अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शिता से कोल्हान बना भगवा दुर्ग
यह अटल बिहारी वाजपेयी की सियासी दूरदर्शिता का ही कमाल रहा कि कोल्हान में भाजपा ने मजबूती से अपनी जड़े जमा लीं।
जेएनएन, जमशेदपुर। यह अटल बिहारी वाजपेयी की सियासी दूरदर्शिता का ही कमाल रहा कि कोल्हान में भाजपा की जड़ें अति गहरी होती चली गई। 1990 के दशक में झामुमो की बढ़ती ताकत में महतो वोटबैंक की अहमियत को भाजपा भांप चुकी थी। संयोग से उस समय झामुमो महासचिव रहते जमशेदपुर से लोकसभा में पहुंचे शैलेंद्र महतो प्रतिकूल सियासी झंझावात में फंस गए। तब तक 1999 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया। शैलेंद्र महतो को भाजपा जैसे मजबूत दल की आवश्यकता थी और भाजपा को उनके जैसे कद्दावर महतो नेता की। सियासी हालात कुछ ऐसे बने कि भाजपा ने सांसद रिश्वत कांड में फंसे शैलेंद्र को अपनाने से गुरेज नहीं किया और उनकी पत्नी को आभा महतो को जमशेदपुर लोकसभा सीट से टिकट भी दे दिया। यह वाजपेयी की राजनीतिक दूरदर्शिता थी और उनका आकलन सौ फीसदी सही निकला।
आभा महतो लगातार दो बार जमशेदपुर से भाजपा टिकट पर चुनाव जीतीं। पूरे कोल्हान समेत झारखंड के अन्य इलाकों में भी भाजपा का महतो कार्ड चल निकला। वर्ष 2000 से लेकर अब तक के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा का परचम लहरा रहा है। आपातकाल के बाद शहर के लोगों में भरा था विश्वास पूरे देश में उथल-पुथल मची थी। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर छात्र आंदोलित थे। तत्कालीन केंद्र सरकार की ओर से देश में आपातकाल लागू किए जाने के बाद चारों तरफ गुस्से का आलम था। शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता मनोरंजन दास उस वक्त को याद करते हैं, जब आपातकाल समाप्त होने के बाद अटल जी शहर आए थे। स्मृतियों को टटोलते हुए मनोरंजन दास बताते हैं- 1977-78 में जनता पार्टी की सरकार गठित हो चुकी थी। अटल जी शहर आए तो छात्रों के बड़े समूह के बीच घिरे रहे।
छात्र उन्हें लेकर साकची बसंत टॉकीज के पास पहुंचे, जहां जेपी आंदोलन के दौरान तीन छात्र पुलिस की गोली से मारे गए थे। उस जगह को शहीद स्थल कहा जाता था। छात्रों व आम जनता की भीड़ में घिरे रहे। उनके बीच नया विश्वास भरा। वहीं पर उनके साथ सान्निध्य का अवसर मिला। मुझे समझ में आया कि वे क्यों इतने प्रख्यात थे। अद्भुत व्यक्तित्व। हर किसी की सुनने की उत्कंठा। अटल जी क्या बोलेंगे, इसका बेसब्री से इंतजार होता था। भाषा पर पकड़, शब्दों का चयन ऐसा कि सुननेवाला सम्मोहित हो जाता था। मुझे भी उनकी सेवा का अवसर मिला। रीगल मैदान में भाषण देने के बाद वे गाड़ी में उनके साथ सर्किट हाउस गया। अचरज हुआ यह देखकर कि पांच-सात मिनट के समय में भी वे किताब खोलकर पढ़ने लगे। यानी एक मिनट समय भी नहीं गंवाते थे।
किताब में बुकमार्क लगा था। सर्किट हाउस पहुंचे तो जितना पढ़ा, वहां बुकमार्क लगाकर बंद कर दिया। अफसोस, भारत को ऐसा दिन भी देखना पड़ा कि अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। मेरा मानना है कि देश क्या, विश्व में उनके कैलिबर का नेता नहीं। मुझे तो पार्लियामेंट में भी उन्हें सुनने का सौभाग्य मिला। विरोधी नेता भी उन्हें सुनने का इंतजार करते थे।