अनुकंपा मिली, हक नहीं, पेंशन की आस में राह ताक रही आंखें
नियुक्ति 2008 में हुई और विज्ञापन व सेवा नियमावली में कहीं किसी नई पेंशन स्कीम का जिक्र नहीं था।
जासं, जमशेदपुर : यहां अनुकंपा पर नौकरी तो देर-सबेरे हो जाएगी लेकिन, हक कब मिलेगा, किसी को नहीं पता। मामला जुड़ा है कोल्हान विश्वविद्यालय में 2008 बैच में नियुक्त जेएलएन कॉलेज, चक्रधरपुर में फिजिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर दिवंगत डा. प्रमोद कुमार से। नियुक्ति 2008 में हुई और विज्ञापन व सेवा नियमावली में कहीं किसी नई पेंशन स्कीम का जिक्र नहीं था। ऐसे में बहुत से लोग जो पुरानी पेंशन के तहत कहीं पहले से सेवारत थे, नौकरी छोड़कर प्रोफेसर बनना पसंद किया। उन्हीं में से एक डा. प्रमोद कुमार जो दिवंगत हो चुके हैं। पिछले हफ्ते उनके बेटे को वीमेंस कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी में अनुकंपा पर नौकरी तो दी गई लेकिन, लगभग दो साल बाद भी उनकी पत्नी को पेंशन के हक से वंचित रखा गया है। गौरतलब है कि डा. प्रमोद कुमार कोल्हान विश्वविद्यालय की सीनेट के निर्वाचित सदस्य भी रहे हैं।
पेंशन की आस में डा. प्रमोद की पत्नी वंदना कुमारी की आंखे राह ताक रही हैं। पेंशन नहीं मिल पाने के कारण उनका पूरा परिवार किस तरह अपने परिवार को संभाला वह खुद ही जानती हैं। वंदना बताती है कि पेंशन से संबंधित सारे कागजात ठीक होने के बावजूद अब तक पेंशन शुरू नहीं हो सकी है। विश्वविद्यालय से लेकर रांची तक के अधिकारियों तक चक्कर लगा चुकी हैं।
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नई व पुरानी पेंशन स्कीम के बीच झूल रहे शिक्षक
दरअसल राज्य के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में सेवारत करीब 750 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के करीब 11 वर्ष बाद उच्च शिक्षा विभाग की ओर से विश्वविद्यालयों को पत्र भेजा गया। इसमें कहा गया कि वर्ष 2008 में नियुक्त सहायक प्राध्यापक वर्ष 2004 की न्यू पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। इसके बाद ही मामला उलझ गया। इस मामले को राज्य सरकार की ओर से कोई अधिसूचना ही जारी नहीं की गई। नई नियमावली के अधिसूचित नहीं होने के कारण फंस गया है। इस कारण जेपीएससी की ओर से आवेदन में भी इसका जिक्र नहीं है। कोल्हान विश्वविद्यालय समेत अन्य विश्वविद्यालय के सिडिकेट तथा सीनेट ने वर्ष 2019 के बाद नियुक्त शिक्षकों को नई पेंशन स्कीम के दायरे में लाने का प्रस्ताव उच्च शिक्षा विभाग को एक साल पूर्व ही भेजा जा चुका है। इसके बावजूद उच्च शिक्षा विभाग ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया। इसे लेकर कई शिक्षकों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हालांकि डा. प्रमोद की पत्नी ने अभी तक न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया है।