फुटबॉल की दीवानगी में छोड़ी परीक्षा
धीर-वीर-गंभीर बासेत हांसदा को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि बचपन से फुटबॉल खेलने का शौक था।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : धीर-वीर-गंभीर बासेत हांसदा को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि बचपन में वह इतने नटखट रहे होंगे। टाटा फुटबॉल अकादमी के दीक्षा समारोह में सर्वश्रेष्ठ कैडेट का सम्मान हासिल करने वाले कॉलेज के जमाने में परीक्षा छोड़ फुटबॉल खेलने पहुंच जाते थे। इसके लिए कई बार उन्हें माता-पिता से डांट भी सुननी पड़ती थी। 2013 की बात है। उस समय करनडीह स्थित श्यामा प्रसाद कॉलेज में इंटरमीडियएट (कॉमर्स) प्रथम वर्ष के छात्र थे। कॉलेज में परीक्षा चल रही थी। दोस्तों ने बासेत को कहा कि फुटबॉल मैच खेलने चलना है। बासेत भला कहां रुकने वाले थे। दोस्तों का दिल रखने के लिए चल दिए। फुटबॉल के चक्कर में परीक्षा छूट गया। घर में माता-पिता को पता चला तो फिर बासेत को जमकर डांट पड़ी। लेकिन आज पेशे से किसान पिता कृष्णा हांसदा व माता कपूरा हांसदा को अपने इस सपूत पर गर्व है।
दीक्षा समारोह में मौजूद माता-पिता के सामने प्रमाण पत्र लेने के लिए जैसे ही बासेत का नाम पुकारा गया, माता-पिता की आंखें खुशी से नम हो गई। सुंदरनगर के जोंड्राबेरा के रहने वाले बासेत का शुरू से झुकाव फुटबॉल की ओर था। जेएसए लीग में खेलने वाले रायसेन हांसदा उनके बड़े भाई हैं। 2013 में उनकी प्रतिभा को देखते हुए दानापुर स्थित आर्मी ब्वायज स्पोर्ट्स स्कूल में चयन किया गया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह मेडिकल टेस्ट में पास नहीं कर पाए। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मैदान पर पसीना बहाते रहे। इसी बीच टाटा फुटबॉल अकादमी का चयन ट्रायल हो रहा था। बासेत ने जी जान से मेहनत की और अंतिम चयन प्रक्रिया में भी बाजी मार ले गया।
बासेत की प्रतिभा को देखते हुए जमशेदपुर एफसी प्रबंधन ने उन्हें जूनियर टीम का कप्तान बनाया। बासेत ने कहा, टीएफए में बिताया हर पल अविस्मरणीय है। इस स्वर्णिम पल को कभी भुला नहीं पाऊंगा। यहां मिली सीख न सिर्फ मैदान के अंदर बल्कि मैदान से बाहर भी चुनौतियों का सामना करने में मददगार साबित होगा।