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World environment day 2019 : झारखंड के इस जिले में बढ़ा जंगल का क्षेत्रफल, बढ़ाने वालों का बढ़ा हौसला

World environment day 2019. ज्योग्राफिकल सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी सिंहभूम में जंगल का दायरा बढ़कर 30. 21 प्रतिशत हो गया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 05 Jun 2019 02:15 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2019 02:15 PM (IST)
World environment day 2019 : झारखंड के इस जिले में बढ़ा जंगल का क्षेत्रफल, बढ़ाने वालों का बढ़ा हौसला
World environment day 2019 : झारखंड के इस जिले में बढ़ा जंगल का क्षेत्रफल, बढ़ाने वालों का बढ़ा हौसला

जमशेदपुर, मनोज सिंह।  World environment day 2019 झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में जंगलों का बढऩा सुखद संदेश है। जिले में जहां सरकारी मानक के अनुसार 33 प्रतिशत भू-भाग पर जंगल होना पर्यावरण के दृष्टिकोण से सही माना जाता है। इस दिशा में पूर्वी सिंहभूम जिला धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ नजर आता है। ज्योग्राफिकल सर्वे की पुराने रिपोर्ट में जहां जिले में जंगल 29.5 प्रतिशत भू-भाग पर था। जो नए ज्योग्राफिकल सर्वे रिपोर्ट में बढ़कर 30. 21 प्रतिशत हो गया है।

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इससे जमशेदपुर वन प्रमंडल में काम करने वाले अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक का हौसला बुलंद है। जबकि दूसरी ओर झारखंड में सबसे भयावह स्थिति जामताड़ा 5.36 प्रतिशत, देवघर 8.16 प्रतिशत तथा धनबाद में मात्र 10 प्रतिशत भू-भाग पर जंगल अच्छादित है। जहां यदि समय रहते जंगल नहीं बढ़ाई गई तो आने वाले दिनों में पर्यावरण के दृष्टि से ये इलाके मानव हों या पशु जीवन यापन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है।  

जंगल बढऩे के ये रहे कारण 

पूर्वी सिंहभूम जिले के वन प्रमंडल पदाधिकारी डॉ. अभिषेक कुमार कहते हैं कि जंगल बढऩे का सबसे बड़ा कारण है पौधा को लगाकर उसे सुरक्षा प्रदान करना। इसमें उनकी प्राथमिकता है लगातार लोगों को पौधों की सुरक्षा के प्रति जागरूक करना। यही कारण है कि कई सामाजिक संस्था वनों की रक्षा के लिए खुद आगे बढ़-चढ़ कर कार्य कर रही है। डीएफओ कहते हैं कि इसका जीता जागता उदाहरण है पद्मश्री जमुना टुडू, लेडी टार्जन के नाम से प्रसिद्ध हरियार सकाम वन सुरक्षा समिति सड़कघुट्टू की कानदोनी सोरेन, जमशेदपुर में ग्रीन मैन के नाम से फेमस हो चुके एचडी त्रिपाठी आदि का का योगदान अपने-आप में महत्वपूर्ण है। 

स्वर्णरेखा नदी के किनारे लगाये गये अधिकांश पौधे जिंदा

आज स्थिति यह है कि पूर्वी सिंहभूम जिले में स्वर्णरेखा नदी के किनारे लगाए गए 30 हजार पौधों में अधिकांश पौधे जिंदा हैं। यदि सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में स्वर्णरेखा नदी के किनारे खाली स्थान पूरी तरह हरे-भरे नजर आएंगे। जंगल बढऩे का एक अन्य कारण है प्राकृतिक वनों का पुनरुद्धार योजना के तहत नष्ट हो चुके जंगल को दोबारा तैयार करना। इस पर बहुत ही तेजी से काम चल रहा है। जंगल बढऩे में अनचाही घास भी बहुत बड़ी बाधा थी। उस बाधा को दूर करने के लिए सभी रेंज में लीफ ब्लोवर, ग्रास कटर आदि दिए गए हैं ताकि जहां पौधे लगाए जाते हैं वहां घास न उग सके। 

जंगल बढऩे में सरकारी नियम भी बाधा

 पौधे को पेड़ बनने में सरकारी नियम की बाधा ने पौधे की जवानी में ही खलल डाल रहा है। पूर्व में जहां गेबियन में पौधे लगाए जाने के बाद उस क्षेत्र के लोगों को पांच साल के अनुबंध पर पौधों का देखरेख के लिए रखा जाता था। जिससे पांच साल में पौधे जड़ पकड़ लेते थे और जब गेबियन टूट भी जाता था तो पौधा अपने आप तैयार हो जाता था। ऐसी स्थिति में गेबियन में लगाए जाने वाले पौधे की संख्या 100 होती थी तो उसमें से 90-95 प्रतिशत पौधे बच जाते थे। जिसे वन विभाग की भाषा में सबसे उच्च स्तर माना जाता है। इसके बाद सरकार का फरमान आया कि अब पौधों का देखभाल पांच साल के बजाय तीन साल तक ही किया जाए। इसके बाद वन विभाग ने तीन साल तक ही पौधा का देखभाल के लिए मजदूर रखने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि तीन साल तक पौधे 95 प्रतिशत तक सही सलामत रहे और जैसे ही पौधे देखभाल बंद हुई मवेशी हो या आम जनता उसे नष्ट करना शुरू कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि लगभग आधा पौधा यानि 50-60 प्रतिशत तक ही जीवित रह पाता है बाकि नष्ट हो जाता है। 

प्रत्येक वर्ष लगाए जाते हैं 10 लाख पौधे 

अकेले पूर्वी सिंहभूम जिले को ही लें तो वन विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष विभिन्न योजनाओं जैसे अवकृष्ट वनों के पुनर्वास योजना, शीघ्र बढऩे वाले पौधे तथा शहरी वानिकी योजना के तहत सड़कों के किनारे बांस गैबियन के तहत लगभग 10 लाख पौधे लगाए जाते हैं। यदि इसका सही से देखभाल हो तो इतने पौधे लगने पर जंगल ही जंगल नजर आएंगे। इस संबंध में जमशेदपुर वन प्रमंडल के डीएफओ डॉ. अभिषेक कुमार बताते हैं कि पूरे देश में पूर्वी सिंहभूम की स्थिति अन्य जिलों से बेहतर है।  

30 प्रतिशत से अधिक जंगल वाले 10 जिले 

- लातेहार - 56.02 प्रतिशत 

- चतरा - 47.50 प्रतिशत 

- प. सिंहभूम - 46.59 प्रतिशत 

- कोडरमा - 40.31 प्रतिशत 

- हजारीबाग - 38.00 प्रतिशत 

- खूंटी - 35.66 प्रतिशत 

- गढ़वा - 33.96 प्रतिशत 

- लोहरदगा - 33.56 प्रतिशत 

- सिमडेगा - 32.88 प्रतिशत 

- पूर्वी सिंहभूम - 30.21 प्रतिशत 

20 प्रतिशत से भी कम जंगल वाले सात जिले 

जामताड़ा - 5.36 प्रतिशत 

देवघर - 8.16 प्रतिशत

धनबाद - 10 प्रतिशत 

दुमका - 15.32 प्रतिशत 

पाकुड़ - 15.85 प्रतिशत 

गिरीडीह - 17.94 प्रतिशत 

गोड्डा - 18.58 प्रतिशत 

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