पुरानी संस्कृति को जीवित रखने के लिए की जा रही गुड़िया पूजा
पूर्वी सिहंभूम में रहने वाले दक्षिण भारत के विभिन्न भाषा-भाषी के लोग शारदीय नवरात्र के दौरान दुर्गा जी की पूजा अर्चना अपने ही रीति रिवाज के अनुसार करते आ रहे है।
गुरदीप राज, जमशेदपुर : पुरानी संस्कृति को जीवित रखने के लिए दक्षिण भारत के तेलुगु, कन्नड़ व तमिल समाज के लोगों द्वारा आज भी बोम्मालुकोलू (गुड़िया) पूजा किया जा रहा है, ताकि युवा पीढ़ी अपनी समाज की इस परंपरा को आगे भी जारी रखे। पूर्वी सिहंभूम में रहने वाले दक्षिण भारत के विभिन्न भाषा-भाषी के लोग शारदीय नवरात्र के दौरान दुर्गा जी की पूजा अर्चना अपने ही रीति रिवाज के अनुसार करते आ रहे है। तेलुगु समाज के लोग इस नवरात्र के मौके पर नौ दिनों तक घर में रह कर ही गुड़िया पूजा करते हैं।
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ऐसे होती है गुड़िया पूजा
दक्षिण भारत के आंध्र और तेलंगाना समाज के लोग अपने घरों में सीढ़ी नुमा पूजा स्थल बनाकर खिलौनों को सजाते हैं। सीढि़यां विषम संख्या होती है। इन सीढि़यों में ईश्वर की अलग-अलग रूप की छोटी-छोटी मूर्तियां भी रखी जाती है। इस पूजा स्थल में सुबह व शाम मां को भोग लगाकर महिलाएं दुर्गा जी की अराधना करती है। आस पास के लोग भी इस पूजा में शामिल होते हैं।
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नौ अवतार की होती है पूजा
गुड़िया पूजा में शक्ति की देवी के नौ अवतार शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कृष्मांडा, स्वकंदमाता, कात्यायानी, कालरात्री, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इसके साथ ही गुड़िया पूजा के दौरान शिव-पार्वती, गणेश, विष्णु दशावतार, अष्टलक्ष्मी अवतार, विद्या अवतार की भी पूजा-अर्चना की जाती है। सीढि़यों को पौराणिक कथाओं के आधार पर सजाया जाता है। दसवें दिन किसी एक मूर्ति को भजन गाकर सुलाया जाता है। बाकी के सभी मूर्तियां व गुड़िया को उठाकर एक बक्शे में बंद कर रख दिया जाता है। इसके पश्चात जिस मूर्ति को भजन गाकर सुलाया जाता है उस मूर्ति को भी उठाकर उसी बक्शे में रख कर दिया जाता है।
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आकर्षक तरीके से सजाया जाता है पूजा स्थल
गुड़िया पूजा स्थल को आकर्षक तरीके से सजाया जाता है। 15 दिनों पहले ही इसकी तैयारी तेलुगु समाज के लोगों द्वारा शुरू कर दी जाती है। मान्यता है कि इस पूजा के दौरान समाज के जिन लोगों की मन्नत पूरी होती है वे एक गु़ड़िया भेंट स्वरुप इस पूजा स्थल पर चढ़ाते हैं।
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'बोम्मालुकोलू पूजा दक्षिण भारतीयों की पुरानी परंपरा के अनुसार की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा को निभाते हुए करते हैं। सीढ़ीनुमा पूजा स्थल पर शक्ति की देवी के विभिन्न अवतारों की मूर्ति रखकर शक्ति की अराधना की जाती है। फिर उसी सीढ़ी व मूर्तियों के इस्तेमाल दूसरे वर्ष भी किया जाता है।
- सीएच माधुरी पूर्व शिक्षिका आंध्र एसोसिएशन स्कूल