बस्ते का बोझ बच्चों को दे रहा बीमारी, बरते बैग के चयन में ये सावधानी
बस्ते के बोझ के कारण बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है। बच्चे बीमार हो रहे हैं। ऐसे में स्कूल बैग खरीदते समय सावधानी बरतने की जरूरत है।
जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। निजी स्कूलों के बच्चों के बस्ते का बोझ बढ़ता जा रहा है। इसपर लगाम लगाने के लिए कई बार निर्देश जारी होते रहे, लेकिन इस पर अमल आज तक नहीं हो पाया। आदेश-निर्देशों के अलावा बच्चों के अभिभावकों को भी स्कूल बैग के चयन में भी सावधानी बरतनी चाहिए। बच्चों के लिए ऐसे बैग का चयन किया जाना चाहिए जिसकी पट्टी चौड़ी व गद्देदार हो ताकि कंधे पर बोझ पड़े भी तो कोई तकलीफ न हो। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बैग का वजन कम से कम रहे। वजन 600 ग्राम से ज्यादा न हो इसका विशेष ध्यान रहे।
ऐसे करें स्कूल बैग का चयन
-ऐसे स्कूल बैग (बस्ता) का चयन किया जाना चाहिए, जिसकी पट्टी (स्ट्रैप) चौड़ी व गद्देदार हो। एक पट्टी वाले बैग का उपयोग ना करें, इससे गर्दन व कंधे पर तनाव हो सकता है।
-एलकेजी स्कूल बैग का भार बच्चे के भार का 10 या 15 फीसद ही होना चाहिए।
-बैगपैक (स्कूल बैग) में लगे कमर की पट्टी का उपयोग करना चाहिए। भारी वस्तुओं को बीच में रखें।
-कंधे पर लटकाने वाली पट्टी ढीली नहीं होनी चाहिए। वह शरीर से सटी होनी चाहिए। बैगपैक पीठ के बीच में होनी चाहिए। यह कमर से नीचे नहीं लटकना चाहिए। इससे रीढ़ की हड्डी व कंधे पर जोर कम पड़ता है।
-चकरी वाले बैगपैक का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे सीढ़ियों पर चढ़ने में कठिनाई होती है।
-बच्चों को खेलने के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि स्कूल बैग ढोने के कारण होने वाले मांसपेशियों में तनाव को कम किया जा सके।
-बच्चों को अनावश्यक वस्तुएं या पुस्तकें स्कूल बैग में भरने से रोकना चाहिए।
-बच्चों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वह हर चीज स्कूल बैग में ही नहीं ठूंसे। उन्हें लॉकर व डेस्क में भी किताबें रखने की आदत डालने को कहें।
बढ़ा रहा रीढ़ की हड्डी के रोग
दरअसल,भारी बैग बच्चों के लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा है। जमशेदपुर के छात्र-छात्राओं में रीढ़ की हड्डी के रोग तेजी से बढ़ा है। इसका मुख्य कारण भारी बैग को ही माना जा रहा है। महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल, एपेक्स हॉस्पिटल सहित अन्य निजी अस्पतालों का आंकड़ा देखा जाए तो हर माह 25 से अधिक स्कूली छात्र रीढ़ की हड्डी में परेशानी लेकर पहुंच रहे हैं। छोटी सी उम्र में बच्चों को इस तरह के रोग से जूझना काफी चिंता का विषय है।
लंबे समय तक पीठ पर बस्ते का बोझ ढोने के दुष्प्रभाव
-गले व कंधे में तनाव, इससे गर्दन में दर्द की समस्या
-रीढ़ की हड्डी के क्षतिग्रस्त होने की आशंका
-असामान्य शारीरिक गतिविधि के कारण सांस लेने से जुड़ी समस्या
-स्कोलियोसिस (मेरूवक्रता) की समस्या
- पीठ दर्द के साथ मांसपेशियों के संकुचन की समस्या का बढ़ना
शोध के आंकड़े
-60 फीसद 12 से 17 साल के विद्यार्थी अपने वजन से दस प्रतिशत ज्यादा बोझ उठाते हैं।
-20 फीसद 12 से 17 साल उम्र के विद्यार्थी अपने वजन से 15 फीसद अधिक बस्ते का बोझ ढोते हैं।
-चार में एक छात्र को साल भर में 15 दिन या इससे अधिक समय तक पीठ दर्द की समस्या।
इन बातों का रखें ध्यान
-बैग को लटकाने के बाद बच्चे का पॉस्चर चेक करना जरूरी है।
-बच्चा स्कूल केवल वही तीजें ले जाए जो जरूरी हैं।
-बच्चों में बचपन से ही शारीरिक व्यायाम और योग की आदत डालें।
बच्चों में हो सकती है ये समस्याएं
कंधों पर बुरा असर : भारी बैग से बच्चों के कंधों पर बुरा असर हो सकता है। दर्द बना रह सकता है।
हाथों में झंझनाहट : भारी बैग लेने से हाथों में झंझनाहट और कमजोरी आने लगती है। इससे बच्चों की नसें भी कमजोर हो जाती हैं।
लोअर बैक में परेशानी : भारी बैग से लोअर बैक झुकी और टेढ़ी हो सकती है। इससे बच्चे आगे झुककर चलने लगते हैं। उनके पॉस्चर में बदलाव आ जाता है।
स्पॉन्डलाइटिस की समस्या : बच्चे जितना भारी बैग उठाएंगे आगे चलकर उनमें स्पॉन्डलाइटिस की समस्या होगी।
फेफड़ों पर दबाव : भारी स्कूल बैग से बच्चों के फेफड़ों पर दबाव पड़ने लगता है। साथ ही उनकी सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है जो खतरनाक है।