54 एकड़ के चक्कर में फंस गया झारखंड का इकलौता स्पेशल इकोनामिक जोन
54 एकड़ जमीन के चक्कर में झारखंड का इकलौता स्पेशल इकोनामिक जोन नहीं बन सका। यह जमशेदपुर से सटे आदित्यपुर क्षेत्र में बनना था।
जमशेदपुर [वीरेंद्र ओझा]। कोल्हान प्रमंडल के सरायकेला-खरसावां जिले के आदित्यपुर क्षेत्र के गम्हरिया में 276 एकड़ जमीन पर बनने वाला झारखंड का इकलौता सेज (स्पेशल इकोनामिक जोन) सपना बन कर रह गया। पर्यावरण मंत्रालय से इजाजत लिए बिना ही आयडा (आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार) ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा से इसका शिलान्यास तक करा दिया था।
वन विभाग की 54 एकड़ जमीन नहीं मिली और सरकार ने प्रोजेक्ट रद कर दिया। यदि सेज बन गया होता तो कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों की सूरत ही बदल गई होती। वर्ष 2001-02 में राज्य सरकार ने सेज बनाने का निर्णय लिया था। इसके लिए आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को चुना गया। यह जगह गम्हरिया थाना के सामने इंडेन बाटलिंग प्लांट जाने के रास्ते में दायीं ओर है। यहां पहले जंगल था। अब भी जंगल है। सेज का कोई नामोनिशान तक नहीं है। सिवाय एक अर्धनिर्मित भवन व दूर दिखने वाली पानी टंकी के। प्रस्तावित जमीन के आसपास बस्तियां बस गई हैं। मेन रोड से एक पतली कच्ची सड़क भूखंड के पास से अंदर जाती है। यह बस्ती के लोगों के लिए रास्ता है।
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तब एक हजार करोड़ के निवेश की थी संभावना
प्रस्तावित सेज में लगने वाली कंपनियों को सरकारी टैक्स में 50 फीसद छूट देने की बात थी। तब सरकार ने कम से कम 1000 करोड़ रुपये निवेश की संभावना जतायी थी। यहां ओएनजीसी ने बाटलिंग प्लांट लगाने का प्रस्ताव भी आयडा को दे दिया था। इसके अलावा ऊषा मार्टिन, आरएसबी ग्रुप, टिस्को ग्रोथ शॉप समेत कई कंपनियों के प्रस्ताव आए थे। सरकार ने इस बात की तैयारी भी शुरू कर दी थी कि 90 एकड़ जमीन पर उद्योग लगने के बाद शेष भूखंड को कैसे विकसित किया जाएगा।
अनापत्ति प्रमाणपत्र लिए बिना ही शिलान्यास
इस प्रस्तावित सेज के लिए सबसे पहले आयडा (आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार) ने 90 एकड़ भूखंड आवंटित किया। प्रमोटर के लिए जुस्को व गैमन कंसोर्टियम चुने गए। इन्हें आधारभूत संरचना तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। कुछ निर्माण हुए, लेकिन इसके बाद काम लटक गया। दरअसल इसमें 54 एकड़ वन भूमि थी। लिहाजा आयडा ने वर्ष 2009 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय को अनापत्ति प्रमाणपत्र के लिए आवेदन भेजा। स्वीकृति के इंतजार में काम ठप रहा। हद तब हो गई जब वर्ष 2013 में मंत्रलय ने आयडा से कुछ बिंदुओं पर जवाब मांगा। वन मंत्रलय ने जमीन देने से मना कर दिया। अंतत: वर्ष 2016 में राज्य सरकार ने प्रोजेक्ट को रद कर दिया।