samvad 2018: लद्दाख के नृत्य और इंडोनेशिया के संगीत की युगलबंदी
इंडोनेशिया के पपुआ आईलैंड से धानी समुदाय से नियाज व अल्फियान ने अपने पारंपरिक परिधान में नृत्य प्रस्तुत किया।
जमशेदपुर,जेएनएन। लद्दाख के नृत्य और इंडोनेशिया के संगीत की युगलबंदी से लौहनगरी सांस्कृतिक विविधता के रंग में रंग गई। यहां जनजातीय सम्मेलन संवाद में दूसरे दिन लद्दाख, केरल सहित झारखंड के विभिन्न समुदायों ने कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से अपनी संस्कृति से शहरवासियों को परिचित कराया।
नृत्य से दर्शायी वैवाहिक पद्धति
कार्यक्रम का आगाज ओडिशा के रायगढ़ा से आए डोगिंया समुदाय के नृत्य से हुआ। इस नृत्य में ईश्वर से आयोजन को सफल बनाने की कामना की गई। वहीं, मुख्य नृत्य में लद्दाखियों ने बोटो नृत्य द्वारा अपने यहां की वैवाहिक पद्धति को दर्शाया। नृत्य में दिखाया कि कैसे लड़के वाले विवाह के लिए लड़की का हाथ मांगने जाते हैं।
कुंडली मिलने पर लड़के के चाचा शगुन के रूप में लड़की को पैसे और सफेद स्कॉफ देते हैं। वहीं, यहां की लड़कियां विवाह के समय सिर पर पारंपरिक पोशाक पीरक पहनती हैं जो मां अपनी बेटी को देती है और यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेगी। वहीं, विवाह के बाद लड़का-लड़की को कालीन पर बैठा खिलाया जाता है। लड़के के बाद लड़की खाती है व इसके बाद ही दोनों को पति-पत्नी का दर्जा दिया जाता है।
केरल के कलाकारों ने प्रस्तुत की कोलकली नृत्य
केरल के कलाकारों द्वारा अपने विभिन्न पर्व-त्योहारों में किए जाने वाले नृत्य, कोलकली की प्रस्तुति दी। इस नृत्य के द्वारा वे ईश्वर से समृद्धि और सभी की खुशहाली की कामना करते हैं। वहीं, कलर्स ऑफ झारखंड के तहत झारखंड की 32 जनजातियों में सिंगा, साल, नायके, बनाम, सोहराय द्वारा पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुति दी गई। इस नृत्य के द्वारा वे प्रकृति के प्रति अपनी आस्था, विश्वास को दर्शाया।
इंडोनेशिया के नृत्य दल ने बांधा समां
इंडोनेशिया के पपुआ आईलैंड से धानी समुदाय से नियाज व अल्फियान ने अपने पारंपरिक परिधान, चांवर और जानवरों के हड्डियों से आभूषण धारण कर नृत्य प्रस्तुत किया। नियाज बताते हैं कि कृषि, शिकार और मछली मारकर वे अपना जीवनयापन करते हैं। लेकिन उन्होंने चिंता जाहिर की कि वैश्विक दौर में उनके समुदाय के युवा आधुनिकता के पीछे दौड़ लगाकर अपनी सभ्यता-संस्कृति को भूल रहे हैं।