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Condition Of Jharkhand Rivers: स्वर्णरेखा और खरकई नदी के अस्तित्व पर छाए संकट के बादल, नाला और नदी में फर्क करना मुश्किल

Condition Of Jharkhand Rivers मानगो पुल के पास नदी की स्थिति नाले से भी बदतर हो गई है। वहां जल तो है ही नहीं गंदे नालों का पानी जो आता है वह भी वहां ठहर सा गया है। पानी में कोई हलचल नहीं देखी जा रही है।

By Madhukar KumarEdited By: Published: Fri, 24 Jun 2022 07:09 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2022 07:09 AM (IST)
Condition Of Jharkhand Rivers: स्वर्णरेखा और खरकई नदी के अस्तित्व पर छाए संकट के बादल, नाला और नदी में फर्क करना मुश्किल
Condition Of Jharkhand Rivers: अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही स्वर्णरेखा और खरकई नदी।

जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर समेत पूर्वी सिंहभूम जिले से गुजरने वाली स्वर्णरेखा व खरकई नदी बरसात में आफत बन जाती है, जबकि यही नदियां गर्मी के मौसम में सूख जाती है। लंबे समय तक बारिश नहीं हो, तो नदी का दृश्य भयावह हो जाता है। जलकुंभी, जहां-तहां निकले चट्टान, बदरंग काला पानी और उससे निकलती बदबू, शहरवासियों को चिंतित करती है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि शहर व जिले की जीवनरेखा पर अस्तित्व का खतरा मंडराने लगता है।

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बढ़ती आबादी कहें या प्रशासनिक लापरवाही, अतिक्रमण की वजह से दोनों नदियां सिकुड़ती जा रही हैं। शहर के भुइयांडीह से बारीडीह, बिरसानगर, मोहरदा तक नदी की पेटी तक पर घर बन गए हैं और अब भी बनते जा रहे हैं। इससे भी बड़ी बात ये है कि इन नदियों की पेटी में घर बनाने के लिए फ्लाईऐश का उपयोग किया जा रहा है, जो नदी के लिए अतिरिक्त खतरा पैदा कर रहा है। इससे पहले कुछ संस्थाओं व मानवाधिकार कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा ने मेरीन ड्राइव के निर्माण को खरकई व स्वर्णरेखा का अतिक्रमण बताया था। हालांकि इस मुद्दे को अनसुना कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि स्वर्णरेखा व खरकई नदी को बचाने के लिए आवाज नहीं उठती या कोई पहल में कमी रहती है, लेकिन इस पर होने वाली पहल गंभीरता से नहीं होती।

पर्यावरण संरक्षण को समर्पित संस्था युगांतर भारती लंबे समय से स्वर्णरेखा को बचाने के लिए आवाज उठा रही है। हाल ही में युगांतर भारती ने जब रांची के चूल्हापानी से घाटशिला तक स्वर्णरेखा बचाओ अभियान चलाया, तो निष्कर्ष में यही बात सामने आई कि इस नदी में औद्योगिक प्रदूषण काफी हो गया है, लेकिन आवासीय क्षेत्र का प्रदूषित जल-मल काफी ज्यादा हो गया है। इसे लेकर प्रकृति व संस्कृति को समर्पित संस्था अखिल भारतीय संगठन गंगा महासभा का प्रतिनिधिमंडल पूर्वी सिंहभूम की उपायुक्त विजया जाधव से 20 जून को मिला था। इस दौरान गंगा महासभा, बिहार-झारखंड के उपाध्यक्ष धर्मचंद्र पोद्दार ने उपायुक्त से आग्रह किया कि स्वर्णरेखा नदी में गिर रहे विभिन्न प्रकार के नालों पर एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) व ईटीपी (एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने की तत्काल आवश्यकता है। ये प्लांट लग जाने के बाद दूषित व रासायनिक जल को शोधित कर नदी में नहीं डाल कर जमीन में ही गड्ढा कर डालना उचित होगा, जो मिट्टी के अंदर शोधित होकर भूगर्भ जलस्तर को सही बना सकेगा। नदी के तल में भी वह जल स्वत: चला जाएगा।

नाले जैसी बनी नदी की स्थिति

मानगो पुल के पास नदी की स्थिति नाले से भी बदतर हो गई है। वहां जल तो है ही नहीं, गंदे नालों का पानी जो आता है वह भी वहां ठहर सा गया है। पानी में कोई हलचल नहीं देखी जा रही है। इस प्रकार नदी समाप्त होने के कगार पर है। इसे को बचाने की आवश्यकता है। पोद्दार ने बताया कि उपायुक्त ने आश्वासन दिया है कि बजट में इस प्रकार के प्लांट लगाने के लिए प्रविधान किया जाएगा।

अमृत सरोवर से संवर सकता है स्वर्णरेखा-खरकई का भविष्य

दैनिक जागरण अभी इन नदियों के संकट का मुद्दा इसलिए उठा रहा है कि मानसून आ गया है। यही सही समय है जल संरक्षण करने का। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर देश भर के हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। पूर्वी सिंहभूम जिले में 96 अमृत सरोवर की सूची केंद्र सरकार से भेजी गई है। पर्यावरणविदों का मानना है कि जब इतने सारे तालाब बन जाएंगे, तो इनसे भूगर्भ जल संरक्षण में बड़ी मदद मिलेगी। तालाबों का भूगर्भ जल पूरी धरती को तर रखेगा, तो निश्चित रूप से इसका प्रभाव नदियों पर भी पड़ेगा। आश्चर्य नहीं कि एक-दो वर्ष में हम यह देखेंगे कि स्वर्णरेखा व खरकई की धारा गर्मी में भी अविरल बहेगी।


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