रेलवे पर नहीं था भरोसा, 1600 किमी का सफर किया तय
पूर्वी सिंहभूम के मानगो गुरुद्वारा रोड निवासी हरिकीर्तन सिंह सोढ़ी (70) को रेलवे पर भरोसा नहीं था, इस कारण उन्होंने हैदराबाद से टाटानगर तक की दूरी मोटरसाइकिल से ही नाप ली।
जमशेदपुर [ गुरदीप राज]। उम्र 70 साल। इस उम्र में अकेले सफर से पहले चार बार सोचने की मजबूरी होती है। बावजूद इसके इस शख्स ने 1600 किलोमीटर की दूरी मोटरसाइकिल से नापने का फैसला किया। यह हैरत में डालने वाला तो है, लेकिन इसकी खास वजह है। पूर्वी सिंहभूम के मानगो गुरुद्वारा रोड निवासी हरिकीर्तन सिंह सोढ़ी (70) को रेलवे पर भरोसा नहीं था, इस कारण उन्होंने हैदराबाद से टाटानगर तक की दूरी मोटरसाइकिल से ही नाप ली।
कनकनाती ठंड में ही 1600 किलोमीटर का सफर दो दिनों में तय कर लिया। हरिकीर्तन सिंह गुरुवार की सुबह सात बजे हैदराबाद से बाइक से निकले और शनिवार की शाम सात बजे तक मानगो गुरुद्वारा रोड स्थित अपने घर पहुंच गए। घर पहुंचने पर पत्नी ने अरदास की, तो बस्तीवासी बुजुर्ग हरिकीर्तन को बधाई देने पहुंचे।
पहले दिन किया साढ़े छह सौ किलोमीटर का सफर
गुरुवार की सुबह हैदराबाद से यात्रा शुरू करने के बाद करीब 6.50 किलोमीटर का सफर तय किया और विशाखापटनम पहुंच गए। वहां कुछ देर रुकने के बाद वे विजयवाड़ा, फिर पुरी स्थित आरती साहिब गुरुद्वारा पहुंचे और रात्रि विश्राम करने के बाद पुन: तड़के टाटानगर के लिए सफर शुरू किया। वहां से शनिवार की शाम टाटानगर पहुंचे।
400 सीसी की बाइक से तय की दूरी
बजाज कंपनी की बजाज डोमिनर 400 सीसी की बाइक से हरिकीर्तन सिंह सोढ़ी ने हैदराबाद से मानगो तक का सफर तय किया। इस सफर में उन्हें बाइक में करीब 4000 रुपये का पेट्रोल भराना पड़ा।
नगर कीर्तन में घुड़सवारी करते थे हरिकीर्तन
लौहनगरी में गुरु गोविंद सिंह जी का नगर कीर्तन निकला करता था। हरकिशन के पिता जत्थेदार अकाली स्व. संता सिंह हाथी में बैठकर नगर कीर्तन के आगे आगे चला करते थे। जबकि बचपन से ही हरिकीर्तन सिंह सोढ़ी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए नगर कीर्तन में घोड़े में बैठकर सवारी करते थे। हरिकीर्तन सिंह ने अपने स्कूली जमाने में मानगो से रांची तक का सफर साइकिल से भी तय किया था।
रेलवे पर नहीं है भरोसा
रेलवे के पार्सल विभाग से जो बाइक व वाहन गंतव्य तक के लिए बुक की जाती हैं, वे अक्सर समय पर वाहन मालिक को नहीं मिलती हैं। कभी-कभी तो रेलवे की गलती के कारण एक से डेढ़ माह तक बाइक व अन्य सामान मालिक को मिलता ही नहीं है। इतना ही नहीं, पार्सल कोच में बाइक व अन्य वाहनों के कभी हेडलाइट टूट जाती हैं तो कभी ब्लिंकर। जिस स्टेशन में बाइक को उतारना होता है उस स्टेशन में समय कम होने की वजह से ज्यादा देर तक ट्रेन के पार्सल कोच का दरवाजा खोल कर नहीं रखा जाता और आननफानन पार्सल कर्मी बाइक व अन्य वाहन को ट्रेन से उतार ही नहीं पाते और ट्रेन उस स्टेशन से रवाना हो जाती है।
सामान पाने को करनी पड़ती जिद्दोजहद
ट्रेन के वापसी में फिर से वाहन या अन्य सामान को उतारने का प्रयास किया जाता है और यदि समय पर वाहन उतार लिया गया तो ठीक नहीं तो पुन: ट्रेन आगे निकल जाती है इस तरह वाहन मालिक को बार बार पार्सल विभाग के चक्कर लगाने पड़ते हैं। जिसको देखते हुए मानगो निवासी हरिकीर्तन सिंह सोढ़ी ने यह निर्णय कि रेलवे का चक्कर लगाने से अच्छा है कि वे खुद ही बाइक चला कर दो से तीन दिन में अपने घर पहुंच जाएं। हरिकीर्तन सिंह का बेटा हैदराबाद में रहता है। अब उनके बेटे की नौकरी डिफेंस में हो गई है, तो बाइक को वापस घर लाना था। बस फिर क्या था मारी किक और पहुंच गए टाटानगर।
ये भी पढ़ें: रफ्तार पकड़ते हाट बन जाती अंग्रेजों के जमाने की रेललाइन पर चलनेवाली यह ट्रेन