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द्वितीय विश्व युद्ध की गवाही देता है झारखंड के इस शहर का ये होटल, ये रही पूरी कहानी

झारखंड के जमशेदपुर के इस होटल के 28 कमरों में ब्रिटिश सेना के अफसर ठहरे थे और प्रति दिन का किराया खाने के साथ एक रुपया 12 आना और बिना खाना के एक रुपये दिया करते थे।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 03:19 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 10:23 AM (IST)
द्वितीय विश्व युद्ध की गवाही देता है झारखंड के इस शहर का ये होटल, ये रही पूरी कहानी
द्वितीय विश्व युद्ध की गवाही देता है झारखंड के इस शहर का ये होटल, ये रही पूरी कहानी

ये भी जानें

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  • 1939 में बुलेवर्ड होटल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश एयर फोर्स के अधिकारियों का बेस था।
  • 20 कमरों में ब्रिटिश सेना के अफसर ठहरे थे और रोज का किराया खाने के साथ एक रुपया 12 आना था।
  • 06 महीने में ही यह होटल बनाकर तैयार कर दिया था रोनाल्ड डिकोस्टा के इंजीनियर व कांट्रैक्टर पिता जॉन पी डिकोस्टा ने।
  • 600 एल टाइप क्वार्टर कदमा में बनवाए तो राउरकेला स्टील प्लांट के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई डिकोस्टा ने।
  • 1939 में टाटा स्टील के विदेशी मेहमानों को ठहराने के लिए स्थापित बुलेवर्ड होटल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश एयर फोर्स के अधिकारियों का बेस हुआ करता था। यहीं से वे 45 मिनट की दूरी पर चाकुलिया में स्थित द्वितीय विश्व युद्ध के एयर बेस को ऑपरेट किया करते थे।
  • होटल के 28 कमरों में ब्रिटिश सेना के अफसर ठहरे थे और प्रति दिन का किराया खाने के साथ एक रुपया 12 आना और बिना खाना के एक रुपये दिया करते थे। आज भी यह होटल शहर में सेवाएं दे रहा है।

जमशेदपुर, विश्‍वजीत भट्ट। Boulevard Hotel Jamshedpur होटल बुलेवर्ड आज भी इतिहास को समेटे हुए है। यहां द्वितीय विश्वयुद्ध की यादें ताजा हैं। बिष्टुपुर मुख्य सड़क पर आज भी ये पर्यटकों की सेवा कर रहा है, बिल्कुल वैसे ही, जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना का किया था।

होटल के संस्थापक स्व. जॉन पी डिकोस्टा के पुत्र और अब होटल के मालिक रोनॉल्ड डिकोस्टा बताते हैं कि टाटा स्टील से 1939 में होटल बनाने का आदेश मिला था। छह महीने में ही यह होटल बनकर तैयार हो गया था। अभी कुछ ही महीने इसमें टाटा स्टील के विदेशी मेहमान ठहर पाए थे कि ब्रिटिश सेना ने हवाई अड्डा का निर्माण शुरू कर दिया।

इसके बाद ही टाटा स्टील के आदेश से होटल को ब्रिटिश सेना के अफसरों को रहने के लिए दे दिया गया। होटल में कुल 28 कमरे हैं। एक कमरे में दो अधिकारी रहते थे। ब्रिटिश सेना में शामिल अमेरिकन अधिकारियों ने खाने के साथ होटल का कमरा किराए पर लिया था और ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना खाने के। ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने होटल में ही अपना मेस बनवाया था। अमेरिकन अधिकारी खाने के साथ एक रुपये 12 आना किराया देते थे और ब्रिटिश अधिकारी बिना खाने के एक रुपया किराया चुकाते थे।

डेढ साल तक होटल में ठहरे थे सेना के अधिकारी

सेना के अधिकारी लगभग डेढ़ साल तक होटल में ठहरे थे। ब्रिटिश सेना के अधिकारियों के लिए उस जमाने की अनेकों कारें भी लगाई गई थीं और इन्हीं कारों से अधिकारी निर्माणाधीन एयरपोर्ट तक आना-जाना करते थे। वे जुगसलाई नोटिफाइड एरिया के कई वर्ष तक चेयरमैन रहे। जब मदर टेरेसा यहां पहली बार आई थीं, तो उनके साथ सिर्फ उनके पिता जॉन पी. डिकोस्टा ही रहे। । हालांकि उनके पिता मूलत: इंजीनियर व कांट्रैक्टर थे, लेकिन टाटा स्टील के आग्रह पर उन्होंने छह माह में बुलेवर्ड होटल तैयार कर दिया था।

नागपुर से जमशेदपु पहुंचे थे बी डिकोस्‍टा

डिकोस्टा परिवार मूलत: गोवा के मूल निवासी हैं। हालांकि रोनाल्ड डिकोस्टा के दादा बी. डिकोस्टा नागपुर से यहां आए थे। वे सिविल, मैकेनिकल से लेकर लेबर कांट्रैक्टर तक का काम करते थे। उनके पिता जॉन पी. डिकोस्टा का जन्म नागपुर में ही वर्ष 1910 में हुआ था, तो स्कूली पढ़ाई भी वहीं हुई। इसके बाद उनके पिता ने कोलकाता से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, फिर इंग्लैंड से इलेक्टिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। वो जमशेदपुर आए और यहीं होटल का निर्माण कराया।

एक्‍सएलआरआइ की स्‍थापना में रहा योगदान

इंग्लैंड से जॉन पी. डिकोस्टा यहां 1936 में आए और जॉन पी डिकोस्टा के साथ टाटा स्टील में बतौर कांट्रैक्टर काम करने लगे। टाटा स्टील में एसएमएस-3 उन्होंने ही खड़ा किया, तो कदमा में करीब 600 एल टाइप क्वार्टर भी बनाया। उन्होंने राउरकेला स्टील प्लांट के निर्माण में भी कई तरह के काम किए थे। उन्होंने सेक्रेड हार्ट कान्वेंट व लोयोला स्कूल के अलावा एक्सएलआरआइकी स्थापना में योगदान दिया, तो एमजीएम मेडिकल कालेज की स्थापना समिति में भी सक्रिय सदस्य थे। करनडीह में लालबहादुर शास्त्री कालेज खोलने में भी उनकी भूमिका रही।

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