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अफ्रीकी कलाकारों ने संगीत से जगाई पूर्वजों की आत्मा

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : टाटा स्टील द्वारा आयोजित जनजातीय सम्मेलन 'संवाद' का चौथा दिन रंगारंग स

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 11:23 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 11:23 PM (IST)
अफ्रीकी कलाकारों ने संगीत से जगाई पूर्वजों की आत्मा
अफ्रीकी कलाकारों ने संगीत से जगाई पूर्वजों की आत्मा

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर :

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टाटा स्टील द्वारा आयोजित जनजातीय सम्मेलन 'संवाद' का चौथा दिन रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से गुलजार रहा। बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में रविवार को देश-विदेश के आदिवासी कलाकारों ने अपनी-अपनी संस्कृति की अद्भुत छटा बिखेरी, तो मैदान में खचाखच भरे दर्शकों ने भी तालियों की गड़गड़ाहट से हर प्रस्तुति को सराहा।

यूं तो कार्यक्रम की शुरुआत हिमाचल प्रदेश की किन्नौरी जनजाति ने शादी-ब्याह का जीवंत चित्रण से की, तो इसी क्रम में महाराष्ट्र की ठाकुर जनजाति ने डोंगरिया नृत्य से समां बांध दिया। इसके बाद मंच अफ्रीकी कलाकारों के नाम रहा, जिसमें सबसे पहले अफ्रीका के कैमरून से आए कलाकार बिंगोनो ने अंकुल नामक लकड़ी के वाद्ययंत्र से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

बिंगोनो ने बताया कि आज से करीब दस हजार साल पहले लकड़ी के मांदरनुमा ढांचे पर सूखी लकड़ी के डंडों से चोट करके संवाद स्थापित किया जाता था। अलग-अलग तीव्रता के साथ यह ध्वनि टेलीग्राफ की तर्ज पर बात करती है। इस सांकेतिक भाषा से ना केवल मीलों दूर लोग आपस में बातचीत करते थे, बल्कि यह पूर्वजों की आत्मा से भी बात करने का माध्यम था। आज भी मान्यता है कि इससे निकली प्रतिध्वनि पूर्वजों की आवाज होती है। दर्शक-श्रोता इस अनूठे वाद्ययंत्र पर मुग्ध हो ही रहे थे कि मंच पर दक्षिण अफ्रीका के करीब आधा दर्जन कलाकार अवतरित हो गए। इन महिला-पुरुष कलाकारों ने दक्षिण अफ्रीका की चार जनजातियों स्वाजी, पेरी, जुलू व जोजा को एक साथ प्रस्तुत किया। स्टेज पर बड़े दीये में आग जलाकर उससे निकलते धुएं के बीच नगाड़े बजाते हुए सब अजीब सी गूंज पैदा कर रहे थे। कलाकारों ने बताया कि इस संगीत से ना केवल उनके पूर्वजों की आत्मा जागृत होती है, बल्कि उनसे आशीर्वाद भी मिलता है। आत्मा की आवाज महसूस करते हुए कलाकारों ने स्टेज पर बेहतरीन नृत्य किया, जिसका दर्शकों ने भरपूर लुत्फ उठाया। शहरवासियों के इस प्यार से कलाकार भी अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके।

किन्नौरी दुल्हन परी, दूल्हा राजा : संवाद में सांस्कृतिक कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति हिमाचल प्रदेश की थी, जिसमें किन्नौरी जनजाति के विवाह की रस्म दिखाई गई। भारत-तिब्बत सीमा से सटे हंगरंग घाटी में होने वाली शादी की पूरी रस्म प्रस्तुत की। कलाकारों ने बताया कि उनके यहां दुल्हन या वधू को परी और दूल्हे को राजा कहा जाता है। पुजारी की भूमिका लामा निभाते हैं। आमतौर पर शादियों में वर पक्ष को महत्व दिया जाता है, जबकि किन्नौर में वधू पक्ष को। वधू पक्ष से दहेज नहीं लिया जाता है, बल्कि ससुराल आने पर उसे सास-ससुर उपहार के रूप में एक खेत या बगीचा देते हैं। यही नहीं, दुल्हन तब तक ससुराल की देहरी में कदम नहीं रखती, जब तक सास उसे मुंहमांगी रकम नहीं देती। इसमें कलाकारों ने बारात से लेकर दावत तक की रस्म को जीवंत कर दिया। मंच पर आते ही कलाकारों ने 'जुले' (जोहार या प्रणाम) से शहरवासियों का अभिवादन किया।

मराठा के ठाकुरों ने कर दिया स्तब्ध : गोपाल मैदान में रविवार की दूसरी प्रस्तुति महाराष्ट्र के ठाकुर जनजाति की रही, जिसमें कलाकारों ने हैरतअंगेज प्रस्तुति से सबको स्तब्ध कर दिया। कलाकारों ने पहले गोईठा (गाय के गोबर से बना कंडा) पर कपूर जलाकर डोंगरिया देव की पूजा की, तो इसके बाद ढोल-नगाड़े की धुन पर डोंगरिया नृत्य किया। पीले कुर्ते, सफेद पाजामा और लाल पगड़ी में सजे युवा कलाकारों ने गोल-गोल घूमते हुए तेज गति से नृत्य किया, तो बीच-बीच में एक-दूसरे की पीठ पर चढ़कर पिरामिड जैसी आकृति बना रहे थे। इसमें कुछ कलाकार बाघ-भालू बने, तो कुछ भोले शंकर ओर मां काली का रूप भी धारण किए हुए थे। अंत में ढोलक की थाप पर वृत्ताकार घूमते हुए दर्शकों की सांसें रोक दी।

डंडारी नृत्य ने दिलाई डांडिया की याद : ओडिशा के कोरापुट जिले से आई धुर्वा जनजाति के युवा कलाकारों ने डंडारी नृत्य से दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं। दरअसल यह डांडिया जैसा नृत्य है, लेकिन इसमें डंडी या स्टिक की लंबाई डांडिया वाले स्टिक से दोगुनी लंबी और मोटी होती है। डंडे को ऊपर से चीरा भी लगाया गया था, जो टकराने पर चिमटे जैसी ध्वनि निकाल रहे थे। काफी तेज गति से झूमते हुए महिला-पुरुष कलाकार एक-दूसरे से डंडी टकरा रहे थे। बताया गया कि ओडिशा मे करीब 64 जनजातियां हैं, जिसमें धुर्वा लुप्तप्राय जनजाति है। इस जनजाति का दावा है कि डांडिया की उत्पत्ति उनके डंडारी नृत्य से हुई है। बांसुरी, मांदर और नगाड़े की धुन पर डंडारी नृत्य की प्रस्तुति अद्भुत रही।

चाय बागानेर झुमुर नाच : सांस्कृतिक कार्यक्रम का अंतिम चरण ओडिशा के नाम रहा, जबकि इससे पहले प. बंगाल के कलाकारों ने चाय बागानेर झुमुर नाच प्रस्तुत किया। आमतौर पर यह नृत्य असम व प. बंगाल के चाय बागानों में किया जाने वाला नृत्य है, जबकि यहां बंगाल के उरांव जनजाति के कलाकारों ने प्रस्तुति दी। इसके बाद ओडिशा के जनजातीय कलाकारों ने राभा, बोंडा व सौरा नृत्य किया। अंतिम प्रस्तुति मयूरभंज के तुरसांग हो म्यूजिकल ग्रुप की रही, जिसने लोकगीतों को आधुनिक व पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ प्रस्तुत कर शहरवासियों का भरपूर मनोरंजन किया।

संवाद का समापन आज : जनजातीय सम्मेलन संवाद का समापन सोमवार को होगा, जिसमें सुबह से शाम तक कार्यक्रम होंगे। सुबह आठ बजे से पांरपरिक प्रार्थना सभाहोगी, जबकि इसके बाद वहां कलाकार-प्रतिभागी अपने अनुभव साझा करेंगे। वहीं गोपाल मैदान में सुबह 8.30 से दोपहर 1.30 बजे तक वैद्यराज विभिन्न रोगों के देसी उपचार बताएंगे, तो दोपहर तीन बजे से ट्राइबल आर्ट एंड क्राफ्ट के नाम रहेगा। शाम 5.30 बजे से रात 9.30 बजे तक देश-विदेश से आए जनजातीय कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे।


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