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बहन को थाईलैंड भेजने वाला था जसपाल

साकची निवासी तीरंदाज जसपाल सिंह अपनी बहन जसवीर कौर को बहुत मानता था। उसे वह फैशन डिजाइनिंग का कोर्स थाईलैंड में करा रहा था। 13 फरवरी को दोबारा वह अपनी बहन को थाईलैंड भेजने वाला था।

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 Feb 2019 07:00 PM (IST)Updated: Thu, 07 Feb 2019 07:00 PM (IST)
बहन को थाईलैंड भेजने वाला था जसपाल
बहन को थाईलैंड भेजने वाला था जसपाल

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : साकची निवासी तीरंदाज जसपाल सिंह अपनी बहन जसवीर कौर को बहुत मानता था। उसे वह फैशन डिजाइनिंग का कोर्स थाईलैंड में करा रहा था। 13 फरवरी को दोबारा वह अपनी बहन को थाईलैंड भेजने वाला था। कुछ दिनों की छुट्टी पर बहन थाईलैंड से अपने घर आई थी। अपनी बहन को जसपाल सिंह बोलकर गया था कि वह भोपाल से लौटने के बाद उसके थाईलैंड जाने की तैयारी करेगा। जून में जसवीर कौस का फैशन डिजाइनिंग का डिप्लोमा कोर्स पूरा होने वाला था। अपनी मां शरणजीत कौर व पिता अवतार सिंह के मना करने के बाद भी वह अपनी बहन को थाईलैंड भेज रहा था। अपनी बहन का पूरा खर्च जसपाल ही उठा रहा था।

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भोपाल गया था आर्चरी का सामान पहुंचाने

जसपाल सिंह ने आरके स्पो‌र्ट्स नाम सेफर्म खोल रखा था। यह फर्म आनलाइन व्यवसाय भी करती थी। एक वर्ष पहले उसने अपना व्यवसाय शुरू किया था। इसका कार्यालय साकची स्थित कालीमाटी रोड में है। भोपाल में सात फरवरी से स्पो‌र्ट्स शुरू होने वाले हैं। इसे लेकर वहां आर्चरी का सामान पहुंचाने का आर्डर जसपाल को मिला था। उस आर्डर का सामान लेकर जसपाल अपने दोस्त तीरंदाज सरस सोरेन के साथ सड़क मार्ग से भोपाल जा रहा था। दोनों मंगलवार की दोपहर 12.30 बजे घर से निकले थे।

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चाची से सिलवाए थे फ्लैग

जसपाल सिंह ने फ्लैग के आर्डर भी लिए थे, जिसे भोपाल पहुंचाना था। जल्दबाजी में कोई दर्जी इतने सारे फ्लैग की सिलाई नहीं करता, इसलिए उसने अपनी चाची बलजीत कौर से आग्रह किया। इसके बाद बलजीत कौर ने दिन-रात जुटकर खुद फ्लैग की सिलाई कर जसपाल को दिया था।

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इकलौता बेटा था जसपाल

पिता अवतार सिंह व मां शरणजीत कौर का इकलौता बेटा जसपाल था। उसकी उम्र करीब 24 वर्ष थी। जसपाल सिंह की छोटी बहन जसवीर कौर है। पिता अवतार सिंह की कालीमाटी रोड स्थित हावड़ा ब्रिज के समीप गुरुनानक इंजीनिय¨रग नामक वर्कशॉप है। सोनारी स्थित कारमेल जूनियर स्कूल का छात्र था जसपाल सिंह।

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जसपाल की मौत से बस्ती गमगीन

कालीमाटी रोड स्थित नौ नंबर बगान निवासी जसपाल सिंह की मौत की सूचना आते ही बस्ती का माहौल गमगीन हो गया। जसपाल की मां शरणजीत कौर को जसपाल की मौत की सूचना नहीं दी गई थी। उन्हें सिर्फ इतना ही बताया गया था कि जसपाल सड़क हादसे में घायल हो गया है। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया है। जिसके कारण पड़ोसी भी खुलकर जसपाल की मां से बात नहीं कर पा रहे थे, जबकि परिवार के अन्य सदस्यों को जसपाल की मौत की जानकारी हो चुकी थी।

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मां का दिल किसी अनहोनी को भांप रहा था।

किसी ने मां शरणजीत कौर को बेटे की मौत की जानकारी नहीं दी थी, लेकिन मां को अनहोनी की आशंका हो गई थी। होंठ बात करते हुए कांप रहे थे। वह बहुत कम बोल रही थी। जब कोई उनसे बेटे जसपाल सिंह के बारे में पूछता था, तो उनकी आंखों से आंसू गिरने लगते थे। उनके पास उनकी बेटी जसवीर कौर, चाची बलजीत कौर, दादी रंजीत कौर व परिवार के अन्य सदस्य बैठे थे और बार-बार सांत्वना दे रहे थे। 80 वर्षीय दादी रंजीत कौर की आंखें अपने पोते को याद कर डबडबा रही थीं।

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जसपाल चला रहा था कार, कोच रवाना हुए भोपाल

जसपाल सिंह अपनी आई-20 कार लेकर मंगलवार की सुबह भोपाल के लिए रवाना हुआ, बुधवार की तड़के एनएच 43 स्थित शहडोल में सड़क किनारे खड़े एक टैंकर में जाकर कार ने टक्कर मार दी। इससे घटनास्थल पर ही जसपाल सिंह व सारस सोरेन की मौत हो गई। घटना की सूचना मिलते ही जसपाल का पिता अवतार सिंह, कोच हरेंद्र सिंह, रूपेश सिंह, सुखदेव सिंह व सतपाल सिंह भोपाल के लिए रवाना हो गए।

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मुझे अपने बेटे पर नाज है। उसने इस छोटी की उम्र में ही खुद का व्यापार शुरू कर लिया और तीरंदाजी में कई पुरस्कार पाकर हमलोगों का नाम रोशन किया है।

- शरणजीत कौर, मां

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मेरा पोता काफी होनहार था रब का हमलोगों ने क्या बिगाड़ा कि इस छोटी से उम्र में रब ने उसे अपने पास बुला लिया। मेरी उम्र हो चुकी है रब मुझे अपने पास बुला लेता लेकिन मेरे पोते ने तो भी दुनिया देखनी थी।

- रंजीत कौर, दादी

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मुझे आग्रह कर मेरे भतीजे ने फ्लैग सिलवाया था ताकि वह भोपाल ले जा सके। बहुत प्यारा व दुलारा था। कभी किसी की बात वह नहीं टालता था। लेकिन रब ने हमलोगों के साथ बहुत बुरा किया।

- बलजीत कौर, चाची

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जसपाल मिलनसार लड़का था। उसने इस छोटी की उम्र में ही विदेश की यात्रा की थी। उसमें जरा भी घमंड नहीं था।

-जसवीर सिंह मैंने जसपाल को बचपन से देखा है। वह काफी होनहार था। उसकी मौत की सूचना जब मुझे मिली तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ।

-परमजीत सिंह काले


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