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यहां समाई 111 वर्ष की गाथा

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : बिष्टुपुर स्थित जुबिली पार्क से सटा रूसी मोदी सेंटर फॉर एक्सीलेंस, जहां टाट

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 07:53 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 07:53 PM (IST)
यहां समाई 111 वर्ष की गाथा
यहां समाई 111 वर्ष की गाथा

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : बिष्टुपुर स्थित जुबिली पार्क से सटा रूसी मोदी सेंटर फॉर एक्सीलेंस, जहां टाटा स्टील का अभिलेखागार (आर्काइव) भी है। यह ना केवल दूर से ही किसी को भी आकर्षित करता है, बल्कि अंदर आने वाले की स्मृतियों में यह स्थान बस जाता है। आर्काइव में ना केवल टाटा स्टील का 111 वर्ष का सफरनामा दस्तावेज के रूप में बंद है, बल्कि कई सामग्री भी है जो कंपनी के स्वर्णिम अतीत की ओर ले जाते हैं। दस्तावेजों में औद्योगिक भारत की नींव पड़ने से लेकर शहर के आबाद होने तक की पुरानी तस्वीरें हैं, तो इससे जुड़ी महान हस्तियों की रोचक गाथा भी संजोकर रखी गई हैं। दो मंजिला आर्काइव में अलग-अलग खंड बने हुए हैं, जिसके दूसरे तल में जेआरडी टाटा से जुड़ी स्मृतियां व इतिहास रखे गए हैं।

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यहां के कंपनी के लिए ऐतिहासिक महत्व के पत्र, तस्वीर, रिपोर्ट, मानचित्र और चार्ट को संरक्षित रखने के लिए निजी संस्थान द्वारा स्थापित टाटा स्टील अर्काइव्स देश का पहला अभिलेखागार है। यह अर्काइव्स रिपोर्ट, पत्र और मानचित्रों का एक समृद्ध खजाना है, जो कंपनी के प्रारंभिक विकास चरणों के साथ-साथ ग्यारह दशकों से अधिक समय के दौरान हुए विकास का दस्तावेजीकरण करता है। जुबिन मिस्त्री (वीपी, फाइनास, टाटा सर्विसेज) पर टाटा सेंट्रल आर्काइव्स की जि़म्मेदारी भी है।

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मिसाइल मैन भी थे मुरीद

पिछले 25 वर्ष में टाटा स्टील का जो भी मेहमान शहर में आया, उसे इस आर्काइव का भ्रमण कराया गया। उन्होंने इसकी अतिथि पुस्तिका में अपने अनुभव भी लिखे। इनमें पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्‍‌न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, बांग्लादेश के नोबेल विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस, विश्व प्रसिद्ध चित्रकार पद्मभूषण जतिन दास, थाईलैंड के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री कोसित पेंपिरास (2007) व प्रख्यात लेखक आरएम लाला (1994) समेत दुनिया की कई जानी-मानी हस्ती शामिल थे।

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एक लाख दस्तावेज डिजिटलाइज

टाटा स्टील आर्काइव में मौजूद पत्र, पत्रिका, रिपोर्ट, पुस्तक आदि के करीब एक लाख दस्तावेज को डिजिटलाइज किया गया है। वहीं मौजूद कागजी दस्तावेजों को रासायनिक विधि से संरक्षित किया गया है, ताकि इसे कीड़ों या फफूंद से नुकसान ना हो। कागजों के रंग पीले ना पड़ें, जबकि महत्वपूर्ण पत्रों को लैमिनेट किया गया है।

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मजदूरों के लिए लगाई गई थी सोडा मशीन

टाटा स्टील में मजदूरों के लिए 1914 में सोडा मशीन लगाई गई थी, जिससे मजदूरों को गर्मी के मौसम में प्रति घंटे ठंडा सोडा वाटर दिया जाता था। जाड़े के दिनों में हर दो घंटे पर यह उपलब्ध कराया जाता था। उस समय किसी भी कंपनी में मजदूरों के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं थी। मशीन का निर्माण बारनेट एंड फोस्टर इंजीनियर्स, लंदन ने किया था।


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