Holi Memory: विवाह पश्चात होली प्रतियोगी परीक्षा के न्यूनतम अंक के जैसा होता हैः रूपम झा
Holi Memory विवाह से पूर्व होली स्कोर (मैट्रिक परीक्षा का अंक) के जैसा होता है। जितनी भी मेहनत कीजिए वह प्राप्त हो जाएगा। अगर आप कुछ कम काम किए या कुछ गलत कर दिए तो फिर भी आपका नंबर नहीं कटेगा ।
जमशेदपुर। होली रंग-अबीर का त्योहार है। यह एक ऐसा चितकबरा रंग में मनुष्य को रंग देता है कि लोग खुद पर और दूसरों पर लगा रंग और मचलते अंतरंग का हृदय से आनंद लेते हैं। विवाह से पूर्व होली और विवाह के पश्चात होली का अनुभव मैं आप लोगों के सामने साझा करूंगी । उससे पहले अपने जीवन का एक ऐसी याद जो बिना भांग खाए, हाथी जैसा मदमस्त कर देता है साझा करना चाहती हूं।
मेरे साथ मेरे चचेरे और फुफेरे भाई-बहन जो 5 से 7 साल के अंतराल के थे, सब बैठकर मड़वा (मंडप) पर रंग-अबीर एवं खीर-पुआ, सिंघाड़ा-दहीबड़ा के संग आनंद ले रहे थे। साथ में दो भाभी एवं बहनोई चौधरी जी, ठाकुर जी एवं झाजी थे। कोई रंग लगाता, तो कोई किसी के मुंह में जबरदस्ती पूरा-पूरा समोसा मुंह में ठूंस देता। कोई बिना भांग खाए हुए, भंगेड़ी जैसी नकल करता था। सब मस्त थे, एक छोटा सा भाई जानबूझकर हकलाता हुआ बोल पड़ा, चौधरी जी चररर, ठाकुर जी ठररर। हंसी का फव्वारा छूटने लगा। सब का खाना-पीना छूट गया। केवल सब चौधरी जी चररर- ठाकुर जी ठररर बोलता। आज भी यह सुंदर दृश्य मानस पटल पर नाच उठता है।
विवाह से पूर्व होली स्कोर (मैट्रिक परीक्षा का अंक) के जैसा होता है। जितना भी मेहनत कीजिए वह प्राप्त हो जाएगा। अगर आप कुछ कम काम किए या कुछ गलत कर दिए, तो फिर भी आपका नंबर नहीं कटेगा । विवाह पश्चात होली प्रतियोगी परीक्षा के न्यूनतम अंक के जैसा होता है। आपके ऊपर दोगुना जिम्मेवारी होती है। निर्धारित अंक लाना ही है, यानी कि इतना काम करना ही है। यदि किसी भी कारण से काम कम पड़ जाए तो प्रतियोगी परीक्षा के जैसे मूल अंक में से एक अंक कट जाएगा। लोग पारिवारिक दायित्व को सही तरह से करने के प्रयास में खुद इतना थक जाते है कि उसे रंग अबीर से खेलना तो अच्छा लगता है, लेकिन उसके लिए रंग छुड़ाने का समय कम पड़ जाता है। लगता है, थोड़ा कम खेले होते तो ठीक होता । हमारे यहां एक प्रचलित कहावत है:- गीत-प्रीत सभै बिसीरी जब हरी के हाथ पर जाए लली।