता दास घोष कर रही है।
वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर। रसोईघर यानी किचेन से प्रत्येक दिन निकलने वाले बेकार खाद्य पदार्थों का निष्पादन बेहद परेशानी भरा होता है। यदि आप फ्लैट में रहते हैं, तो कचरे के डिब्बे या बर्तन से निकलने वाले दुर्गंध से आप परेशान होते हैं। यदि वॉश बेसिन में बहाया तो पाइपलाइन जाम होने का डर रहता है। फ्लैट से बाहर जाकर कूड़ेदान में फेंकने के लिए आपको समय निकालना पड़ता है। ऐसे में आप यही कहेंगे कि क्या करें? इस समस्या का समाधान ढूंढ निकाला है एक्सएलआरआइ-इडीसी की छात्रा सुदीप्ता घोष दास ने। वह इन दिनों घर-घर जाकर लोगों को एक तरकीब बता रही हैं।
थोड़ा खर्चीला है, लेकिन आइडिया सबको भा रहा है। सुदीप्ता के अनुसार, रसोईघर के कचरे के निष्पादन के लिए वह लोगों को डेढ़-दो हजार रुपये में एक टेराकोटा का खूबसूरत बर्तन देती हैं। उसमें किचेन का जो भी गीला बेकार खाद्य पदार्थ जैसे रोटी, चावल, सब्जी आदि होता है, उसे डालकर ढक्कन बंद कर देना होता है। बीच-बीच में उसमें नीम की पत्ती, नारियल के छिलके और धान भी भूसी का मिश्रित पाउडर डाल कर ढक्कन बंद कर दिया जाता है। इससे न तो घर में बदबू फैलती है, न ही कीड़े लगते हैं। करीब 20-22 दिनों के बाद उस बर्तन में सूखी और भुरभुरी खाद तैयार हो जाती है। लोग इसका इस्तेमाल बागवानी में करते हैं या गमले में लगाए गए फूलों के लिए। सुदीप्ता इस खाद को खरीद कर बिक्री भी करती हैं।
जुस्को व एक्सएलआरआइ का साथ
सुदीप्ता बताती हैं कि उनकी योजना को जुस्को व एक्सएलआरआइ ने हाथों-हाथ लिया है। शुरुआत 50-50 बर्तन से हुई। जिसे कैजर बंगलो और एक्सएलआरआइ के फैकल्टी के घरों में रखा गया। इसके बाद अन्य लोग भी इस तकनीक के दीवाने हो गए। कई घरों विशेषकर फ्लैट में रहने वाले लोग इस तकनीक को बेहद पसंद कर रहे हैं। शुरुआती दौर में सुदीप्ता एक माह तक लोगों के घरों में जाकर मुफ्त में प्रशिक्षण भी देती हैं। इस काम में उनकी सहपाठी वर्षा आगीवाल भी साथ दे रही हैं।
बेंगलुरू-चेन्नई में सफल
सुदीप्ता बताती हैं कि कॉस्ट एकाउंटेंसी करने के बाद वह कृषि क्षेत्र में काम करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने घाटशिला रोड पर पांच एकड़ जमीन भी खरीदा है। इसी उद्देश्य से एक्सएलआरआइ के इडीसी (एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट सेंटर) में दाखिला लिया। यहां प्रो. मधुकर शुक्ला ने बेंगलुरू की महिला पूनम बीर कस्तूरी के बारे में बताया जो यही काम वहां कर रही हैं। सुदीप्ता बेंगलुरू जाकर पूनम से मिल कर काफी प्रभावित हुई। बेंगलुरू व चेन्नई में यह प्रयोग काफी सफल हुआ है। वैसे सुदीप्ता पश्चिम सिंहभूम के चक्रधरपुर की मूल निवासी हैं। वहीं से उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई की है। चाईबासा से इकोनोमिक्स में पीजी करने के बाद आइबीएम में वर्ष 2000 से 2014 तक नौकरी भी की।