कोरोना का डर : अस्पताल में मौत के बाद शव को गांव ले जाने से ग्रामीणों ने रोका
इसे कोरोना का भय ही कहेंगे कि पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड स्थित कोपे गांव में उसी गांव के एक वृद्ध के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने नहीं दिया गया।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : इसे कोरोना का भय ही कहेंगे कि पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड स्थित कोपे गांव में उसी गांव के एक वृद्ध के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने नहीं दिया गया। मजबूरन वृद्ध के स्वजनों को अस्पताल से वृद्ध के शव को सीधे स्वर्णरेखा बर्निग घाट ले जाना पड़ा, जहां उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
जानकारी के मुताबिक कोपे गांव के 60 वर्षीय घनश्याम मुर्मू को लंबी बीमारी के बाद एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बुधवार को अस्पताल में उनकी मौत हो गई। मौत के बाद घनश्याम के दो बेटों ने अंतिम संस्कार के शव को गांव ले जाना चाहा, लेकिन ग्रामीणों ने शव को गांव में प्रवेश देने से मना कर दिया। इतना ही नहीं, ग्रामीणों ने कंधा देने के लिए साथ आने से भी साफ मना कर दिया। हालांकि ग्रामीणों ने ऐसा किसी विवाद के कारण नहीं, बल्कि संक्रमण के खतरे से बचने के लिए पूर्व में गांव में बैठक कर लिए गए निर्णय के आधार कर किया।
ओडिशा सीमा से सटे कोपे गांव के लोगों ने माझी बाबा (ग्राम प्रधान) सुराई हेम्ब्रम की अध्यक्षता में बैठक कर पहले ही (30 मार्च को) यह तय कर लिया था कि कोरोना वायरस के संक्रमण से गांव को बचाने के लिए न किसी बाहरी को गांव में घुसने दिया जाएगा और न ही संक्रमण के किसी भी संभावना को प्रवेश करने दिया जाएगा। घनश्याम की मौत के बाद इसी फैसले के आधार पर शव को गांव न ले जाने का निर्णय लिया गया। गांव में संताल व भूमिज जाति के लोगों की बहुलता है। बैठक के बाद से ही गांव की सभी सीमाएं ग्रामीणों ने सील कर दी है। बांस-बल्ली लगा बेरिकेडिंग की गई है, ताकि कोई बाहरी घुस न सके।
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गांव से बाहर रहने वाले परिचित अंतिम संस्कार में हुए शामिल
घनश्याम के अंतिम संस्कार में उनके दो बेटे गोपीनाथ मुर्मू और कुंवर मुर्मू के अलावा लौहनगरी में रहने वाले कोपे गांव के निवासी और रिश्तेदार शामिल हुए। अर्थी उठाने नहीं आए तो गांव के सगे-संबंधी, आस-पड़ोस के लोग और बचपन के साथी।
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ग्राम प्रधान भी खुद गांव में नहीं रख पा रहे पैर
लॉकडाउन के दौरान गांव में किसी भी बाहरी के प्रवेश पर रोक लगाने का निर्णय लेने वाली बैठक का नेतृत्व करने वाले कोपे गांव के ग्राम प्रधान सह माझी बाबा सुराई हेम्ब्रम खुद अपने गांव में पैर नहीं रख पा रहे। ऐसा इसलिए, क्योंकि वे जमशेदपुर के एक्सएलआरआइ में नौकरी करते हैं। नौकरी के लिए जमशेदपुर आने के कारण उन्हें भी गांव में प्रवेश से वंचित कर दिया गया। फिलहाल वे करनडीह में रहकर ड्यूटी कर रहे हैं।
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चेन्नई में फंसे गांव के 12 मजदूर
कोपे गांव के 12 मजदूर लॉकडाउन के कारण चेन्नई में फंसे हुए हैं। अपने घरवालों से संपर्क करने पर उन्हें बताया गया कि उनके आने पर ज्ञी उन्हें गांव में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। ऐसे में प्रवासी मजदूरों के समक्ष विकट स्थिति पैदा हो गई है। बाहर रहने-खाने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं बचा है।