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डिग्री बेच हर माह 32 लाख रुपये कमा रहे फार्मासिस्ट

पूर्वी सिंहभूम जिले में औषधि विभाग आनलाइन हो गया है फिर भी बगैर फार्मासिस्ट के लगभग 50 फीसद दवा दुकानें संचालित हो रही हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के संज्ञान में भी यह मामला है उसके बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 07:58 PM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 07:58 PM (IST)
डिग्री बेच हर माह 32 लाख रुपये कमा रहे फार्मासिस्ट
डिग्री बेच हर माह 32 लाख रुपये कमा रहे फार्मासिस्ट

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम जिले में औषधि विभाग आनलाइन हो गया है फिर भी बगैर फार्मासिस्ट के लगभग 50 फीसद दवा दुकानें संचालित हो रही हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के संज्ञान में भी यह मामला है, उसके बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही है।

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जिले में औषधि विभाग तीन साल से आनलाइन काम कर रही है। आनलाइन का मकसद दवा दुकानों का सारा विवरण विभाग के पास कंप्यूटर में दर्ज होना है। ड्रग इंस्पेक्टर एक क्लिक में किसी भी दवा दुकान की जानकारी हासिल कर सकते हैं। उसके बावजूद बगैर फार्मासिस्ट व फर्जी कागजात के नाम पर दुकानें संचालित होना गंभीर सवाल खड़ा करता है। विभाग व गलत ढंग से संचालित दवा दुकानों के बीच चल रहे इस खेल की सारा जानकारी अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को अवगत कराया था। उनके द्वारा जल्द ही कार्रवाई करने का भरोसा दिया गया था लेकिन अबतक कार्रवाई नहीं होने से जिले के प्रमाणित फार्मासिस्ट चितित है। एसोसिसएशन के अनुसार, जिले में लगभग 400 फार्मासिस्ट रजिस्टर्ड है। जबकि दवा दुकानें एक हजार से अधिक संचालित है। ऐसे में 600 दुकानें कैसे चल रही है, यह जांच का विषय है।

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फर्जी डिग्री बेच हर माह 7-8 हजार रुपये कमा रहे फार्मासिस्ट जिले में बगैर फार्मासिस्ट के संचालित होने वाली दवा दुकानों में वैसे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने अपनी डिग्रियां बेच रखी है। लाइसेंस उनके नाम पर जारी होता है लेकिन वे रहते कहीं और है। जांच में इस तरह के खुलासे भी हो चुके हैं। सिर्फ डिग्री के एवज में वे हर माह 7 से 8 हजार रुपये लेते है। वैसे लोगों की संख्या लगभग 400 है। यानी हर माह 32 लाख रुपये गलत ढंग से वे लोग कमा रहे हैं। इन लोगों को अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए पूरी तरह से फर्जी करार दिया है। उनके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने तीन जुलाई 2017 को एक फैसला सनाया है जिसमें उन्होंने कहा है कि जो लोग 1958 के बाद से अपने अनुभव के आधार पर फार्मासिस्ट की डिग्री हांसिल किए हैं उनका रिन्यूअल व रजिस्ट्रेशन बंद किया जाए। उसके बाद से उन लोगों का रिन्यूअल व रजिस्ट्रेशन दोनों बंद हो चुका है। उसके वाबजूद उनके नामों पर दवा दुकानें संचालित हो रही है।

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लाइसेंस दिलाने को दलाल सक्रिय दवा दुकान का लाइसेंस लेने के लिए मात्र तीन हजार रुपये शुल्क है लेकिन दलालों की सक्रियता इतनी बढ़ गई है कि एक दुकान का लाइसेंस लेने में 50 से 60 हजार रुपये खर्च आ जाता है। जबकि इसी दलाली प्रक्रिया को खत्म करने के लिए आनलाइन की शुरुआत की गई थी। इसमें विभाग के पदाधिकारियों का भी मिलीभगत बताया जाता है।

----------- आनलाइन होने का यह था मकसद - लाइसेंस के लिए ड्रग विभाग का चक्कर लगाने से मुक्ति। - समय पर लाइसेंस बनना और नवीकरण होना। - शहर की सभी दवा दुकानों पर एक साथ रखी जा सकेगी नजर। - अवैध रूप से चलने वाली दवा दुकानों होंगी बंद। - दवा दुकानों पर फार्मासिस्ट, कोल्ड चेन और दवा की होगी पूरी जानकारी।

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यह एक गंभीर मामला है। इसकी शिकायत स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से की गई है। उम्मीद है कि जल्द ही कार्रवाई होगी।

- शशिभूषण सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन।

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गलत ढंग से कोई भी दवा दुकानें संचालित नहीं की जा सकती हैं। जब भी शिकायत आती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है।

- राजीव एक्का, ड्रग इंस्पेक्टर, जमशेदपुर।


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