पुरुलिया के बिरेन घूम-घूम कर बेचते थे साड़ी, अब कर रहे लाखों-करोड़ों का कारोबार, पद्मश्री से भी हुए सम्मानित
कौन कहता है कि आसमां में सुराग नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो... दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां पुरुलिया के बिरने पर चरितार्थ होती है। कभी बांग्लादेश से भारत पहुंचे बीरेन का डंका आज दुनिया में बज रहा है। पढ़िए यह प्रेरक स्टोरी....
जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर के पूर्वी सिंहभूम जिला से सटे पुरुलिया के निवासी बिरेन बसाक उद्यमिता की जबरदस्त मिसाल पेश कर रहे हैं। किस तरह कोई व्यक्ति किसी पूंजी के बिना शिखर पर पहुंच सकता है, बिरेन की कहानी उनके लिए प्रेरणा बन सकती है। बिरेन बसाक का जन्म बांग्लादेश के तांगेल शहर में हुआ था। बुनकरों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले बिरेन को इस व्यवसाय की मौलिक जानकारी पहले से थी।
दंगा के बाद आ गए पुरुलिया
वर्ष 1962 में बांग्लादेश में जबरदस्त दंगा हुआ, तो बिरेन अपने परिवार के साथ पुरुलिया आ गए थे। इनके पास कोई पैसा नहीं था। किसी तरह गुजारा होता था। उस वक्त बिरेन की उम्र 13 वर्ष थी। छठी कक्षा में पढ़ते थे। आर्थिक तंगी इतनी थी कि पढ़ाई छोड़नी पड़ी। फिर इन्होंने बुनकरों व कारोबारियों से उधार लेकर घूम-घूमकर साड़ी बेचना शुरू किया, लेकिन कमाई बहुत कम होती थी।
कोलकाता से बदली किस्मत
बिरेन ने अपने भाई के साथ 1985 में कोलकाता जाकर पुरुलिया की साड़ी बेचनी शुरू की। ट्रेन से जाते थे और दिन भर साड़ी बेचकर लौट आते थे। इससे उनका कारोबार बढ़ने लगा, पैसे भी आने लगे तो कोलकाता को ही केंद्र बना लिया। एक बार उन्हें कोलकाता के बाजार में एक संभ्रांत महिला मिली। उस महिला को बिरेन की साड़ियां इतनी पसंद आईं कि उसने घर का पता देकर आने को कहा। अगले दिन बिरेन जब गए तो वहां मोहल्ले भर की औरतें जमा थीं। जितनी साड़ी बिरेन ले गए थे, सभी बिक गईं। इसके बाद उनकी ख्याति दूसरे इलाकों में भी होने लगी। उस मोहल्ले की महिलाअों ने कोलकाता में रहने वाले दूसरे रिश्तेदारों-परिचितों के यहां बिरेन को भेजना शुरू किया। इसके बाद तो बिरेन ने कोलकाता में ही एक दुकान ली और बड़े पैमाने पर कारोबार शुरू किया। आज उनकी साड़ियां देश-विदेश, यहां तक की बांग्लादेश भी जा रही हैं।
रामायण पर आधारित साड़ी से दुनिया भर में हुआ नाम
बिरेन दास स्थानीय बुनकरों से अलग-अलग डिजाइन की साड़ियां बनवाते हैं। इसी बीच उन्होंने रामायण की कहानी बताती हुई साड़ी डिजाइन कराई, जिसमें करीब ढाई वर्ष लगे। हालांकि जब साड़ी बनकर बाजार में आई तो इनकी ख्याति दुनिया भर में फैल गई। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में नाम दर्ज हुआ। इसके बाद इन्होंने स्वामी विवेकानंद, भगवान गणेश, कृष्ण आदि पर आधारित साड़ियां बनवाईं, जो काफी लोकप्रिय हुईं। इनकी उद्यमिता को देखते हुए भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया।
मौसमी चटर्जी भी पहनतीं बिरेन की साड़ियां
आज बिरेन बसाक की साड़ियों के देश भर में स्थायी ग्राहक बन गए हैं। बीते जमाने की बॉलीवुड अभिनेत्री मौसमी चटर्जी भी बिरेन की साड़ियां पहनती हैं। क्रिकेटर सौरभ गांगुली भी अपनी पत्नी के लिए इनसे साड़ियां लेते हैं। इससे पहले फिल्म निर्देशक स्व. सत्यजीत रे भी इनके ग्राहक थे। इनके साथ करीब पांच हजार बुनकर जुड़े हैं।