टूटी सड़कें, जर्जर इमारतें और कूड़े के ढेर पर ताम्रनगरी
पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी टाउनशिप में नागरिक सुविधाओं का टाटा है। लोग सड़क और गंदगी की समस्या से जूझ रहे।
मुरारी प्रसाद सिंह, मुसाबनी : 'जीते थे जीवन के रंग, अब दुश्वारिया जिदंगी में पैबंद सी हो गई हैं।' अंग्रेज के जमाने से ताम्र खदानों का बड़ा केंद्र रहे मिनी इंडिया और ताम्रनगरी के नाम से प्रसिद्ध पूर्वी सिंहभूम जिला का मुसाबनी टाउनशिप की अब पहचान तारों के जाल, टूटी सड़कें, अतिक्रमण, जर्जर इमारतें, अवैध निर्माणों और गंदगी के ढेर के तौर पर होने लगी है। जिदंगी की जिद्दोजहद हर दिन के साथ बढ़ रही है। शासन-प्रशासन व जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र को उपेक्षित ही रखा है। शिकायतों के बावजूद रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी समस्याओं का कोई हल नहीं निकलता है। लोगों को शुद्ध पानी तक नसीब नहीं। ऐसे में लोगों ने इस व्यवस्था को अपनी नियति मान ली है। वर्ष 2007 से सुरदा और केंदाडीह माइंस फिर से खुली।
मुसाबनी का इतिहास:ब्रिटिश के शासन काल से मुसाबनी ताबे खदानों के लिए पूरे विश्व में चर्चित था। मुसाबनी माइंस ऑफ ग्रुप के तहत बादिया, बनालोपा, पाथरगोड़ा, सुरदा, केंदाडीह और राखा कॉपर माइंस प्रोजेक्ट चलते थे। मुसाबनी माइंस ऑफ ग्रुप की खदानों में करीब 14 हजार मजदूर एक जमाने में काम करते थे। प्रबंधन की ओर से सभी मजदूरों को रहने के लिए हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) कंपनी ने बेहतरीन सुविधाओं से युक्त चकाचक आवास दिए थे। 24 घटे बिजली पानी की व्यवस्था थी। बच्चों की पढ़ाई के लिए कंपनी ने स्कूल खोले। इनमें विभिन्न प्रात से आए मजदूरों के बच्चे पढ़ाई करते थे। उनके लिए विभिन्न प्रातीय भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी। शिक्षकों को भी कंपनी में बेहतरीन सुविधा प्रदान की थी। मुसाबनी में एचसीएल कंपनी ने करीब चार हजार चकाचक आवासों का निर्माण कराया था। इन आवासों में अधिकारी और मजदूर रहते थे। जब तक मुसाबनी माइंस ऑफ ग्रुप की कॉपर माइंस सुचारु रूप से चलती रही। यहा की व्यवस्था चकाचक थी। चकाचक सड़कें शहर की खूबसूरती बढ़ाती थी। मेडिकल सुविधा के लिए 300 बेड का अस्पताल था।
सिमट गई सुविधाएं:समय के साथ एक एक कर सभी खदानें बंद हो गईं। मुसाबनी की कॉलोनियों व गलियों का मिजाज बदला। शहर की देखरेख बंद हो गई। कंपनी ने मुसाबनी टाउनशिप की सभी जमीन व आवास झारखंड सरकार को 2005 में सौंप दिया। पूरे शहर के आवास में मजदूर व उनके आश्रित वषरें से रह रहे हैं। लीज मिलने की आस में लोग अब भी इसमें जमे हैं। अब तो क्वार्टर जर्जर व जानलेवा बन गए हैं। सरकारी भवन होने के कारण लोग इसकी मरम्मत तक नहीं कराते। स्कूल बंद हैं। 300 बेड का अस्पताल खंडहर में तब्दील हो गया है।
टूटी सड़क बड़ी समस्या: सड़क का निर्माण विभिन्न मदों से किया गया है। बावजूद इसके लाइन क्वार्टर इलाके में अधिकाश सड़कें खस्ताहाल हैं, जिनको बने न जाने कितने साल हो गए। पिछली बार इन सड़कों की मरम्मत कब हुई, ठीक से पता नहीं है। सड़कों पर एक से दो फुट के गढ्डे हैं। कहीं-कहीं तरे सड़क का नामोनिशान तक मिट चुका है। इसी हिचकोले खाती सड़कों से लोग गुजरने को मजबूर हैं। टूटी सड़कों पर गिरकर महिलाओं, बुजुर्गो व बच्चों का चोटिल होना आम बात है।
कम्युनिटी सेंटर में सीआरपीएफ का डेरा: एक भी सामुदायिक भवन नहीं है। कहने को एक कम्युनिटी सेंटर है, लेकिन वह आम लोगों के प्रयोग में नहीं है। इस कम्युनिटी सेंटर में वषरें से सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) जवानों का डेरा है। ऐसे में छोटे आयोजनों को लेकर भी लोगों को यहा-वहा भटकना पड़ता है।
लटकते तार बने मौत का कारण: भूमिगत बिजली के जर्जर और जानलेवा तार इन दिनों मौत बनकर दौड़ रही हैं। खंभे पर लटकते तार बड़े हादसों को दावत दे रहे हैं। खंभे भी खतरनाक स्थिति में हैं। झुककर मकानों व मंदिरों के ऊपर आ गए हैं। तार नंगे ही लटक रहे हैं। इनको दुरुस्त नहीं किया गया तो एक दिन ये बहुत बड़े हादसे का सबब बन सकते हैं। बिजली के नंगे तारों की चपेट में अब तक कई मवेशी व जानवर आ चुके हैं।
स्वच्छ भारत अभियान असफल: जगह-जगह कूड़े के ढेर स्वच्छ भारत अभियान की हवा निकालते दिखाई देते हैं। नालिया जाम हैं। खंडहर मकान कूड़ादान में तब्दील हो गए हैं। सीवर की सफाई नहीं होती है। गंदगी के कारण लोग संक्रामक बीमारियों की जद में हैं। मच्छरों का प्रकोप ज्यादा है। नियमित सफाई न होने से सीवरों का पानी सड़कों पर बह रहा है। लोगों को आने-जाने में भी काफी मुश्किलें आ रही हैं।