यहां पूर्वजों को नया अन्न अर्पित करने के बाद ही ग्रहण करने का चलन
आदिवासी हो समाज धान की नई फसल तैयार होने के बाद जोमनामा पोरोब मनाता है। इसमें पूजा के साथ नई फसल पूर्वजों को अर्पित किया जाता है।
जमशेदपुर( दिलीप कुमार)। यहां पूर्वजों को नया अन्न अर्पित करने के बाद ही खुद ग्रहण करने का चलन है। झारखंड का आदिवासी हो समाज धान की नई फसल तैयार होने के बाद जोमनामा पोरोब मनाता है। इसमें पूजा के साथ नई फसल पूर्वजों को अर्पित किया जाता है। इसके बाद ही हो समाज के लोग नया अन्न खाना शुरू करते हैं।
हो समाज के आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्थान के सतीश चंद्र बिरूली बताते हैं कि महिलाएं पूजन सामग्री तैयार करती हैं। पुरुष पूजा के लिए धान की बाली, भेलुवा पत्ता, पूयंल बा, एक प्रकार का सफेद मुलायम फूल जो आकार में लंबा व खेतों के आढ़ एवं मैदानी हिस्से में खिलता है और मकई, गंगई घर ले कर आते हैं।
घरों में गृहणी करती पूजा
पर्व के दिन दिउरि ऐरा, पुजारी की पत्नी, अपने घर में व्रत रखकर पूजा करती हैं। इसके बाद अन्य घरों में गृहिणी पूजा करती हैं। इस दिन गृहिणी नए हंडी व चाटू में धान को भूंज कर ओखल से कूट चूड़ा बनाती हैं। धान के छिलके को कूट महीन बनाती हैं। गोबर से घर आंगन को लीपने के बाद गृहिणी नहा धोकर पूजन वस्त्र लांगा और गमछा पहन पूजन सामग्री तैयार करती हैं। पूजास्थल के बगल में फूल, भेलुवा पत्ता, धान की बाली और मकई रखकर पूजा की जाती है।
सबसे पहले पूर्वजों को करते याद
सर्वप्रथम पूर्वजों को याद किया जाता है। नई फसल व पानी अर्पित किया जाता है। इसके बाद पूजा गया फूल, धान की बाली, चूड़ा, धान के छिकले के महीन चूर्ण को भेलुआ पत्ता में लपेट घर के सभी दरवाजों में खोंस दिया जाता है। लोग चूड़ा, धान के छिलके का महीन चूर्ण, रसि ग्रहण करते हैं। इसके उपरांत गृहिणी नए हंडी में नए चावल, चौली का भात व नए मूंग की दाल बनाती हैं। बनाने से पूर्व इसे भूंजकर ओखली में हल्का कूटा जाता है। इसमें हल्दी का प्रयोग नहीं होता।
हंडिय़ा और रसि बगैर पूजा अधूरी
हो समाज में हंडिय़ा के बिना पूजा अधूरी है। गृहिणी जोमनामा पोरोब के लिए हंडिय़ा (डियंग) पहले तैयार कर लेती हैं। हंडिय़ा रसि चावल और रानू से बनती है। तैयार होने में तीन दिन लगता है। इससे हल्का पीला रंग का रस निकलता है, जिसे रसि कहते हैं।
ऐसे करते हैं पूजा
गृहिणी कांसा के लोटा में पानी ले पूजन स्थल रसोई घर के एक हिस्से में पानी का छिड़काव करती हैं। माना जाता है कि पानी छिड़क कर पूर्वजों का हाथ,पैर धोया जाता है। अंधेरा होने से पूर्व हो पूजा हो जानी चाहिए। चूड़ा व धान के छिकले के महीन चूर्ण को भेलुवा के सात पत्तों में तीन छोटी छोटी चुटकी भर, एक सीधी लाइन बनाकर रख दिया जाता है। नई हंडी में नए चावल का बनाया गया हंडिय़ा और रसि को भी सात साल पत्तों के दोना में रखा जाता है। बगल में एक दोना पानी रखा जाता है।
पुजारी की पत्नी तय करती है तिथि
इस पर्व की तिथि गांव के दिउरि (पुजारी) की पत्नी दिउरि एरा की शुद्धता के आधार पर तय की जाती है। दिउरि एरा के शारीरिक रूप से अशुद्ध रहने पर पर्व मनाने की तिथि बदल दी जाती है।