तुलसी से प्रेरित हो हिंदी चौपाई में लिख डाली श्रीमद्भगवद्गीता, लगे 25 साल
रोशन को चौपाई के रूप में श्रीमद्भगवद्गीता को रचने में कुल 25 साल लगे। चौपाई में चार चरण होते हैं प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती हैं तथा अंत में गुरु होता है।
जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह।Shrimad Bhagwat Geeta write in hindi chaupaee महाकवि तुलसीदास से प्रेरित होकर दयाल सिटी, गोविंदपुर, जमशेदपुर के रहने वाले रोशन झा ने श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों को चौपाई के रूप में लिखा है। हां, यह चौपाई अवधी में न होकर हिंदी में है।
रोशन को एक नामी म्यूजिक कंपनी ने गीता की चौपाइयों की रिकार्डिंग के लिए आफर भी दिया है। उसका कहना है कि तुलसीदासजी बोलचाल की भाषा में रामचरितमानस लिखकर लोकप्रिय हुए थे। श्रीमद्भगवद्गीता को लोकप्रिय बनाना है, तो इसे भी सहज भाषा में उपलब्ध होना चाहिए। वह भी इसके भाव में बिना किसी बदलाव के। रोशन को चौपाई के रूप में श्रीमद्भगवद्गीता को रचने में कुल 25 साल लगे। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती हैं तथा अंत में गुरु होता है।
दर्जनों पुस्तकों का लिया सहयोग
मूल रूप से बिहार के मधुबनी जिला के राजग्राम के रहने वाले रोशन झा ने 22 अक्टूबर 1995 से श्रीमद्भगवद्गीता को चौपाई में रूपांतरित करना शुरू किया। यह श्रीमद्भगवद्गीता का प्रभाव ही है कि 25 साल की अनवरत तपस्या में एक बार भी ऐसा पल नहीं आया, जब वह हतोत्साहित हुए हो। हरेक श्लोक के भाव के साथ कोई अन्याय नहीं हो, इसके लिए वास्तविक श्रीमद्भगवद्गीता के अलावा इस्कॉन, स्वामी दयानंद सहित अन्य दर्जनों पुस्तकों का सहयोग लिया।
रूपांतरण करने की शुरुआत अनोखी
रोशन झा ने बताया कि इस लंबे सफर में कई बार ऐसा भी मौका आया जब एक श्लोक को चौपाई में रूपांतरित करने में 15 से 20 दिन लग गए तो कभी-कभी एक ही दिन में 15 श्लोक को चौपाई में बदल दिया। चौपाई में रूपांतरण करने की शुरुआत भी अनोखी है। आज भी 22 अक्टूबर 1995 का वह दिन रोशन को याद है, जब उसका मन उद्वेलित था। युवा मन में कुछ नया करने की जीजिविषा थी। रात के तीन बजे अचानक उठकर श्रीमद्भगवद्गीता पढऩा शुरू कर देते। तभी उनके मन में ख्याल आया, क्यों न इस महाग्रंथ के श्लोकों को तुलसी दास के रामचरितमानस की चौपाई की तरह लिख दिया जाए। पहले ही दिन उसने प्रयास किया और सफलता भी मिलती दिखी।
'साधु जन को पार लगाने, दुष्टों को यमलोक पठाने।
धर्म स्थापना करने के कारण, करुं देह हर युग में धारण।।'
(परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥)
उन्होंने अपनी इस रचना को चाचा राधाकांत झा व बड़े पिताजी जगन्नाथ झा को दिखाया। दोनों ने उनके इस प्रयास को मुक्तकंठ से प्रशंसा की और आगे बढऩे का हौसला दिया। इसके बाद रोशन झा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे कहते हैैं, मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है, श्रीमद्भगवद्गीता चौपाई को जन-जन तक पहुंचाना।