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स्वतंत्रता के सारथी : धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : बजरंग बली को कुदरत अली ने दी जमीन Jamshedpur News

कुछ वर्ष बाद वहां 51 फुट ऊंचा मंदिर बनाया गया जिसकी देखरेख श्रीश्री 108 खेलाई चंडी बजरंग दल अखाड़ा करती है। फिलहाल हाजी कुदरत अली और उनके पुत्र जैनुल आबदीन दुनिया में नहीं हैं।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 04:07 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 04:55 PM (IST)
स्वतंत्रता के सारथी : धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : बजरंग बली को कुदरत अली ने दी जमीन Jamshedpur News
स्वतंत्रता के सारथी : धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : बजरंग बली को कुदरत अली ने दी जमीन Jamshedpur News

जमशेदपुर (दिलीप कुमार) । वर्तमान समय में धर्म को लेकर तरह-तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। इनमें अधिकतर बातें सामाजिक विद्वेष बढ़ाती हैं, तो कुछ मिसाल बन जाती हैं। ऐसी ही एक मिसाल जमशेदुपर से करीब 30 किलोमीटर दूर चांडिल में है, जहां बजरंग बली की प्रतिमा व मंदिर के लिए स्थानीय हाजी कुदरत अली ने अपनी जमीन दे दी थी। सरायकेला-खरसावां जिला स्थित चांडिल कॉलेज रोड पर 21 फुट ऊंची बजरंग बली की प्रतिमा पूरे जिले की सबसे ऊंची प्रतिमा है। हालांकि वर्ष 2000 में दान की प्रक्रिया जैनुल आबदीन ने पूरी की, क्योंकि तब तक उनके पिता कुदरत अली का निधन हो चुका था।

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कुछ वर्ष बाद वहां 51 फुट ऊंचा मंदिर बनाया गया, जिसकी देखरेख श्रीश्री 108 खेलाई चंडी बजरंग दल अखाड़ा करती है। फिलहाल हाजी कुदरत अली और उनके पुत्र जैनुल आबदीन इस दुनिया में नहीं हैंं। फिलहाल जैनुल आबदीन के पुत्र फखरुद्​दीन अंसारी मंदिर कमेटी से जुड़े हैं और हर कार्यक्रम-अनुष्ठान में शामिल होते हैं। हिंदू मंदिर के लिए मुस्लिम द्वारा जमीन दान में देना सांप्रदायिक सौहार्द के साथ सामाजिक सद्भावना की बड़ी मिसाल है।

हर साल निकलता रामनवमी जुलूस

श्रीश्री 108 खेलाई चंडी बजरंग दल अखाड़ा के नेतृत्व में वर्ष 2000 से रामनवमी के अवसर पर झंडा विसर्जन जुलूस निकाला जा रहा है। पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ निकाले जाने वाले जुलूस में मुस्लिम समाज के लोग भी शामिल होते हैं। झंडा विसर्जन जुलूस के पूर्व अखाड़ा की ओर से सम्मान समारोह का आयोजन किया जाता है। सम्मान समारोह में प्रतिवर्ष क्षेत्र के विशिष्ट लोगों के साथ जमीनदाता परिवार को भी सम्मानित किया जाता है।

सभी धर्माें के बीच सामाजिक समरसता बनी रहे। विकास के पथ पर सभी एक साथ मिलकर कंधे से कंधा मिलाकर चलें, एक दूसरे के पर्व-त्योहार में शामिल होकर खुशियों को दोगुना करें, यही आपसी एकता का परिचय है। दादा हाजी कुदरत अली और पिता जैनुल आबदीन की उस सोच को साकार करना मेरा फर्ज है। सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए दोनों का कार्य मिसाल है।

- फखरुद्​दीन अंसारी, चांडिल।


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