स्वतंत्रता के सारथी : संविधान रक्षा का ऐसा जुनून कि नाम रख लिया भारतीय
svatantrata ke saarathee. टाटा स्टील की नौकरी छोटे भाई को दे दी और खुद अपना लिया टाइपिस्ट का पेशा। राजनीति शास्त्र में इन्होंने एमए कर रखा है।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। कोई भी काम नियम-कानून के विरूद्ध होता है, तो मन में कोफ्त सभी को होती है। लेकिन अधिकतर लोग मन मसोसकर रह जाते हैं। कुछ इसके खिलाफ आवाज उठाकर चुप हो जाते हैं, जबकि विरले ऐसे होते हैं जो उस गलती को सुधारने के लिए जुनून की हद तक चले जाते हैं।
ऐसे ही शख्स हैं केदारनाथ भारतीय। इनमें देशप्रेम की भावना बचपन से ही है, लेकिन करीब आठ साल पहले एक नेताजी का भाषण सुनकर जोश में आ गए। सोचा कि जब हर चीज संविधान से ही होना है, तो क्यों ना अपना नाम भी भारतीय रख लूं। इनका कहना है कि अब तक के जीवन में उन्हें दो बड़ी उपलब्धि हासिल हुई, जिसमें तिरंगा गुटखा बंद कराना और ई-स्टाम्प पेपर शुरू कराना। केदार बताते हैं कि गुटखा के रैपर नाली व सड़क पर बिखरे रहते थे। लोग पैर से कुचलते थे, जबकि उस पर राष्ट्रध्वज तिरंगे का निशान था। करीब छह साल पहले यह देखकर उनका मन कचोट गया। उन्होंने उपायुक्त कार्यालय पर धरना दिया। डीसी से लेकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक को पत्र लिखा।
जब गुटखा कंपनी का आया पत्र
जब चारों ओर से दबाव पड़ने लगा तो उनके पास कानपुर से गुटखा कंपनी का पत्र आया। उसमें लिखा था कि आप बेवजह आंदोलन कर रहे हैं। कानपुर आ जाएं, आपको जो चाहिए, मिल जाएगा। केदार बताते हैं कि उन्हें पत्र पढ़कर काफी गुस्सा आया। तत्काल उस पत्र को संलग्न करके सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया। करीब दो-तीन माह बाद फैसला आया और वह गुटखा बंद हो गया। इसी तरह स्टाम्प् पेपर की किल्लत और कालाबाजारी के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था। उन्हें समझ में आ गया कि इधर-उधर पत्र लिखना समय और पैसा बर्बाद करना है, इसलिए अब वे हर शिकायत सुप्रीम कोर्ट को भेजते हैं। कार्रवाई भी होती है।
टाइपिस्ट का पेशा इस वजह से
टाइपिस्ट के पेशे पर बताया कि उन्होंने जमशेदपुर को-आपरेटिव कालेज से राजनीति शास्त्र में एमए किया। पिता टाटा स्टील में नौकरी करते थे। जब पुत्र को नौकरी का निबंधन कराने की बात आई, तो मैंने छोटे भाई को दे दिया। मेरे दोनों बेटे भी ऑटो चलाकर जीविकोपार्जन करते हैं।
तिरंगे के ध्वज स्तंभ को एकरंगा बनवाना लक्ष्य
करीब 61 वर्षीय केदार का अगला लक्ष्य तिरंगे के ध्वज स्तंभ को एकरंगा बनवाना है। वह कहते हैं कि आमतौर पर ध्यान नहीं देते हैं कि राष्ट्रध्वज फहराने के लिए सीमेंट का जो ध्वज स्तंभ बनाया जाता है, उसकी सीढ़ियों को भी राष्ट्रध्वज के रंग में रंग देते हैं। झंडा फहराने या उतारने के लिए लोग उस स्तंभ पर चढ़ते हैं। यह तिरंगे का अपमान नहीं, तो क्या है। जहां स्तंभ नहीं होता, वहां लोग झंडे के चारों ओर रंगोली से तिरंगा का घेरा बना देते हैं, यह भी गलत है। इसके खिलाफ कानून बनवाना उनका उद्देश्य है।
आरएसएस की शाखा में भी जाते थे
1997 में मैट्रिक पास करने के बाद मानगो में लगने वाली आरएसएस की शाखा में जाने लगे। यहीं से मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। लगातार 11 वर्ष तक गए, लेकिन इन्होंने तब शाखा जाना छोड़ दिया जब एक संचालक ज्यादातर हिंदू धर्म की बात करने लगे। केदारनाथ भारतीय बताते हैं कि उस समय मानगो में 18 स्थान पर शाखा लगती थी।