कोरोना काल में फेसबुक से 275 महिलाओं को मिला जीने का सहारा, 7000 फॉलोअर बने खरीदार
स्वावलंबी महिलाएं अचार-पापड़ बड़ी अगरबत्ती से लेकर हैंडमेड ज्वेलरी व साड़ी सलवार सूट तक बेच रही हैं। अब तो इनके उत्पादों की श्रृंखला घरेलू सजावटी सामग्री तक पहुंच गई है जिसमें फ्लावर पॉट आर्टिस्टिक पेन पेन स्टैंड समेत बहुत कुछ है।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। कोरोना का पहला दौर मार्च 2020 में शुरू हुआ था, तो एकबारगी दहशत सी फैल गई थी। इसके बाद जब लॉकडाउन लगा तो काम-धंधे बंद हो गए। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी उन महिलाओं को हुई, जो पति की नौकरी या कमाई पर निर्भर थीं। इस दौरान सरकार के साथ-साथ तमाम संस्थाओं से जरूरतमंदों को भोजन व राशन बांटा जा रहा था, लेकिन जब यह दौर लंबे समय तक चला तो आर्थिक संकट गहराने लगा। ऐसे समय में शिक्षिका संघमित्रा बासु पाल ने अपने फेसबुक पेज स्वास्तिक बीटीएम से जुड़ी सदस्यों को प्रस्ताव दिया कि वह घर में अपने बनाए उत्पाद इस पेज पर लाइव करें और आर्डर बुक करें।
साकची स्थित शारदामणि गर्ल्स हाईस्कूल की शिक्षिका संघमित्रा बासु पाल बताती हैं कि यह पेज उन्हें 2018 में बनाया था। तब इस पेज का नाम और उद्देश्य अलग था। स्वास्तिक बीटीएम (ब्यूटी टिप्स एंड माेर) में स्वामी रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा व स्वामी विवेकानंद के उपदेश-विचार भी साझा किए जाते थे। कोरोना काल में इसका उपयोग रोजगार देने में हुआ। इससे करीब 275 महिलाओं को रोजगार मिला, जिसमें वे घर में बनाए मसाला, पापड़, मिक्सचर, बैग, खिलौने समेत अन्य उत्पाद अब भी बेच रही हैं। इसमें जमशेदपुर की करीब 70 महिलाएं हैं, जबकि शेष झारखंड व पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा समेत दूसरे राज्यों से जुड़ी हैं। इस पेज से करीब सात हजार सदस्य जुड़ी हैं, जो इनके उत्पाद खरीदती हैं।
ग्रुप के लिए कोइ शुल्क नहीं
राहत की बात यह रही कि लॉकडाउन में भी कोरियर या होम डिलीवरी सिस्टम चालू था। इस पेज के माध्यम से जुलाई 2021 तक करीब 1.75 लाख का कारोबार हुआ था। इसमें अलग-अलग समय पर महिलाओं को अपने उत्पाद प्रदर्शित करने के लिए एक घंटे का समय दिया, जो फेसबुक लाइव पर अपने उत्पाद की खासियत बताती थीं। इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, क्योंकि हमारा उद्देश्य जरूरतमंद महिलाओं की मदद करना है। दूसरे ग्रुप में इसके लिए शुल्क लिया जाता है, लेकिन हमारे ग्रुप में महिलाएं सीधे आर्डर लेती हैं और उत्पाद बेचती हैं। इस तरह से घरेलू महिलाएं स्वावलंबी बनीं। अब जबकि सभी दुकानें खुल गई हैं, लेकिन ये अब भी अपना कारोबार इसी माध्यम से कर रही हैं। कई सदस्य इनके स्थायी ग्राहक भी बन गए हैं। एक महिला घर बैठे न्यूनतम सात से आठ हजार रुपये कमा रही है।
ज्वेलरी से साड़ी तक बिक रही
संघमित्रा बताती हैं कि स्वावलंबी महिलाएं अचार-पापड़, बड़ी, अगरबत्ती से लेकर हैंडमेड ज्वेलरी व साड़ी, सलवार सूट तक बेच रही हैं। अब तो इनके उत्पादों की श्रृंखला घरेलू सजावटी सामग्री तक पहुंच गई है, जिसमें फ्लावर पॉट, आर्टिस्टिक पेन, पेन स्टैंड समेत बहुत कुछ है। इनके उत्पादों की अलग-अलग खासियत भी है, जिसकी इन्होंने दिसंबर में बिष्टुपुर स्थित मिलानी हॉल में दो दिवसीय सामूहिक प्रदर्शनी भी लगाई थी।