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भारतीय जन महासभा ने गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को किया याद, अर्पित की श्रद्धांजलि

काजी ने कुछ देर सोचने के बाद फतवा जारी कर दिया। लिखा था कि ये बच्चे बगावत पर तुले हैं अतः इन्हें जिंदा ही दीवार में चिनवा दिया जाए। साहिबजादों को वापस ठंडा बुर्ज भेज दिया गया जहां उन्होंने दादी माता गुजरी को कचहरी में हुई सारी बात बताई।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 26 Dec 2021 05:34 PM (IST)Updated: Sun, 26 Dec 2021 05:34 PM (IST)
भारतीय जन महासभा ने गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को किया याद, अर्पित की श्रद्धांजलि
सिखों के दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंह के साहिबजादों का बलिदान दिवस मनाया गया।

जमशेदपुर, जासं। भारतीय जन महासभा ने रविवार को सिखों के दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंह के साहिबजादों जोरावर सिंह (7 वर्ष) व फतेह सिंह (5 वर्ष) का बलिदान दिवस मनाया, जिसमें उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। महासभा के सदस्यों ने देश-विदेश के विभिन्न स्थानो पर दो साहिबजादो के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इसी क्रम में जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित डा. श्रीकृष्ण सिन्हा संस्थान परिसर में भी बाल बलिदान दिवस मनाया गया।

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जानिए मुगलों ने कैसे धोखा दिया

पोद्दार ने दो साहिबजादों के बारे में बताते हुए कहा कि मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह जी के साथ धोखा किया और उनसे उनका किला खाली करा लिया। इस प्रकार गुरु जी का परिवार बिछड़ गया। छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह अपनी दादी माता गुजरी के साथ किले से निकलने के पश्चात जंगल पार करके रात्रि होने पर एक झोपड़ी में रुके। खबर पाकर गुरुजी के लंगर का गंगू नामक एक सेवक माताजी के पास पहुंचा और वह उनको अपने घर ले गया। गंगू ने मुगलों को इनके बारे में खबर कर दी। माताजी और दोनों साहिबजादों को कैद कर लिया गया। अगली सुबह उनको बैलगाड़ी में बिठाकर सरहंद के थाने ले जाया गया। इन लोगों को सरहंद में ठंडे बुर्ज में रखा गया जहां हाड़ कंपा देने वाली ठंडी हवाएं चल रही थी। लेकिन वह अपने इरादों पर अडिग थे।  अगले दिन सुबह नवाब वजीर खान के सिपाही आए और साहिबजादों को नवाब की कचहरी में ले गए।  सभी की नजरें साहिबजादो पर थी। वजीर खान ने उन्हें बच्चा समझते हुए कहा कि बच्चों तुम बहुत भोले लगते हो।मुसलमान कौम को तुम पर बहुत गर्व होगा, यदि तुम कलमा पढ़कर मोमिन बन जाओ। तुम्हें मुंह मांगी मुराद मिलेगी। इस पर दोनों साहिबजादे गरज कर बोले कि हमें अपना धर्म प्रिय है। यह सुनकर नवाब काजी से बोला यह बागी की संतान है, इन्हें सजा देनी ही पड़ेगी।

दीवार में चिनवाने का दे दिया फतवा

दरबार में मौजूद काजी ने कुछ देर सोचने के बाद फतवा जारी कर दिया। इसमें लिखा था कि ये बच्चे बगावत पर तुले हैं, अतः इन्हें जिंदा ही दीवार में चिनवा दिया जाए। फतवा सुनाकर साहिबजादों को वापस ठंडा बुर्ज भेज दिया गया, जहां उन्होंने दादी माता गुजरी को कचहरी में हुई सारी बात बताई। काजी ने जल्लाद का इंतजाम किया और फिर पता लगा कि इन जल्लादों की तो आज पेशी है। यह जानकारी मिलने पर नवाब ने तुरंत हुक्म दिया कि इन जल्लादों का मुकदमा बर्खास्त किया जाता है और इन बच्चों को जल्लादों के हवाले किया जाता है। आदेश की तामील की गई और बच्चों को उस जगह पर ले जाया गया, जहां दीवार बनाई जा रही थी। साहिबजादों को उस दीवार के बीच खड़ा कर दिया गया। दोनों साहिबजादे जपुजी साहिब का पाठ करने लगे और उधर जल्लादों ने दीवार खड़ी करनी शुरू कर दी।  थोड़ी देर बाद ही दोनों साहिबजादे बेहोश हो गए और दीवार गिर पड़ी। जल्लाद आपस में कहने लगे कि दोनों शायद अपनी अंतिम सांसें ले रहे हैं। दीवार और ऊंची करने की आवश्यकता नहीं है। रात उतर रही है, इनका गला काट कर जल्दी काम खत्म किया जाए। इतना कह दोनों बच्चों को बाहर निकाला गया और उन्हें शहीद कर दिया गया।

देश-विदेश के 18 स्थानों पर अर्पित किया गया श्रद्धासुमन

श्रद्धासुमन अर्पित करने वालों में जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम), झारखंड से धर्मचंद्र पोद्दार के अलावा संरक्षक राजेंद्र कुमार अग्रवाल, अरविंद बरनवाल, अर्चना बरनवाल, भुवनेश्वरी मिश्रा, सबिता ठाकुर दीप, माही कुमार, आदित्यपुर (जिला सरायकेला-खरसावां), झारखंड से बसंत कुमार सिंह, बक्सर (बिहार) से अजय कुमार सिंह, पटना (बिहार) से अंकेश कुमार, पाकुड़ (झारखंड) से कृष्णा कुमार साहा, गोंडा (उत्तरप्रदेश) से श्री सत्येंद्र पांडेय 'शिल्प', मेरठ (उत्तरप्रदेश) से लक्ष्मी गोसाईं, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) से हेमाश्री, शाहदरा (दिल्ली) से अर्चना वर्मा, नागपुर (महाराष्ट्र) से अनुसूया अग्रवाल, कलियावर (असम) से कल्पना देवी आत्रेय, जोरहाट (असम) से डॉ रुनू बरुवा, सिंगापुर से बिदेह नंदनी चौधरी, जयपुर (राजस्थान) से ओमप्रकाश अग्रवाल, भागलपुर (बिहार) से लक्ष्मी सिंह, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) से डा. रंजना श्रीवास्तव, रांची (झारखंड) से विजय केडिया, झालावाड़ (राजस्थान) से डा. वत्सला शामिल थीं।


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