उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दे तपस्वी व्रतियों ने किया पारण
उषाकाल में व्रतियों ने सूप में पूजन सामग्री के साइसके पूर्व वे काफी देर तक जलाशयों में स्नान के बाद हाथ जोड़े खड़े रहे।
जमशेदपुर जासं। उग हो सूरज देव, भइल अरघ के बेर.., जल बीच खाड़ बानी कांपता बदनवां..। बुधवार को छठ व्रतियों उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया। हवन के बाद चार दिवसीय आस्था व प्रकृति पूजा का महापर्व छठ संपन्न हो गया। इसके पूर्व मंगलवार की शाम व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पण किया। दोपहर बाद से ही छठ घाटों पर जाने के लिए आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। शहर के तमाम छठ घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं ने भगवान भास्कर की पूजा अर्चना की।
घाटों पर लोक अनुशासन से भारी भीड़ के बावजूद सबकुछ व्यवस्थित रहा। खतरनाक जगहों पर स्नान नहीं करने, अर्घ्य के समय की जानकारी सहित अन्य सूचनाएं छठ पूजा कमेटी सदस्यों द्वारा लगातार इस बार भी माइक से दी जाती रही। वरीय प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी भी घाटों पर गश्त लगाते रहे। सादे लिबास में महिला पुलिस भी तैनात रही।
कइली बरतिया तोहार हे छठी मईया..
छठ महाव्रत के तीसरे दिन मंगलवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए सिर पर दउरा लिए लोगों का हुजूम छठ घाटों की ओर चल पड़ा। टोलियों में व्रती सामूहिक रूप से छठी मईया के गीत गा रही थीं। वहीं कई व्रती धरती पर दंडवत करते छठ घाट की तरफ जा रहे थे। इन व्रतियों से कई लोगों ने आशीर्वाद भी लिया। घाटों को आकर्षक ढंग से सजाया गया था। दउरा पर जल रहे मिट्टी के दीये व पारंपरिक छठ गीतों ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। खास यह कि छठ व्रत को कई जनप्रतिनिधि, नेता व अधिकारियों ने भी किया। अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद भी घंटों व्रती घाट पर भगवान सूर्यदेव का स्मरण करते रहे।
दर्शन दिहीं हे आदित्यदेव..
थ जलाशयों में गाय के दूध से भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया। बुधवार को भोर होने से पहले ही छठ घाटों की तरफ व्रतियों के जाने का सिलसिला आरंभ हो गया। उषाकाल में व्रतियों ने सूप में पूजन सामग्री के साइसके पूर्व वे काफी देर तक जलाशयों में स्नान के बाद हाथ जोड़े खड़े रहे। घाटों पर समाजसेवी व्यवस्था संभाले रहे। व्रतियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो, इसके लिए दर्जनों समाजसेवियों व सामाजिक संगठनों के सदस्य तत्पर दिखे। फल, सूप, साड़ी सहित अन्य पूजन सामग्री उपलब्ध कराने की भी होड़ लगी रही। संगठनों ने आम का दातून, गाय का दूध व व्रत संपन्न होने पर चाय की भी व्यवस्था की थी। जगह-जगह प्राथमिक उपचार के लिए भी स्टाल लगाए गए थे।