स्वतंत्रता सेनानी के दावे की जांच में लगे चार दशक, अब बेवा ने भी त्यागे प्राण Chaibasa News
Freedom fighter. स्वतंत्रता सेनानी के दावे की जांच में चार दशक गुजर गए और मदद की बाट जोहते देवेंद्र नंदा के बाद अब उनकी बेवा भी दुनिया से विदा हो गई।
चक्रधरपुर,दिनेश शर्मा। सरकार से मदद की बाट जोहते चल बसे थे देवेंद्र नंदा। सरकारी अफसरों की जांच चार दशक में भी पूरी नहीं हुई। फांकाकशी को मजबूर अब उनकी बेवा ने भी बीमारी की हालत में राउरकेला के अस्पताल में प्राण त्याग दिए।
आजादी के आंदोलन में भाग लेना और अंग्रेजों से लड़ना देवेंद्र नंदा के लिए संभवत: सहज था। तभी तो नमक सत्याग्रह समेत स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले आजादी के दीवाने नंदा की स्वतंत्रता आंदोलन सेनानी पेंशन के लिए दिए गए आवेदन की जांच पड़ताल लगभग चार दशक में भी पूरी नहीं हो पाई। पुराना बस्ती निवासी बनमाली नंदर के पुत्र देवेंद्र नंदा ने 1929-30 के नमक सत्याग्रह से लेकर 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन तक में सक्रिय भूमिका निभाई। नमक आंदोलन के वक्त उन्हें बंगाल के मिदनापुर में अंग्रेजों द्वारा पंद्रह दिन के लिए डिटेन के नाम पर हिरासत में रखा गया। उन्हें गिरफ्तार नहीं दिखाया गया।
दिल्ली आती-जाती रही फाइल
इस बाबत चक्रधरपुर के स्वतंत्रता सेनानी मंगल प्रसाद, गोपाल कुम्हार स्वतंत्रता सेनानी संगठन के तत्कालीन सचिव शीलभद्र याजी, झारखंड और ओड़शा में रहे स्वतंत्रता आंदोलनकारी चक्रधरपुर निवासी विजय पाणी समेत अन्य ने उनके नाम का उल्लेख करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में देवेंद्र नंदा की भूमिका की सराहना भी की थी। 1982 में पेंशन के लिए आवेदन के वक्त इन सबके पत्र भी संलग्न किए गए। इसके बाद भी फाइल दिल्ली से चाईबासा और चक्रधरपुर आती-जाती रही। इसी बीच वर्ष 1998 में विपन्नता के मध्य देवेंद्र नंदा का निधन हो गया।
मिले चौंकाने वाले जवाब
प्रबोध कुमार मिश्र ।
देवेंद्र नंदा के निधन के बाद इस मामले में लगातार पत्राचार करने वाले पुराना बस्ती निवासी प्रबोध कुमार मिश्र बताते हैं कि उन्हें जवाब मिला कि अब चूंकि आवेदक का निधन हो गया है, यह मामला समाप्त हो गया। लेकिन ऐसी ही भयंकर विपन्नता में बीमारी का सामना कर रही देवेंद्र नंदा की पत्नी अदिति नंदा का मामला लेकर प्रबोध मिश्र ने पुन: पत्राचार आरंभ किया। इस क्रम में दिल्ली से उन्हें चकित करने वाले भी कई जवाब मिलते रहे। एक बार बताया गया कि पटना की जांच में मिदनापुर नामक कोई स्थान नहीं पाया गया। जबकि नमक आंदोलन समुद्र के किनारे किया गया था। देवेंद्र नंदा इसमें भाग लेने बंगाल के मिदनापुर गए थे। 1982 से लगातार पत्राचार कर रहे श्री मिश्र इस सबंध में काले साहबों के रवैये से हैरान थे।
प्रधानमंत्री के आह्रवान से जगी उम्मीद
इसी बीच चार वर्ष पूर्व जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचार से भूले बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों को ढूंढने का आह्वान किया, तो नई ऊर्जा से लबरेज हो मिश्रा ने नए जोश के साथ दिल्ली प्रधानमंत्री कार्यालय, राज्यपाल झारखंड समेत तमाम लोगों को पत्र लिखे। इस बार राज्य पाल कार्यालय से उन्हें पत्र द्वारा शीघ्र जांच किए जाने का दिलासा दिया गया। दो वर्ष पूर्व अगस्त 2018 में राज्यपाल ने जांच पूरी होने तक बीमारी का इलाज कराने एवं भरण पोषण के लिए पचास हजार रुपये की राशि भी उपलब्ध कराई।
अब पुत्र को मदद दिलाने की पहल
प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र।
प्रबोध मिश्र बताते हैं कि बेहद वृद्ध हो चली स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी के आवेदन पर उपायुक्त एवं अन्य सक्षम पदाधिकारियों ने जांच कर रिपोर्ट भी भेज दी है। लेकिन दुखद बात यह रही कि जिस प्रकार देवेंद्र नंदा पेंशन के इंतजार में स्वर्ग सिधार गए, कुछ ऐसा ही उनकी पत्नी के साथ भी हो गया। इस बार भी समय पर सुध नहीं ली गई। इसके बावजूद उन्होंने देवेंद्र नंदा के पुत्र को मदद दिलाने के लिए फिर से पत्राचार करने की बात कही। अब देखना यह है कि सरकारी अधिकारी कब उनकी पेंशन शुरू करेंगे।