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पीतल उद्योग की चमक बढ़ाएगी अब तीसरी पीढ़ी की सीएनजी भट्ठी

यह कोयले की जगह भट़ठी सीएनजी से चलेगी। यह तकनीक पीतल उद्योग से जुड़े देश के लगभग 20 लाख कारीगरों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 07 Jan 2019 11:45 AM (IST)Updated: Mon, 07 Jan 2019 06:38 PM (IST)
पीतल उद्योग की चमक बढ़ाएगी अब तीसरी पीढ़ी की सीएनजी भट्ठी
पीतल उद्योग की चमक बढ़ाएगी अब तीसरी पीढ़ी की सीएनजी भट्ठी

जमशेदपुर (विकास श्रीवास्तव)। कोलकाता इंडियन थर्मल इंजीनियरिंग की मदद से जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल) के वैज्ञानिकों ने पीतल उद्योग में जान फूंकने के लिए तीसरी पीढ़ी की एक नई भट्ठी विकसित की है। यह कोयले की जगह सीएनजी से चलेगी। कार्बन कम उत्सर्जित करेगी। दावा है कि यह तकनीक पीतल उद्योग से जुड़े देश के लगभग 20 लाख कारीगरों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

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एनएमएल के वैज्ञानिकों के अनुसार, यह तकनीक कम लागत वाली है। कारीगरों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर विकसित की गई है। इससे पूर्व विकसित उन्नत भट्ठी ऊपर ढक्कन से बंद रहती है। धुआं समेत हानिकारक तत्वों को अंदर पाइप के सहारे नीचे निकालने के उपाय किए गए थे। नई सीएनजी भट्ठी में भी यह सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन इसमें कोयले का इस्तेमाल नहीं होगा। इस कारण प्रदूषण का स्तर न्यूनतम हो जाएगा। कोयले की भी बचत होगी। परंपरागत विधि से पीतल गलाने के लिए कारीगरों को भट्ठी का तापमान 900 से 980 डिग्री सेंटीग्रेड तक ले जाना पड़ता था। सीएनजी भट्ठी 300 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर काम करेगी। वहीं 420 डिग्री सेंटीग्रेड पर जिंक वेपर निकलने लगेगा। इस तरह जहां पहले पीतल गलाने में एक घंटा लगता था, वहीं यह घटकर 20 से 25 मिनट रह गया है।

इसलिए की यह पहल

सीएनजी भट्ठी विकसित करनेवाली टीम में एनएमल के सीनियर प्रिंसिपल वैज्ञानिक डॉ. केएल साहू के साथ केके पॉल, डॉ. कैलाश पोद्दार व निमाई हालदार शामिल रहे हैं। इसी टीम ने उन्नत भट्ठी भी विकसित की थी। टीम ने पीतल उद्योग वाले क्षेत्रों का दौरा किया। यह पाया कि परंपरागत भट्ठी के कारण हानिकारक तत्व कारीगरों की सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस कारण नई तकनीक विकसित करने की योजना बनी।

अभी कई राज्यों में चल रहा उन्नत भट्ठी से काम

सीएनजी भट्ठी से पूर्व एनएमएल के ही वैज्ञानिकों ने उन्नत भट्ठी विकसित की थी। यह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, ओडिशा के भद्रक, बालासोर, पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा, वर्दवान और हावड़ा, झारखंड के रांची व लोहरदगा, तमिलनाडु के तंजौर व गुजरात के कच्छ में इस्तेमाल हो रही है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस भट्ठी से कारीगरों की दैनिक कमाई में 250 से 350 रुपये का इजाफा हुआ है। वहीं गलाने की लागत तीन रुपये प्रतिकिलो कम हो गई है। आने वाले दिनों में सीएनजी भट्ठी से और मुनाफा होगा।

एनएमएल के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सीएनजी भट्ठी ’ जागरण

परंपरागत तकनीक

परंपरागत विधि से पीतल गलाने के लिए भट्ठी का तापमान 900 से 980 डिग्री सेंटीग्रेड तक ले जाया जाता है। इतने तापमान पर पीतल का जिंक (पीतल यानी ब्रास 60 प्रतिशत तांबा व 40 प्रतिशत जिंक का मिश्रण होता है) वेपर (वाष्पीकृत) होकर निकलने लगता है। भट्ठी के धुएं के साथ निकलनेवाले सस्पेंडेड पार्टीकुलर मैटर (एसपीएम- इसमें सल्फर, नाइट्रोजन सहित अन्य हानिकारक तत्व होते हैं) भट्ठी पर काम करनेवालों की सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। कारीगर अस्थमा व टीबी जैसे रोग की जकड़ में आ जाते हैं।

डिग्री सेंटीग्रेड तक पीतल गलाने के लिए ले जाना पड़ता था परंपरागत भट्टी का तापमान

सीएनजी से चलनेवाली नई भट्ठी तैयार है। अभी सीएनजी हर जगह उपलब्ध नहीं है, लेकिन भविष्य में सुलभ होगी तो कारीगरों के लिए यह वरदान साबित हो सकती है। यह पर्यावरण और सेहत के लिए फायदेमंद है। वैसे अभी उन्नत भट्ठी से भी बहुत फायदे हो रहे हैं। कारीगरों को काफी फायदा हो रहा है।

डॉ. केएल साहू, सीनियर प्रिंसिपल वैज्ञानिक, एनएमएल जमशेदपुर

पीतल उद्योग से जुड़े देश के करीब 20 लाख कारीगरों के लिए वरदान

पीतल गलाने में एक घंटे की जगह अब लगेंगे सिर्फ 20 से 25 मिनट


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