खिलाड़ियों के लिए अच्छी खबर: दिव्यांग पदक विजेताओं को भी मिलेगी पेंशन
दिव्यांग प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए अच्छी खबर है। दिव्यांग पदक विजेताओं को सरकार आजीवन पेंशन देंगी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष शुरू होगा।
जमशेदपुर, जासं। एथेंस स्पेशल ओलंपिक्स समर गेम्स में पदक जीतने वाली सोनारी की गंगाबाई जैसी हजारों पदक विजेताओं को अब निराश नहीं होना पड़ेगा। केंद्रीय युवा व खेल मंत्रालय ने वैसे प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को पेंशन देने जा रही है, जिन्होंने ओलंपिक, कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स और वल्र्ड कप, वल्र्ड चैंपियनशिप, पैरालिम्पिक गेम्स में पदक जीता हो।
वह 30 वर्ष का हो गया हो या खेलकूद में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पा रहा हो। इन दोनों में जो परिस्थिति बाद में आएगी, आजीवन पेंशन का हकदार होगा। फिलहाल 627 खिलाड़ी 12-20 हजार रुपये मासिक पेंशन पा रहे हैं। मंत्रालय खिलाडिय़ों के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष योजना भी लागू करने जा रही है, जो खेलने में अक्षम हों या इलाज करा रहे हैं। ये योजनाएं निश्शक्त खिलाडिय़ों पर लागू होंगी। यह जानकारी राज्य मंत्री किरण रिजुजू ने राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल पर दी।
रांची के ज्योति शर्मा का ट्वीट पर खेल मंत्री ने लिया संज्ञान
दैनिक जागरण ने गंगाबाई की व्यथा को 16 जून 2019 अंक मेेंं 'गोल्ड लाने वाली गंगा बना रही ठोंगा' शीर्षक से छापा था। रांची के सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति शर्मा के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास व केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू को टैग कर दैनिक जागरण में छपी खबर को ट्वीट किया था। खेल मंत्री ने इस ट्वीट का संज्ञान लिया और गंगाबाई का बायोडाटा उपलब्ध कराने को कहा। गंगाबाई के कोच अवतार सिंह के माध्यम से ज्योति शर्मा में केंद्रीय खेल मंत्रालय कार्यालय को गंगाबाई की उपलब्धियों के बारे में जानकारी दी। खेल मंत्रालय ने इसे आधार बनाकर वैसे पदक विजेता खिलाडिय़ों को पेंशन देने की घोषणा दी, जो 30 साल के हो चुके हैैं।
आज भी ठोंगा बना रही गंगा बाई
2011 में एथेंस में हुए स्पेशल ओलंपिक्स समर गेम्स में भारतीय दल का प्रतिनिधित्व कर देश के लिए गोल्ड और सिल्वर मेडल दिलाने वाली सोनारी की गंगाबाई मूक बधिर हैैं। वह आज भी ठोंगा बनाकर जीविकोपार्जन कर रही है। बैडमिंटन की दीवानी गंगाबाई जन्म से ही मूक-बधिर हैं। विशेष बच्चों के लिए बनाए गए स्कूल ऑफ होप में रह कर उन्होंने खुद को इस कदर तराशा कि खेल जगत में शीर्ष उपलब्धि अर्जित की। गंगाबाई जन्म से ही बोलने और सुनने में अक्षम थीं। घर-परिवार के लोग उदास थे। लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन स्वयंसेवी संस्था जीविका की उस पर नजर पड़ी। विशेषज्ञ अवतार सिंह ने गंगाबाई के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। फिर इस कदर तराशा कि गंगाबाई हीरे की तरह चमक उठीं। गंगाबाई और उनके माता-पिता आज भी अवतार सिंह को भगवान की तरह सम्मान देते हैं।
टाटा स्टील के कैलेंडर में छपी थी गंगा की पेंटिंग
जीविका के अवतार सिंह ने ही उसे कागज का थैला व ठोंगा बनाने का प्रशिक्षण दिया था। अवतार सिंह बताते हैं कि गंगाबाई बहुत मेहनत करती है। उसे जितना काम दिया जाता है पूरा कर दोबारा काम मांगने चली आती है।खेल के साथ-साथ अपनी भावनाओं को कैनवास पर उकेरने वाली गंगाबाई शानदार पेंटिंग भी बनाती हैं। उनकी एक पेंटिंग को टाटा स्टील ने अपने वार्षिक कैलेंडर में भी स्थान दिया था। तमाम मजबूरियों के बाद भी शहर के आयोजनों में उनकी सक्रियता देखते बनती है। वह नृत्यकला में भी रुचि रखती हैं। शहर की कला बिरादरी में उन्हें हर कोई सम्मान की नजर से देखता है। गंगा के कंधे पर ही 75 साल के पिता सोहनलाल, मां दुगधी देवी और एक छोटे भाई का बोझ है।