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एक ही किताब पर लेखकों के नाम बदल-बदल कमाई का गोरखधंधा Jamshedpur News

दूसरे लेखकों की किताबों पर लेखक का नाम और कॉपीराइट के पन्ने को बदल कर सरकारी फंड से उच्च शिक्षण संस्थानों में किताबें खरीदवाई जा रही हैं।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 07:36 PM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 10:37 PM (IST)
एक ही किताब पर लेखकों के नाम बदल-बदल कमाई का गोरखधंधा Jamshedpur News
एक ही किताब पर लेखकों के नाम बदल-बदल कमाई का गोरखधंधा Jamshedpur News

जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। उच्च शिक्षा के नाम पर कमाई का गोरखधंधा कोई नई बात नहीं है। हद तो यह है कि दूसरे लेखकों की किताबों पर लेखक का नाम और कॉपीराइट के पन्ने को बदल कर सरकारी फंड से उच्च शिक्षण संस्थानों में किताबें खरीदवाई जा रही हैं। यानि मेहनत किसी और कि और कमाई अपनी। निजी प्रकाशकों व कॉलेजों के शिक्षकों की मिलीभगत से यह धंधा फलफूल रहा है। ऐसा ही कुछ कोल्हान विश्वविद्यालय में भी चल रहा है जो पहले से ही किताब घोटाले में फंसा है। 

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मिलाकर देखा, हूबहू किताब, सिर्फ लेखक का नाम अलग

कई शिक्षक इस धंधे से वाकिफ हैं। ऐसे ही शिक्षकों ने किताबों को सामने रख मिलान किया। एक-एक शब्द वहीं, सिर्फ लेखक का नाम अलग है और कॉपीराइट वाले हिस्से को हटा दिया गया है। नमूने के तौर पर एसबीटीडी पब्लिकेशन आगरा की वित्तीय लेखांकन ङ्क्षहदी में तथा इंग्लिश में फाइनेंशियल एकांउट को दिखाया।

कॉमर्स छात्रों की शिकायत पर मिलान किया गया तो मामला सही निकला। शिक्षकों से मिली जानकारी के अनुसार इस किताब के मूल लेखक कटिहार के डॉ .एसके सिंह हैं। यहं किताब राज्य के हर कॉलेज में चल रही है। कोल्हान विश्वविद्यालय में चलने वाली किताब के कवर पेज पर लेखकों के नाम डॉ. डीके पांडेय, डॉ. हरेंद्र प्रताप सिंह तथा सैयद जाहिर परवेज अंकित हैं। कोल्हान विश्वविद्यालय से सिर्फ रॉयल्टी के पन्ने को हटा दिया गया है। बाकी सब कुछ हुबहू है। छात्रों को इन लेखकों की किताबों को खरीदने के बाध्य किया जा रहा है। इसी तरह रांची विश्वविद्यालय में चलनेवाली इस किताब में रॉयल्टी चैप्टर को जोड़कर डॉ. एसके सिंह के साथ डॉ. जीपी त्रिवेदी का नाम जोड़ दिया गया है। यानि यही किताब वहां डॉ. जीपी त्रिवेदी के नाम पर लिखी चल रही है। इसी तरह रांची वीमेंस कॉलेज में चल रही इस किताब में डॉ. नीलिमा हेरेंज का नाम जोड़कर चलाया जा रहा है। इस किताब की कुल पृष्ठ संख्या 637 हैं, जबकि दाम अलग-अलग लेखकों के अनुसार 300 से 400 रुपया है। 

किताबों को खरीदने के लिए मिलता है आवंटन

कोल्हान विश्वविद्यालय किताबों को खरीदने के लिए लाखों रुपये का आवंटन कॉलेजों को देता है। अंगीभूत कॉलेजों को इस मद में कम से कम दस लाख रुपया मिलता है। इस राशि के मिलते ही प्रकाशक कॉलेजों के चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं और जैसे-तैसे किताबें खरीद ली जाती हैं। इसमें उच्च अधिकारियों की पैरवी भी होती है। इस पैरवी का खास ख्याल रखा जाता है। छह-सात माह पूर्व वर्कर्स कॉलेज में इस तरह का मामला प्रकाश में आया था। को-ऑपरेटिव कॉलेज में लाखों रुपये की पुस्तक खरीद घोटाले का मामला काफी चर्चित रहा है।

छात्रों की शिकायत पर उजागर हुआ मामला

जमशेदपुर वर्कर्स कॉलेज में कॉमर्स के छात्रों ने अलग-अलग लेखकों की किताबों से पढऩे के दौरान देखा कि सिर्फ लेखक का नाम अलग है तो उन्होंने शिक्षकों को बताया। शिक्षकों ने भी पुस्तकों का मिलान किया। छात्रो की शिकायत सही पाई लेकिन कोई शिक्षक खुद इस मामले को उठाने को तैयार नहीं हुआ तो छात्रों ने छात्र नेता हेमंत पाठक को मामले से अवगत कराया। हेमंत पाठक ने मंगलवार को इस मामले की शिकायत राज्यपाल को पत्र लिखकर की है। साथ ही मामले में जांच कर कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। इस संबंध में हेमंत पाठक ने कहा कि मामले में शीघ्र कार्रवाई नहीं होने पर यूजीसी के पास मामल ले जाया जाएगा।


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